नई दिल्ली : आम आदमी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने कहा कि सीपीसीबी, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नहीं है, बल्कि वह अब ‘केंद्रीय राजनीतिक नियंत्रण बोर्ड’ हो गया है। हरियाणा, पंजाब और यूपी में प्रदूषण नियंत्रण के लिए निर्धारित मानकों का उल्लंघन किया जा रहा है, लेकिन सीपीसीबी चुप है। पड़ोसी राज्यों के किसान राज्य और केंद्र से मदद नहीं मिलने के कारण पराली जलाने के लिए मजबूर हैं और अगले दो-तीन दिनों में पराली का धुंआ दिल्ली पहुंचने की संभावना है, जिससे प्रदूषण बढ़ सकता है। उन्होंने कहा कि दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में कोयला आधारित 13 थर्मल पाॅवर प्लांट हैं, जिनसे प्रतिदिन 57 टन पार्टिकुलेट, 686 टन सल्फर डाई आॅक्साइड और 304 टन नाइट्रोजन आॅक्साइड निकलती है, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश और केंद्र सरकार के निर्देश के बावजूद कोयला आधारित थर्मल पाॅवर प्लांट्स में अभी तक प्रदूषण कम करने वाले उपकरण नहीं लगाए गए हैं, जबकि कई बार अंतिम तिथि बढ़ाई जा चुकी है। आम आदमी पार्टी केंद्र सरकार से कोयला आधरित सभी थर्मल पाॅवर प्लांट्स को तत्काल बंद करने की मांग करती है। एनसीआर क्षेत्र में करीब 2300 ईंट-भट्टे चल रहे हैं, इन्हें नई तकनीक में शिफ्ट करने के निर्देश दिए गए थे, लेकिन राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मिलीभगत से यह सभी चल रहे हैं।
आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता और विधायक सौरभ भारद्वाज ने दिल्ली में होने वाले प्रदूषण को लेकर गुरुवार को पार्टी मुख्यालय में प्रेस वार्ता की। उन्होंने कहा कि अक्तूबर का महीना है और ऐसी खबरें आ रही हैं कि दिल्ली के करीबी राज्यों (पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश) के किसान बिना राज्य और केंद्र सरकार की मदद के चलते बड़े स्तर पर पराली जला रहे हैं। सैटेलाइट की तस्वीरों से पराली को जलाने वाली आग देखी जा सकती है। दो से तीन दिनों के अंदर यह धुआं दिल्ली- एनसीआर की तरफ बढ़ने लगेगा। फिर उस वक्त इतना शोर हो जाएगा कि हम यह तय नहीं कर पाएंगे कि किसको इस प्रदूषण का जिम्मेदार ठहराएं। इसीलिए हम उस शोर से पहले कुछ बात करना चाहते हैं।
सौरभ भारद्वाज ने कहा कि ऐसा लगता है कि प्रदूषण पर रोक लगाने वाला केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) अब केंद्रीय राजनीतिक नियंत्रण बोर्ड हो गया है। अब इस संस्था को शुद्ध राजनीति करते हुए देखा जा सकता है। दिल्ली-एनसीआर के आसपास 13 कोयले के पॉवर प्लांट हैं, कई सालों से इनके ऊपर लगातार चिंता जताई जा रही है। सीएसई की रिपोर्ट के अनुसार, एनसीआर के आसपास जो कोयले के प्लांट हैं उनसे 57 टन प्रतिदिन धुआं निकलता है। 686 टन सल्फर डाइऑक्साइड प्रतिदिन निकलती है और 304 टन नाइट्रोजन ऑक्साइड प्रतिदिन निकलती है। यह तीनों ही बहुत हानिकारक हैं।
उन्होंने कहा, कई सालों से कहा जा रहा है कि या तो इन प्लांटों को बंद कर दिया जाए या इनमें प्रदूषण को कंट्रोल करने वाले नए तकनीकी उपकरण लगा दिए जाएं। यह उपकरण प्रदूषण की मात्रा को कम करता है और इसको प्लांटों में लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदेश दिया जा चुका है। 2015 में केंद्र सरकार को भी यह कानून बनाना पड़ा कि जितने भी थर्माकोल पावर प्लांट हैं वो सभी 2017 तक अपने यहां यह प्रदूषण कम करने वाला उपकरण लगाएंगे। 2015 में 2017 की तारीख दी गई, पर यह उपकरण नहीं लगाए गए, उसके बाद 2017 में 2019 की तारीख दी गई, लेकिन फिर भी यह उपकरण नहीं लगाए गए। बाद में यह तारीख बढ़ाकर 2022 कर दी गई, लेकिन अभी तक यह उपकरण नहीं लगाए गए हैं। अब कहा जा रहा है कि यह तारीख 2024 तक बढ़ा दी जाए।
सौरभ भारद्वाज ने आगे कहा कि यह प्लांट हरियाणा, यूपी, पंजाब और हमारे आसपास के राज्यों में मौजूद हैं। पूरे देश में 400 से अधिक इस तरह के प्लांट हैं, जबकि एनसीआर में 13 ऐसे प्लांट हुआ करते थे। पूरे देश में दिल्ली ऐसा राज्य है जहां की सरकार ने अपने यहां मौजूद कोयले के प्लांटों को हमेशा के लिए बंद कर दिया है। हालांकि, पूरे देश में इस तरह के प्लांट अभी भी चल रहे हैं। हम जानना चाहते हैं कि क्या सीपीसीबी को यह प्लांट नजर नहीं आ रहे हैं, क्या उनको पंजाब, हरियाणा और यूपी की सरकारें दिखनी बंद हो गईं, क्या यह राज्य अब इस देश में नहीं रहे? इनके ऊपर सीपीसीबी इतनी खामोश क्यों है? जब दिल्ली सरकार ने अपने यहां मौजूद पावर प्लांटों को बंद कर दिया, तो इन राज्यों ने अभी तक इन्हें बंद क्यों नहीं किया है?
