आज मीडिया पर एक सनसनीखेज ख़बर देखी कि चीन की साइबर सेना ने सूचनाएं चुराने के लिए पिछले दिनों भारत सरकार के वेबसाइट्स पर चालीस हजार से ज्यादा हमले किए हैं। यह भी क़ि चीन भारतीयों के व्यक्तिगत ईमेल और फेसबुक एकाउंट्स में घुसकर उनकी व्यक्तिगत जानकारियां भी एकत्र कर रहा है। थोड़ी देर दुश्चिंता में डूबे रहने के बाद गहरी नींद सो गया। सोते ही सूट-बूट में पिंग महोदय हाज़िर। उन्होंने मुझे कविताओं की अपनी किताब भेंट की। कवर पर उनकी बड़ी सी तस्वीर, लेकिन भीतर की कविताएं फेसबुक के मेरे सौ से ज्यादा कवि मित्रों की। मैंने उन्हें हैरत से देखा तो उनका जवाब था – ‘हैकिंग की शुरुआत भारतीय फेसबुकिया कवियों से ही। सुना है कि वे लोग रोज़ दस-बीस कविताएं पोस्ट कर अपने मित्रों को हरदी-गुरदी बुलवाते रहते हैं। एक कविता उड़ा लेने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा।’

किताब के लिए धन्यवाद देते हुए मैंने पूछा – ‘मेरे लिए कोई आदेश कामरेड ?’ पिंग ने कहा – ‘मेरे देश में ‘वन चाइल्ड पालिसी’ की वजह से बहादुर सैनिकों की भारी किल्लत हो गई है। लोग बड़े बेमन से सेना में आ रहे हैं। आप वीरों के कुछ नाम सुझा सकते हैं मुझे ?’ मेरे लिए यह आपदा को अवसर में बदलने का मौक़ा था। मैंने खुशी-खुशी अपनी मित्र सूची से वीर रस के पचास अगियाबैताल कवियों और ल सौ राष्ट्रवादी युद्धोन्मत लेखकों की सूची उन्हें थमाई और जल्दी उन्हें उठवा लेने का अनुरोध किया। उन्होंने हामी भरी और फिर मेरे कान में मुंह ले जाकर कहा – ‘हम कोरोना के बाद उससे भी घातक एक नया वायरस बना रहे है। उसे दुनिया भर में फैलाने के लिए हमें कुछ पागलों की ज़रूरत होगी। आपकी मित्र सूची में ऐसे लोग हैं क्या ?’ मैंने कहा – ‘इस देश में संघी और मुसंघी नाम की मनुष्यों की दो महापागल प्रजातियां मौज़ूद हैं।उनमें से कुछ मेरी मित्र सूची में अभी बचे रह गए हैं। उन्हें उठवा लो, प्रभु ! वे किसी भी देश को बर्बाद करने में सक्षम हैं।’ जाते-जाते उनका एक आखिरी अनुरोध था – ‘चीनी औरतें जहां जाती हैं, अपने नाक-नक्शे की वज़ह से पहचान ली जाती हैं। मुझे दुनिया भर में जासूसी का जाल फैलाने के लिए सौ बेहद सुंदर भारतीय औरतों के नाम दे दीजिए !’ मैंने फेसबुक के प्रोफाइल फोटो के आधार पर सौ सबसे सुंदर स्त्रियों को चुनकर उनके नाम उन्हें दे दिए। साथ में यह हिदायत भी कि इन सबके सौंदर्य का उनके आधार कार्ड से मिलान कर आश्वस्त हो लेने के बाद ही आगे की कार्रवाई की जाय !

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पिंग जी बाय-बाय कहकर पीछे मुड़े ही थे कि मैंने पूछ लिया – ‘हुज़ूर, आपकी सब बात मैंने मानी। जाते-जाते बस इतना बता दीजिए कि गलवान घाटी में उस रात क्या हुआ था ?’ मेरा इतना भर पूछना था कि हाथ में कोरोना वाला इंजेक्शन लेकर वे मेरे पीछे दौड़े। अच्छी बात यह हुई कि पकड़े जाने के पहले मेरी आंखें खुल गई और बिस्तर पर शाम की चाय हाज़िर थी।

लेखक: ध्रुव गुप्त, आईपीएस 

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