नई दिल्ली: विश्व अर्थव्यवस्था को 1930 के दशक के ‘ग्रेट डिप्रेशन’ से भी भारी मंदी का जहां सामना है, वहीं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुमान भारत के लिए भविष्य में उम्मीद की किरण के साथ भरपूर अवसर दिखा रहे हैं. IMF ने जनवरी में भारत के लि+ए साल 2020 में 5.8% की विकास दर का अनुमान जताया था. अब ये घटकर 1.9% पर आ गया है. लेकिन इसके बावजूद अच्छी खबर ये है कि भारत तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्थाओं में बना रहेगा. इसके अनुमानित आंकड़े पॉजिटिव टेरेटरी में बने रहेंगे.

2019 में भारत 4.2% की दर से विकास किया. कई विशेषज्ञों का मानना था कि एशिया की इस तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पर अब भी नोटबंदी और जीएसटी लागू किए जाने का असर था, जिसने छोटे, मध्यम और बड़े स्तर के उद्यमियों पर बुरा असर डाला. 2008 की दुनिया की मंदी की तरह इस बार स्थिति नहीं है. इस बार भारत पहले से ही फिसलन वाली पटरी पर था. लेकिन IMF के ताजा अनुमान भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए उम्मीद जगाने वाले हैं- अगर ये सही साबित होता है तो भारत नए ‘बुल रन’ की ओर बढ़ सकता है क्योंकि बाकी सारे फैक्टर इसके समर्थन में है.

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2020 और 2021 के भारत के लिए अनुमान आशावादी हैं. ये नहीं भूलना चाहिए कि इन अनुमानों में संशोधन देखे जा सकते हैं अगर Covid-19 से जुड़ा लॉकडाउन 3 मई के बाद भी नहीं हटाया गया, कम से कम आंशिक तौर पर. भारत ने अभी तक खुद को कोरोना वायरस केस की बहुत बड़ी संख्या से बचाया हुआ है. वहीं, अमेरिका और अधिकतर यूरोप बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. चीन अपनी पुरानी कारोबारी पटरी पर लौट आया है, और ये अहम है कि भारत भी जल्दी ही अपने पैरों पर दोबारा लौटे.

IMF ने अनुमान लगाया है कि भारत और चीन को छोड़ अधिकतर देश 2020 के लिए निगेटिव ग्रोथ में चले जाएंगे और 2021 में ही जाकर कुछ उभर सकेंगे. IMF के मुताबिक 2021 के रिकवरी अनुमान बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेंगे कि महामारी पर 2020 की दूसरी छमाही में काबू पा लिया जाए. जिससे कंटेनमेंट की दिशा में हो रही कोशिशों को धीरे-धीरे नीचे किया जाए और फिर से उपभोक्ताओं और निवेशकों का विश्वास कायम किया जा सके.

SAARC और ASEAN क्षेत्रों के छोटे राष्ट्रों का भी पॉजिटिव टेरेटरी में बने रहने का अनुमान है. जो देश बहुत हद तक टूरिज्म और शिपिंग पर निर्भर हैं उनकी जीडीपी को इस साल सबसे ज्यादा झटका लगेगा. ये नीचे की टेबल में देखा जा सकता है. अगर उपभोक्ता मूल्यों या कंज्यूमर प्राइसेज को देखा जाए तो अधिकतर देश घर की चीजों और सेवाओं में गिरावट देखेंगे. अहम देशों में सिर्फ चीन और सऊदी अरब ही इन कंज्यूमर प्राइस को बढ़ता देख सकते हैं.

सऊदी अरब बहुत प्रभावित हुआ है, क्योंकि ये तेल के दामों में भारी गिरावट की वजह से है. चीन जो शुरू में महामारी का इपिसेंटर रहा, उसे भी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को लेकर झटका लगा. 2021 के अनुमानों की बात की जाए तो कीमतें दुनिया भर में 2019 के स्तर पर आ जाएंगी. इस अनुमान से साल 2020 के लिए उपभोक्ता कीमतों मे तेज करेक्शन देखा जा सकता है. भारत में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स की तुलना 2019 से की जाए तो 120 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है. ऐसा भारतीयों की खर्च करने की क्षमता घटने की वजह से होगा.

