शमशाद रज़ा अंसारी
गौशाला अंडरपास में किशोर की डूबने से हुई मौत के बाद महापौर ने नगरायुक्त को पत्र लिख कर नाले साफ़ करने वाली फर्म को ब्लैकलिस्ट करने को कहा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि हादसा होने के बाद ही नगर निगम द्वारा कागज़ी कार्यवाई क्यों शुरू की जाती है। क्या कागज़ी कार्यवाई करने से मरने वाला ज़िंदा हो जाता है या जिस माँ की गोद उजड़ती है वो फिर से भर जाती है। नगर निगम खुले नालों का हादसे से पहले इंतज़ाम क्यों नही करता है। अभी शहर में कई ऐसे नाले हैं जो नगर निगम के सुस्त रवैये या फिर यूँ कहिए कि नगर निगम की मिली भगत से मौत को दावत दे रहे हैं।
ऐसा ही एक नाला नये बस अड्डे के पीछे वार्ड-92 में मौज़ूद है। हिना पब्लिक स्कूल की जड़ में बना यह नाला शायद किसी मासूम की ज़िन्दगी की भेंट लेने के बाद ही बन्द होगा। कोरोना संक्रमण के कारण फिलहाल स्कूल बन्द है। स्कूल खुला होने पर इसमें सैकड़ों बच्चे पढ़ने आते हैं। जिनमें अधिकांश की उम्र 3-6 वर्ष है। कई बच्चे इस नाले में गिर चुके हैं। गनीमत यह रही कि स्थानीय निवासियों की तत्परता के चलते कोई अनहोनी नही हुई। स्थानीय निवासी एवं पार्षद कई बार इस नाले को कवर करने की मांग कर चुके हैं। लेकिन हादसे के बाद जागने के आदि हो चुके नगर निगम अधिकारियों के कानों पर जूँ तक नही रेंगती।
हालाँकि खानापूर्ती करने के लिए नाले के इर्द गिर्द बांस लगा दिए गये हैं। लेकिन तस्वीरों में स्पष्ट दिख रहा है कि इन बांसों से नाले की सुरक्षा से ज़्यादा इन्हें लगाने और लगवाने वाले को फ़ायदा पँहुचा है। नाले पर लगे बांस सुरक्षा की दृष्टि से अपर्याप्त हैं। नगर निगम को चाहिए कि कोई बड़ा हादसा होने से पहले ही नाले का कोई पुख़्ता इंतज़ाम करे। अन्यथा यह नाला भी किसी दिन बड़ी अनहोनी का कारण बनेगा। इससे पहले इसी के पास बने दूसरे नाले में गिरने से तीन बच्चों की डूबने से मौत हो गयी थी। उसके बाद नाले को कवर किया गया था।
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