उन्होंने कहा कि 13 पाॅवर प्लांट दिल्ली और आसपास के इलाकों में थे, जिनमें से दो को दिल्ली सरकार ने पूरी तरह से बंद कर दिया है। बाकी 11 प्लांटों में से सिर्फ एक प्लांट ने प्रदूषण पर रोक लगाने वाले उपरकरण पर काम शुरू किया है जबकि बाकी के 10 प्लांटों ने इसपर कोई काम नहीं किया है। यानी वो इस उपरण को लगाना ही नहीं चाहते हैं। हम केंद्र सरकार से मांग करते हैं कि इन प्लांटों को तुरंत बंद किया जाए, इनकी वजह से भारी प्रदूषण फैल रहा है। हरियाणा को कई बार चेतावनी देने के बाद, हरियाणा बिजली उत्पादन निगम ने अब अदालत में बताया है कि कोरोना काल की वजह से हम यह प्रदूषण रोकने वाला उपरण नहीं लगा पाए हैं। हालांकि, इसको खरीदने और लगाने में भी तीन से चार साल लगते हैं। इससे भी खतरनाक बात यह है कि केंद्र सरकार इसे लगाने की समयसीमा को कई बार बढ़ा चुकी है।
सौरभ भारद्वाज ने आगे कहा कि कोयले के 441 पावर प्लांट पूरे देश में लगे हुए हैं, जो सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड उगल रहे हैं। इन प्लांटों की वजह से कैंसर और बड़ी-बड़ी बीमारियां हो रही हैं। अब देश के बिजली मंत्रालय ने पर्यावरण मंत्रालय से अनुरोध किया है कि इस समय सीमा को 2024 तक बढ़ा दिया जाए। इन प्लांटों से रेल और ट्रक से जाने वाले कोयले को तिरपाल से ढकने के लिए एनजीटी ने आदेश दिया था। यह ट्रक खुले में कोयला लेकर जाते हैं, वो भी बिना ढके। पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एनजीटी के आदेश को निरस्त कर दिया और अब केंद्र सरकार की संस्था एनटीपीसी ने एनजीटी के ऑर्डर को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
उन्होंने आगे कहा कि प्रदूषण का दूसरा सबसे बड़ा कारण ईंट के भट्टे हैं, जो साल में करीब पांच से छह बार सातों दिन, 24 घंटे चलते हैं। सिर्फ एनसीआर (नोएडा, गुड़गांव, गाजियाबाद) में लगभग 2300 ईंट के भट्टे चल रहे हैं। इन भट्टों को प्रदूषण कम करने के लिए गाइड लाइन जारी की गई थी, लेकिन अधिकतर भट्टों ने अभी तक कोई नई तकनीक नहीं लगाई है। हरियाणा और यूपी के प्रदूषण बोर्ड के भ्रष्टाचार के चलते यह सभी ईंट के भट्टे अभी भी चल रहे हैं। सीपीसीबी को यह नजर नहीं आ रहा है। दो दिन बाद जब दिल्ली में हाहाकार मचेगा, तो लोग कहेंगे कि धूल और गाड़ियों की वजह से दिल्ली में प्रदूषण हो रहा है। लेकिन दिल्ली में आज भी गाड़ियां चल रहीं हैं, आज भी धूल उड़ रही है। तीन दिन बाद कुछ नहीं बदलेगा, अगर बदलेगा तो सिर्फ इतना ही कि पराली का धुआं दिल्ली में पहुंचना शुरू हो जाएगा और जो दिल्ली की हवा साफ दिख रही है वो प्रदूषित हो जाएगी।