जितेंद्र चौधरी
महावीर प्रसाद ‘मधुप’ की पंक्तियों से अपनी बात शुरू करता हूं;
करना होगा मातृभूमि की महिमा का परित्राण,
फिर से इस जर्जरित राष्ट्र का मिलकर नवनिर्माण।
भूख-ग़रीबी बेकारी का करके जड़ से अन्त,
लाना है भारत-वसुधा पर सुख का मधुर वसन्त।
सोने की चिड़िया कहलाए फिर निज देश महान।
लोकतंत्र के पहरेदारो! रहे निरन्तर ध्यान॥
जयप्रकाश नारायण जी ने कहा था “लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी किस्म का क्यों न हो, तानाशाही में पनपना संदेहास्पद है।”
जिस लोकतंत्र में संवैधानिक संस्थाएं मजबूत होंगी और मजबूती से काम कर रही होंगी वहीं पर लोकतंत्र सुरक्षित रह सकता है। जहां पर न्यायपालिका अपना काम पूरी निष्पक्षता और मजबूती से करे और कार्यपालिका ईमानदारी से अपना काम करे, चुनाव आयोग एवम केंद्रीय सतर्कता आयोग जैसी सभी संस्थाएं निष्पक्षता के साथ अपना काम करें और उस पर विधायिका का कोई दबाव न हो, तभी बेहतर लोकतंत्र बन सकता है।
लोकतंत्र की मजबूती के लिए मीडिया का मजबूत होना बहुत जरूरी है। लेकिन दुर्भाग्य से कुछ सालों से मीडिया के लड़खड़ाने का आभास जनता कर रही हैं। स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र के लिए मजबूत मीडिया का होना बहुत जरूरी है।
परंतु आजकल मीडिया सत्ता की गुलामी में व्यस्त नजर आता है।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव आयोग को विपक्ष की भी सुननी चाहिए। ईवीएम को हटाकर बैलेट पेपर से चुनाव कराए जाएं ताकि निष्पक्षता बनी रहे। दुनिया के विकसित देशों में भी बैलेट पेपर से ही चुनाव होते हैं और हम उनसे आगे तो नहीं है। तकनीक के साथ छेड़छाड़ बिल्कुल संभव है।
लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करने से ही बेहतर लोकतंत्र बन सकता है। किसी व्यक्ति के मजबूत होने से लोकतंत्र कभी मजबूत और महान नहीं हो सकता। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत को दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका से सीख लेनी चाहिए।
हमारे यहां तो गलत परंपराओं को भी यह कहकर अपना लिया जाता है कि पुरानी सरकारों ने भी तो ऐसा किया था। जब सुप्रीम कोर्ट के जज राज्यसभा भेजे जाएंगे तो व्यवस्था पर सवाल खड़े होंगे ही?
सत्ता आपको गुलाम और भिखारी बना कर रखना चाहती है। सत्ता का सारा खेल सिर्फ और सिर्फ इतना है कि आपका पेट भरता रहे, उससे ज्यादा आप कभी सोच भी ना पाए। परंतु आप महान भारत की जनता हैं और आपको हुक्मरानों से बेहतर शिक्षा, किसानों की उपज का उचित मूल्य तथा सबके लिये रोजगार मांगना होगा। शिक्षा और रोजगार के बिना समाज और देश उन्नति नहीं कर सकता। किसान और मजदूर की उन्नति के बगैर भारत की उन्नति सिर्फ कल्पना मात्र है।
लोकतंत्र की यही खूबसूरती है कि हुक्मरानों को आपकी बात सुननी होगी। प्रजातंत्र तभी सफल है जब जनता शिक्षित होगी। बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने कहा था, “अगर आपके पास 2₹ हैं तो एक रुपए की रोटी खरीदना और एक रुपए की किताब खरीदना”। उन्होंने यह भी कहा था कि शिक्षा शेरनी का वह दूध है जो भी पिएगा वह दहाड़ेगा।
अशिक्षित व्यक्ति की हकीकत में लोकतंत्र कोई मदद नहीं करता, क्योंकि उसे अपने वोट की ताकत का पता ही नहीं होता और वह आसानी से राजनेताओं के कुचक्र में फंस जाता है। वैसे देश में पढ़े-लिखे मानसिक बीमार और गुलाम लोगों की भी कोई कमी नहीं है।
लोकतंत्र में कोई कमी नहीं है। भारत के संविधान में कोई कमी नहीं है, परंतु भ्रष्टाचारी नेता उसमें बेईमानी करने के लिए रास्ते निकाल लेता है।
भारतीय संविधान की वजह से ही करोड़ों लोगों की जिंदगी में उजाला आया है। लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए आपको सवाल पूछने की आदत डालनी ही होगी। अगर आप सवाल पूछना भूल जाएंगे तो सत्ता को निरंकुश होने से कोई नहीं रोक सकता।
तूतीकोरिन में पुलिस हिरासत में जयराम और बेनिक्स नामक बाप-बेटे की अमानवीय मौत पर भी जिसका खून ना खौलता हो वहां लोकतंत्र ज्यादा देर जिंदा नहीं रह सकता।
लोकतन्त्र पर धर्मतंत्र एवं छद्म राष्ट्रवाद हावी नही होना चाहिए। यदि धर्मतंत्र एवं छद्म राष्ट्रवाद हावी हो जाता है तो शासक के ग़लत निर्णय भी सही लगने लगते हैं। ग़लत निर्णय लेने के बाद धर्म/छद्म राष्ट्रवाद की अफीम चटा कर देश की जनता को बहला दिया जाता है। जो होश में रहकर विरोध करते हैं उनकी आवाज़ को पुलिस या छद्म राष्ट्रवादियों द्वारा दबवा दिया जाता है।
जो शासक शासन में पुलिस पर अधिक निर्भर होगा उसमें शासकीय गुणों का आभाव होगा। वह शासक नही, तानाशाह होगा जो अपने ग़लत फैसले भी पुलिस के ज़ोर से मनवाना चाहता है।
एक के बदले दस सिर लाने की बात करने वाले आज सैनिकों की शहादत पर चुप है।
और प्ले स्टोर पर चीनी एप बैन करवा कर युद्ध कर रहें है। यही है चीन को मुंहतोड़ जवाब ?
ऐसा माहौल बना रहे हैं जैसे चीन की 59 एप्प बैन न करके 59 मिसाइलें नष्ट कर दी हो।
जब सत्ता आपको यह समझाने में कामयाब हो जाए की पेट्रोल डीजल की कीमतें राष्ट्र निर्माण के लिए बढ़ाई है तो आप अपनी गरीबी, भूखमरी, बेकारी और दुर्दशा के लिए आप स्वयं जिम्मेदार हो। यदि आपको सत्ता की खैरात पर पलने की आदत पड़ गयी है तो आने वाली पीढ़ियों के लिये सुनहरे सपने देखने का कोई हक आपको नहीं है। या तो निरकुंश होती सत्ता से सवाल पूछिये, लगाम लगाइये, अन्यथा अपनी आजादी खोने के लिये तैयार रहिये।