नई दिल्ली/जयपुर : सहकारी कर्मचारियों की हड़ताल अन्नदाताओं पर भारी पड़ रही है, कर्मचारियों द्वारा किए जा रहे कार्य बहिष्कार के चलते किसानों को रबी सीजन के लिए समय पर फसली ऋण नहीं मिल पा रहा है.
संघ के बैनर तले कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर पिछली 16 अक्टूबर से कार्य बहिष्कार कर रहे हैं, इस कार्य बहिष्कार के चलते पिछले एक महीने से ज्यादा समय से फसली ऋण वितरण का कार्य ठप पड़ा है.
प्रदेश में एक अक्टूबर से रबी सीजन के लिए फसली ऋण वितरण की शुरुआत हुई थी, सीजन के दौरान 8 हजार 265 करोड़ का ऋण वितरित किए जाने का लक्ष्य है.
लेकिन कर्मचारियों के कार्य बहिष्कार के चलते अब तक महज करीब 714 करोड़ का ऋण ही वितरित हो पाया है जो लक्ष्य का महज करीब 8 फीसदी ही है, केन्द्रीय सहकारी बैंकों द्वारा किसानों को यह अल्पकालीन फसली ऋण शून्य प्रतिशत ब्याज पर उपलब्ध करवाया जाता है.
33 जिलों में से केवल सवाईमाधोपुर, बीकानेर, कोटा, जयपुर, बाड़मेर, झालावाड़ और झुंझुनूं जिले ही ऐसे हैं जिनमें लक्ष्य के मुकाबले 10 फीसदी से ज्यादा ऋण वितरण हो पाया है, सहकारी कर्मचारियों के कार्य बहिष्कार के चलते किसानों को ऋण वितरण का काम ठप हो गया है और सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य पूरा किये जाने पर आशंकाओं के बादल मंडराने लगे हैं.
सहकारी समितियों के कर्मचारी नियोक्ता निर्धारण की मांग कर रहे हैं, इसके साथ ही 18 फरवरी 2019 के अनुसार कॉमन कैडर लागू करने और 10 जुलाई 2017 तक स्क्रीनिंग करवाने जैसी मांगें भी की जा रही है, पूर्व में भी कर्मचारी कई बार आन्दोलन का रास्ता अख्तियार कर चुके हैं और आश्वासन पर मान भी चुके हैं.
लेकिन उनकी मांगें अभी तक पूरी नहीं हो पाई है, इस बार कर्मचारी आदेश जारी होने तक आन्दोलन जारी रखने पर अड़े हुए हैं, पिछले दिनों सहकारिता मंत्री ने कहा था कि जल्द ही कर्मचारियों को मना लिया जाएगा लेकिन अभी तक यह दावा सही साबित नहीं हुआ है.
कर्मचारियों की मांगों पर विचार और चर्चा कर सुझाव देने के लिए 11 नवम्बर को वरिष्ठ अधिकारियों की एक 5 सदस्यीय कमेटी का गठन किया जा चुका है, इस कमेटी के साथ संगठन की एक दौर की सकारात्मक वार्ता भी हो चुकी है, अब कमेटी और संगठन के बीच शुक्रवार को फिर अगले दौर की वार्ता होनी है.
उसमें सुलह की उम्मीद लगाई जा रही है, राजस्थान सहकारी कर्मचारी संघ के प्रदेश महामंत्री नन्दाराम चौधरी का कहना है कि उनकी मांगों से सम्बन्धित प्रस्ताव पर वित्त विभाग द्वारा चार बार अडंगा लगाया जा चुका है, जबकि मांगों को माने जाने से सरकार पर वित्तीय भार नहीं पड़ रहा है.
मजबूर होकर कर्मचारियों को ऋण वितरण रोकना पड़ा है, अगर कल कमेटी के साथ होने वाली बातचीत में भी सुलह का रास्ता नहीं निकलता है तो आने वाले दिनों में किसानों की परेशानी और ज्यादा बढ़ना तय है.
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