लॉकडाउन ने सबसे ज्यादा असंगठित सेक्टर पर असर डाला है. भारत अब भी असंगठित क्षेत्र की कामयाबी पर निर्भर करता है. ये हैरानी की बात नहीं कि लॉकडाउन ने यहां सप्लाई चेन्स पर बुरा असर डाला है. 2008 के वित्तीय संकट में आखिरी बार अर्थव्यवस्था को झटका देखा गया था. साइड इफेक्ट के तौर भारत ने विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) को निवेश वापस लेते, रुपये का अवमूल्यन, स्टॉक मार्केट की गिरावट और नौकरियों में छटनी को देखा था. लेकिन तब कुछ कारगर उपायों के दम पर भारत जल्दी ही उन मुश्किल हालात से उभर आया था. संकट के बावजूद भारत की जीडीपी 5.8% के स्तर पर थी.

आज Covid-19 महामारी को कहीं बड़े संकट के तौर पर देखा जा रहा है और पिछले कुछ दशकों की मंदियों से अलग है. इसने एक तरह से पूरी दुनिया को ही थाम कर रख दिया है.

भारत सरकार ने लॉकडाउन के नुकसानों से निपटने के लिए अस्थायी तौर पर फौरी वित्तीय पैकेजों का ऐलान किया है. लेकिन दीर्घकालीन दृष्टि से देखें तो भारत को अपनी पटरी पर जितना जल्दी संभव हो सके लौटने के लिए और भी बहुत कुछ करना होगा.

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे अच्छा इस दौर से निकलते ही संभावित लिक्विडिटी संकट को आसान करना होगा. हम लैंडिंग रेट्स में जल्द गिरावट देख सकते हैं जिससे संभावित क्रेडिट किल्लत से निपटा जा सके. हम मौद्रिक नीति (मॉनीटरी पॉलिसी) में भी कुछ ढील देख सकते हैं. आर्थिक गिरावट को रोकने के लिए कुछ वित्तीय स्टिमुलस पैकेज भी हमें दिखने चाहिए. भविष्य के निर्माण के लिए भारत को इस दोबारा जागरण की अवधि को धीरे लेकिन निश्चित तौर पर अपनी बुनियादी मजबूतियों को बढ़ाने में करना चाहिए. मोटे तौर पर चार क्षेत्र हैं जहां ताजा सुधार भारत को ऊंचा कर सकते हैं- इन्फ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा, कृषि और निवेश का माहौल.

इंफ्रास्ट्रक्चर सतत प्रक्रिया है. लेकिन मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ भारत भविष्य में आज जैसे हालात वाली चुनौतियों से और बेहतर ढंग से निपट सकेगा. वर्क फोर्स को भी इसके लिए अपने कौशल (स्किल्स) को और निखारना होगा. कृषि और उससे जुड़ी सप्लाई चेन्स इस लॉकडाउन से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. इसे दुरुस्त करने से भारतीय अर्थव्यवस्था तत्काल जीवंत हो सकेगी. भारत की जीडीपी में अब भी कृषि का खासा हिस्सा है.

निवेश के माहौल पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है. खास तौर पर नोटबंदी और जीएसटी की अफरा-तफरी के बाद. भारत को विदेशी संस्थागत निवेशकों को आकर्षित करने के लिए वित्तीय पॉलिसी में कुछ आश्वासन दिए जाने की आवश्यकता है. IMF की ओर से पॉजिटिव अनुमान के बाद खास तौर पर विदेशी संस्थागत निवेशकों का भारत में 2020 और 2021 में निवेश के लिए विश्वास बढ़ेगा.

समग्र महामारी को लेकर चीन के रुख पर नाराजगी भी भारत के लिए मैन्युफैक्चिरिंग सेक्टर में बड़ा अवसर लाएगी. इलेक्ट्रोनिक्स और कम्युनिकेशन्स में मार्केट लीडर्स के लिए भारत मैन्युफैक्चरिंग हब बन सकता है. जापान और कुछ अन्य देशों ने मैन्युफैक्चरिंग के लिए चीन पर निर्भरता घटाने के लिए प्लान तैयार कर लिए हैं. इस दिशा में बहुत कुछ इस पर निर्भर करेगा कि भारत Covid-19 महामारी से कितने कारगर ढंग से निपट पाता है

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