नई दिल्ली : जमीअत उलमा-ए-हिंद के प्रयासों से दिल्ली दंगों में कथित मुस्लिम आरोपियों की ज़मानत याचिकाओं की मंजूरी का सिलसिला जारी है। आज 24 और लोगों की ज़मानत की याचिकाएं जमीअत उलमा-ए-हिंद के वकीलों के प्रयासों से मंजूर हो गईं।

उल्लेखनीय है कि अब तक निचली अदालत और दिल्ली हाईकोर्ट से कुल तीस लोगों की ज़मानतें मंजूर हो चुकी हैं और मुस्लिम युवकों की जेल से रिहाई का सिलसिला भी शुरू हो चुका है। पिछले दिन एक अभियुक्त की जेल से रिहाई हुई है।

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दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस शिरेष केत ने अभियुक्त रैहान प्रधान, अरशद क़य्यूम, इरशाद अहमद, मुहम्मद रैहान, रियासत अली, शाह आलम, राशिद सैफी और जुबैर अहमद की सशर्त ज़मानत मंजूर की है जबकि अभियुक्त जुबैर अहमद की जेल से रिहाई हो चुकी है।

इन सभी अभियुक्तों की ज़मानतें एफ.आई.आर. नंबर 117/2020, 80/2020, 120/2020, 119/2020 मैं हुई है जबकि इससे पहले रियासत अली, शाह आलम, राशिद सैफी, अरशद क़य्यूम, मुहम्मद शादाब, मुहम्मद आबिद व अन्य अभियुक्तों की ज़मानतें कड़कड़डूमा सेशन अदालत के जज विनोद कुमार यादव ने मंजूर की थीं।

दिल्ली हाईकोर्ट और निचली अदालत ने अभियुक्तों को 25 हज़ार रुपय के निजी मुचल्के पर ज़मानत पर रिहा किए जाने के निर्देश जारी किए, हालांकि सरकारी वकील ने अभियुक्तों की ज़मानत पर रिहाई का कड़े शब्दों में विरोध करते हुए अदालत को बताया कि अभियुक्तों की ज़मानत पर रिहाई से शांति भंग हो सकती है लेकिन अदालत ने बचाव पक्ष के वकीलों के तर्क से सहमति जताते हुए अभियुक्तों की ज़मानत याचिका मंजूर कर ली।

जमीअत उलमा-ए-हिंद की ओर से अभियुक्तों की पैरवी ऐडवोकेट ज़हीरुद्दीन बाबर चैहान और उनके सहयोगी वकील ऐडवोकेट दिनेश ने की और अदालत को बताया कि इस मामले में पुलिस की ओर से चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है और अभियुक्तों के खिलाफ आरोप प्रत्यक्ष सबूत नहीं हैं इसलिये उन्हें ज़मानत पर रिहा किया जाना चाहिए,

अभियुक्तों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 148, 149, 436, 427 (घातक हथियारों द्वारा दंगा करना, आग लगाने वाले पदार्थों या आगज़नी से घरों को हानि पहुंचाना, अवैध रूप से एकत्र होना) और पी.डी.पी.पी. ऐक्ट की धारा 3, 4 (सार्वजनिक संपत्ति को आगज़नी द्वारा नुकसान पहुंचाना) के अंतर्गत मुकदमा दायर किया गया था और अभियुक्त पिछले तीन महीनों से अधिक समय से जेल की सलाखों के पीछे थे।

जमीअत उलमा द्वारा अब तक दिल्ली हाईकोर्ट और सेशन अदालत से 30 ज़मानत याचिकाएं मंजूर हो चुकी हैं। आशा की जाती है कि शेष लोगों की भी ज़मानतें जल्द मंजूर हो जाएंगी।

जमीअत उलमा-ए-हिंद ने दिल्ली दंगों में फंसाए गए सैकड़ों मुसलमानों के मुकदमे लड़ने का बीड़ा उठाया है और अध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिंद मौलाना सैयद अरशद मदनी के विशेष निर्देश पर आरोपियों की ज़मानत पर रिहाई के लिए सेशन अदालत से लेकर दिल्ली हाईकोर्ट तक याचिकाएं विचाराधीन हैं।

जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने दिल्ली दंगों में पुलिस द्वारा जबरन पकड़े गए 24 और लोगों की ज़मानत पर रिहाई का स्वागत किया है और यह भी कहा है कि केवल ज़मानत पर रिहाई जमीअत उलमा-ए-हिंद का उद्देश्य नहीं बल्कि इसकी कोशिश है कि जिन निर्दोष लोगों को दंगे में जबरन फंसाया गया है उनको क़ानूनी तौर पर न्याय दिलाया जाये।

उन्होंने कहा कि जमीअत उलमा-ए-हिंद के वकीलों की टीम इसी बिन्दु पर काम कर रही है और इन लोगों की ज़मानत पर रिहाई वकीलों के टीम की पहली सफलता है लेकिन ऐसे लोगों को पूर्ण न्याय दिलाने तक हमारा यह कानूनी संघर्ष जारी रहेगा। मौलाना मदनी ने कहा कि कुछ अंग्रेज़ी अखबारों और मानवाधिकार के लिए काम करने वाले संगठन एमनेसटी इंटरनेशनल की रिपोर्टों ने दिल्ली दंगों की असल कहानी से पर्दा उठा दिया है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई दुनिया के सामने आचुकी है कि जांच और कार्रवाई के नाम पर असल दोषियों को पुलिस ने बचा लिया और उन निर्दोष लोगों को जिनका दूर-दूर तक इस दंगे से कोई संबंध नहीं था आरोपी बना दिया गया, इस खुले अन्याय पर जमीअत उलमा-ए- हिंद खामोश बैठी नहीं रह सकती थी,

चुनांचे उसने पीड़ितों को मुफ्त क़ानूनी सहायता पहंुचाने का फैसला किया और इसके लिए अनुभवी वकीलों का एक नियमित पैनल भी बनाया। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले 70 वर्षों से धर्म के आधार पर होने वाली हिंसा, अत्याचार और दंगों के खिलाफ जमीअत उलमा-ए-हिंद एक कड़ा कानून बनाने की मांग कर रही है, जिसमें कहीं दंगा होने की स्थिति में वहां के जिला प्रशासन को जवाबदेह बनानया जाए,

मौलाना मदनी ने कहा कि हमारा लम्बा अनुभव यह है कि डी.एम. और इस.पी. को अगर इस बात का खतरा हो कि दंगा होने की स्थिति में खुद उनकी अपनी गर्दन में कानून का फंदा पड़ सकता है तो किसी के चाहने से भी कहीं दंगा नहीं हो सकता, उन्होंने एक बार फिर कहा कि इस प्रकार का कानून बनाने के साथ-साथ एक ऐसे कानून की भी आवश्यकता है जो राहत, रीलीफ और प्रनर्वास के कामों में भी एकरूपता लाए और अधिकारियों को इसका बाध्य भी बनाए,

लेकिन अफसोस भारत जैसे विशाल बहुसांस्कृतिक और बहुधार्मिक देश में इस प्रकार का कोई कानून मौजूद नहीं है, मौलाना मदनी ने कहा कि इस बात में अब कोई आशंका नहीं है कि दिल्ली दंगा सुनियोजित था और इसके पीछे साम्प्रदायिक शक्तियां काम कर रही थीं, लेकिन यह कितने अफसोस की बात है कि निर्दोषों को गिरफ्तार करके जांच की फाईल को लगभग बंद कर दिया गया, जो पात्र इस दंगे में लगातार सामने आते रहे वो अब भी मौजूद हैं और उसी तरह जहर भी उगल रहे हैं,

मगर उनको बेनकाब करने और कानून के कठघरे में लाने की जरूरत ही नहीं समझी जा रही है। उन्होंने कहा कि देश की एकता, अखंडता और इसकी गंगा-जमुनी संस्कृति के लिए यह कोई अच्छा संकेत नहीं है, वह देश तबाह और बर्बाद हो जाते हैं जो अपने नागरिकों के साथ न्याय नहीं करते, यह एक बड़ी सच्चाई है और दुनिया के इतिहास में इसकी कई मिसालें मौजूद हैं। देश और राष्ट्र के विकास का रहस्य एकता में ही छिपा है।

अराजकता और भेदभाव में नहीं, अपने ही लोगों के साथ संप्रदाय और धर्म के आधार पर भेदभाव और अन्याय किसी भी सभ्य समाज के लिए एक दाग ही कहे जा सकते हैं।

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