नई दिल्ली: केरल स्थित 3.8 लाख सदस्यों वाली यूनाईटेड नर्सेस एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि सरकार ने देश भर के स्वास्थ्य और सुरक्षा कर्मियों की जोखिम संबंधी गंभीर चिंताओं को दूर करने के लिए COVID -19 के बाबत कोई राष्ट्रीय प्रबंधन प्रोटोकॉल तक नहीं बनाया है। ‘निरंतर और तेजी से फैलती’ वैश्विक महामारी को देखते हुए यूनाइटेड नर्सेस एसोसिएशन ने, अधिवक्ता सुभाष चंद्रन और बीजू पी रमन द्वारा कोर्ट को बताया है कि नर्स और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के पास पीपीई किट जैसे बचाव के साधन नहीं हैं जिससे उन्हें संक्रमित होने का खतरा बना हुआ है।

 “स्वास्थ्य कर्मी COVID-19 प्रकोप के प्रति प्रतिक्रिया देने वालों की अग्रिम पंक्ति में हैं जिससे कि वो लगातार जोखिमों के संपर्क में होते हैं जो कि उन्हें हर समय संक्रमण का खतरा रहता है। याचिका में कहा गया है कि जोखिमों में रोगाणु के संपर्क में रहना, ज़्यादा समय तक काम करना, मनोवैज्ञानिक यातना, थकान, व्यावसायिक अक्रियाशीलता, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक हिंसा आदि शामिल हैं। याचिका में जिन समस्याओं को प्रमुखता से उठाया गया है, उनमें कई अस्पतालों में व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE) की कम मात्रा उपलब्धता और खराब गुणवत्ता, पर्याप्त मात्रा में COVID-19 परीक्षण किटों का उपलब्ध न होना, संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण पर प्रशिक्षण की कमी, आइसोलेट वार्डों में बुनियादी सुविधाओं की कमी, नगण्य परिवहन सुविधाओं और छुट्टी करने पर वेतन में कटौती के साथ ओवर टाइम के मजबूर करने जैसी मानसिक यातना, गर्भवती स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, स्तनपान कराने वाली या कमजोर प्रतिरक्षा वाले स्वास्थकर्मियों को काम के लिए मजबूर करना आदि शामिल है।

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एसोसिएशन ने कोर्ट से यह भी आग्रह किया कि सरकार को आदेश दे कि वो प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज के तहत दी जाने वाली पर्सनल एक्सीडेंट कवर के स्कोप को और बढ़ाकर कोविड-19 के खिलाफ लड़ने वाले स्वास्थ्य क्षेत्र के सभी स्वास्थ्य कर्मियों को शामिल करे इसमें एडहॉक पर भर्ती किए स्वास्थ्यकर्मियों को भी शामिल किया जाए।

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