नई दिल्लीः- सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया, SDPI द्वारा UAPA, NIA, RTI और कश्मीर के मामले मे असवैधानिक संक्षोधन के खिलाफ फासीवाद भारत छोड़ो देश व्यापी विरोध प्रदर्शन के तहत दिल्ली मे जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन किया गया। इस धरना प्रदर्शन नेतृत्व SDPI दिल्ली प्रदेश संयोजक डॉ निजामुद्दीन खान ने किया जिसमे दिल्ली प्रदेश SDPI के सेंकडो कार्यकर्ताओ शिरकत की। एसडीपीआई के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ऐडवोकेट शरफुद्दीन अहमद व राष्ट्रीय सचिव डॉ. तस्लीम अहमद रहमानी ने मुख्या अतिथि के रूप मे सम्मलित होकर प्रदर्शनकारिओ को सम्बोदित किया।
इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि, SDPI फांसीवाद के विरोध मे सभी नागरिको, बुद्धिजीविओं, व कलाकारों, अभिनेताओं, लेखकों, के साथ खड़ी है। जिस प्रकार भगवा फौजे से आवाज़ उठा रहे नागरिको का बलपूर्वक शिकार कर रही है और लोकतांत्रिक मूल्यों को तहस नहस कर रही है उसे देखते हुए SDPI इस फासीवाद मोदी सरकार के खिलाफ एक राष्ट्रीय आंदोलन “फासीवाद भारत छोड़ो” 9 अगस्त को सरे देश मे आयोजित किया।
UAPA के ख़िलाफ उठीं आवाज़
भारत के संविधान का अध्याय 22 देश के नागरिको को गिरफ्तारी से अपना बचाव करने के लिए है, परन्तु इस अध्याय मे नज़रबंद वर्ग को जोड़ कर इस अध्याय के मूलतः को ख़त्म करने की जो साजिश है वह बहुत ही भयावह है। इसी प्रकार से कई कानूनों मे बदलाव कर दिया गया है जैसे कि TADA , POTA , MISA , NSA, और UAPA और इन सभी का प्रयोग एक विशेष वर्ग के खिलाफ किया जा रहा है। सामान्य तौर पर अभियोजन पक्ष पर आरोपी पर गुनाह साबित करने की ज़िम्मेदारी रेहती है, परन्तु UAPA के तहत आरोपी पर अपने आप को बेक़सूर साबित करने का दबाव बना रहता है और सिर्फ यह ही नहीं पुलिस आरोपी को बिना अदालती जाँच के गिरफ्तार भी कर सकती है।
भारत की लोकतान्त्रिक विशेषताए उसके इंसाफ के प्रति झुकाव से व्यक्त होती है परन्तु केंद्रीय सरकारे अपने दखल से अपने अनुसार बदलाव कर इन कानूनों को अपने इस्तेमाल मे लाती है। इन कानूनों से आम नागरिक के हितों को कमज़ोर कर दिया जाता है और साथ ही आवाज़ उठा रही संस्थाओ को खामोश करने के लिए इस्तेमाल मे लाया जाता है । UAPA के नए संशोधन की बदौलत प्रदेश पुलिस चीफ की निर्णय लेने की शक्ति समाप्त कर NIA चीफ को दे दी गयी है।
एक लम्बी प्रक्रिया के बाद भारत के नागरिको की समाज के प्रति जागरूकता की मदद से RIGHT TO INFORMATION कानून मे लाया गया। इस अधिनियम के आने कई बदलाव देखे गए, अभी तक नागरिक सरकारी दफ्तरों और अधिकारियो की कार्यप्रणाली से वंचित था और कई ज़रूरी तथा गैर ज़रूरी सूचनाओं से दूर था। परन्तु इस कानून के बाद नागरिको की सामाजिक घटनाओ के प्रति जागरूकता बड़ी और साथ ही किसी सरकारी दफ्तर से सहयता न मिलने पर देश का नागरिक इस कानून का इस्तेमाल कर बड़े बदलाव करने मे सफल रहा। राजनैतिक पार्टियों मे कोलाहल तब मच गया जब आयुक्तों ने इन पार्टियों को 2013 मे सुचना के कटघरे मे खड़ा कर दिया था, जिसके जवाब मे राजनैतिक पार्टियों ने आदेशों का उल्लघन किया लेकिन संसद मे सफलतापूर्ण संशोधन के बाद RTI के प्रस्ताव को समाप्त कर दिया गया।
कश्मीर को लेकर प्रदर्शन
26 अक्टूबर 1947 मे महाराज हरी सिंह और भारत सरकार के बीच एक समझौता हुआ था। जिसके तहत कश्मीर को विशेष प्रदेश का दर्जा दिया गया, इस समझौते के अंतर्गत केंद्रीय सरकार केवल रक्षा, संचार तथा विदेशी मामलो मे दखल रखेगा और बाकि मामले प्रदेश सरकार के अंतर्गत ही रहेंगे ।इस प्रक्रिया को कानूनी वैधता देने के लिए आर्टिकल 370 को भारत के संविधान मे जोड़ा गया, इस आर्टिकल मे साफ़ तौर लिखा गया है की किसी भी प्रकार का संक्षोधन जम्मू कश्मीर की असेंबली मे बात चीत के बडग़ईर नहीं किया जा सकता। परन्तु इसके विपरीत भारत सरकार ने 5 अगस्त 2019 को इस कानून का उल्लंघन कर इसे ख़त्म कर दिया। इस सफलता के लिए जम्मू कश्मीर के नागरिको के मूल्य अधिकारों को नज़र अंदाज़ कर उनके साथ सरकार जिस प्रकार का व्यवाहर कर रही है वह घिनोना है, उनको हर प्रकार के संचार, साधनो, और व्यवस्था से दूर रखा जा रहा है। जम्मू कश्मीर की अवाम और सामाजिक संस्थाएं आर्टिकल 370 और आर्टिकल 35 A को दोबारा लागु करने की जो मांग कर रही है उसमे SDPI का पूर्ण समर्थन है।
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