नई दिल्ली: राहुल गांधी ने लद्दाख में चीनी सेना की मौजूदगी मामले में सरकार पर सीधा हमला बोला है, उन्होंने ट्वीट कर कहा है कि चीनी सेना का लद्दाख की कुछ पर जमीन कब्जा पर हो गया है यह बात कितनी सत्य है? सरकार क्या इसके बारे में बताएगी,  इस बीच, सेना के अंदरूनी हिस्सों में भी इसको लेकर बेचैनी पैदा हो गयी है, और इसे कारगिल मोमेंट के तौर पर देखा जा रहा है, कारगिल पाकिस्तान के साथ हुआ था जिसमें पाक सेना ने चुपके से भारतीय क्षेत्र में प्रवेश कर लिया था, इस बार बताया जा रहा है कि यही काम चीन ने किया है, रेडिफ डॉट कॉम में प्रकाशित एक लेख में सैन्य मामलों के विशेषज्ञ अजय शुक्ला ने कुछ इसी तरफ इशारा किया है,

उन्होंने लिखा है कि चीन की पीएलए यानी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी लगातार गलवान नदी और पैंगांग झील इलाके में अपनी स्थिति मजबूत करती जा रही है, उनकी मानें तो अभी तक भारतीय सेना जिन इलाकों में पेट्रोलिंग करती थी उसके तीन किमी भीतर तक चीनी सैनिक घुस आए हैं, उन्होंने लिखा है कि जिस तरह से कारगिल घुसपैठ पाकिस्तानी सैनिकों को श्रीनगर-जोजिला-कारगिल-लेह हाईवे पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लद्दाख को पूरे उत्तर से काट देने की तरफ प्रेरित थी, उसी तरह से गलवान नदी घाटी में हुई यह चीनी घुसपैठ सामरिक दरबुक-श्योक-दौलतबेग ओल्डी (डीएसडीबीओ) हाईवे पर पीएसए का प्रभाव स्थापित कर काराकोरम पास के बेस में अलग-थलग पड़े ‘सब सेक्टर नॉर्थ’ (एसएसएन) को बिल्कुल काट देती है,

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उनकी मानें तो पीएलए के सैनिकों ने गलवान नदी घाटी और उसको जोड़ने वाली श्योक नदी के मुंहाने पर अपना बेस बना लिया है जो डीएसडीबीओ रोड से महज  डेढ़ किमी दूर है, पीएलए अब इस रोड पर स्थाई तौर पर अपना वर्चस्व स्थापित करने की मंशा से आयी है, यहां तक कि जब चीन के अधिकारी इस बात की घोषणा कर रहे हैं कि मुद्दे को शांतिपूर्ण तरीके से हल कर लिया जाएगा उसी समय पीएलए के घुसपैठिये बंकर निर्माण के भी काम में लगे हुए हैं, जबकि पीएलए के इंजीनियर अपनी फारवर्ड सैनिक टुकड़ी को वास्तविक नियंत्रण रेखा से जुड़े चीन के औपचारिक रोड इंफ्रास्ट्रक्चर से जोड़ने में लगे हुए हैं,

शुक्ला के मुताबिक सरकारी सूत्रों का मानना है कि अगर परंपरागत तरीके से भी अनुमान लगाया जाए तो पीएलए ने पिछले महीने भारत के पैट्रोलिंग वाले इलाके 60 वर्ग किमी के हिस्से पर कब्जा कर लिया है, यह पैंगांग झील और गलवान नदी सेक्टर के उत्तरी किनारों पर बराबर-बराबर बंटा हुआ है, अब चीनी सैन्य टुकड़ियों ने एलएसी से जुड़े भारत के ढेर सारे पेट्रोलिंग प्वाइंट्स (पीपी) तक की पहुंच को ब्लॉक कर दिया है, इन पर भारतीय सेना दशकों से अपना दावा ठोंकती हुई पेट्रोलिंग करती थी, अजय शुक्ला के मुताबिक ये पीपी-14, 16, 18 और 19 हैं,

साल के ऐसे मौके पर जब चीनी घुसपैठ का खतरा सबसे ज्यादा रहता है सेना उधमपुर बेस पर स्थित उत्तरी कमान को प्रशिक्षण अभ्यास के बहाने रिजर्व फार्मेशन के तौर पर परंपरागत रुप से यहां भेजा जाता रहा है, लेकिन इस साल महामारी के चलते रिजर्व सेना को शांति वाले इलाकों में बनाए रखा गया, इसका नतीजा यह रहा कि जब पीएलए की तरफ से कई क्षेत्रों से घुसपैठ होने लगी तो रिजर्व फोर्स की अचानक कमी पड़ गयी, अभी जब तक रिजर्व सेना के तौर पर नार्दर्न आर्मी मौके पर पहुंचती पीएलए ने हासिल किए गए नये क्षेत्र में अपनी स्थिति को मजबूत कर लिया था,

दिल्ली आर्मी हेडक्वार्टर में माना जा रहा है कि लद्दाख में बैठे उच्च जनरल झपकी ले रहे थे, यहां तक कि लेह और उधमपुर स्थित नार्दर्न आर्मी के कमांडरों के बदले जाने की भी बात उठ रही है, 1999 की कारगिल घुसपैठ की जांच में खुफिया नाकामी को प्रमुख वजह बतायी गयी थी, और किसी एक भी जनरल की न तो नौकरी गयी थी और न ही उसे हटाया गया था, सेना ने पूरा इल्जाम कारगिल में एक अकेले ब्रिगेडियर पर थोप दिया था, रक्षा विभाग के खुफिया चीफ रहे एक अधिकारी ने अपना नाम न जाहिर करने की शर्त पर मौजूदा स्थितियों के लिए खुफिया के साथ-साथ आपरेशन की नाकामी को जिम्मेदार ठहराया,

उन्होंने कहा कि उत्तरी लद्दाख में भारतीय मौजूदगी में विस्तार को लेकर चीन हमेशा से अति संवेदनशील रहा है, ऐसा इसलिए क्योंकि यह अक्साई चिन से जुड़ता है जिसके जरिये चीन ने अपना सामरिक पश्चिमी हाईवे बना रखा है जो तिब्बत को जिंजियांग से जोड़ता है, जनरल ने सवालिया लहजे में पूछा कि “जब हमने इस इलाके में 255 किमी डीबीडीएसओ रोड का निर्माण किया तब सेना ने श्योक के पूर्वी इलाके में सैनिकों को क्यों नहीं तैनात किया खासकर गलवान घाटी में, जिससे चीन की तरफ से पूर्वी इलाके से होने वाली किसी भी हरकत पर लगाम लगायी जा सकती थी,”

इस सिलसिले में जनरल ने चीन द्वारा 2013 में दौलत बेग ओल्डी सेक्टर में स्थित डेपसैंग में की गयी घुसपैठ की याद दिलायी, यह उसके तुरंत बाद हुआ था जब भारत ने वहां एक लैंडिंग ग्राउंड को सक्रिय किया था साथ ही सैनिकों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी की थी, सेना में इस बात को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है कि क्या केंद्र सरकार चीन को उसके द्वारा कब्जा किए गए इलाके को बनाए रखने की इजाजत देगा, सार्वजनिक तौर पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह एलएसी को लेकर उस अस्पष्टता की बात को स्वीकार कर चुके हैं, जिसके चलते इलाके में क्षेत्रों का मालिकाना बहुत साफ नहीं है

आभार: अजय शुक्ला

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