शमशाद रज़ा अंसारी
सुशांत सिंह की आत्महत्या को केवल एक ख़बर की तरह पढ़ कर आगे मत बढ़िए। यह केवल एक ख़बर नही है,बल्कि पतन की ओर अग्रसर हो रहे समाज को आईना दिखाती हुई घटना है। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुये प्रथम दृष्टया इस आत्महत्या का कारण कमज़ोर होती आर्थिक स्थिति को माना जा रहा है। ऐसा अनुमान लगाना स्वभाविक है क्योंकि यह समय ऐसा है जिसमें किसी का कुछ पता नही है कौन कैसी हालत में है। हो सकता है सुशांत भी ऐसी ही परिस्थिति से गुज़र रहे हों। सुशांत की अंतिम फ़िल्म छिछोरे आत्महत्या से रोकने के लिए प्रेरित करने को लेकर थी।
लेकिन सुशांत स्वयं द्वारा निभाये गये। किरदार से ही प्रेरणा प्राप्त नही कर सके। आत्महत्या को आसान समझने वाले इतना समझ लें कि आत्महत्या आसान कदम नही होता है। जीवन में ऐसा ज़रूर घटित होता है जिसके कारण आत्महत्या जैसा कदम उठाया जाता है। वो कारण ऐसा होता है जिसके लिए माँ-बाप, भाई-बहन, बीवी बच्चे सबका प्यार कम पड़ जाता है। यूँ भी कह सकते हैं कि अवसादग्रस्त व्यक्ति सबके बारे में सोचना बन्द कर देता है। उसे केवल अपनी वो परेशानी दिखाई देती है जिसका उसकी नज़र में कोई हल नही होता। यदि प्रेम सम्बंधों में हुई आत्महत्या को अलग किया जाये तो इसके बाद आर्थिक स्थिति के कारण सबसे ज़्यादा आत्महत्या की जाती हैं। दरअसल परेशानी की शुरुआत तब होती है जब हम भौतिक सुख और समाज में अपना स्टेट्स बनाये रखने की अंधी दौड़ में शामिल हो जाते हैं।
हम यह स्टेट्स बनाये रखने के लिए मशीन की तरह काम करते हुये पैसा कमाते हैं। आमदनी के बराबर खर्चे बाँध लिए जाते हैं। मकान से लेकर मोबाइल तक ईएमआई कुछ समझने का मौक़ा ही नही देती हैं। एक के बाद एक किश्त के कारण इतना भी नही होता है कि कोई विपदा आने पर कुछ महीने बैठ कर सुकून से खा सकें। किसी कारणवश नौकरी छूट जाती है या कोई विपदा आती है तब परेशानी का दौर शुरू होता है। ऐसे समय में इंसान ख़ुद को अकेला महसूस करता है। क्योंकि पैसा कमाने के चक्कर में हमारे सम्बंध पीछे छूट जाते हैं। हमारे पास कोई ऐसा हमदर्द नही रहता जिससे हम अपने दिल की बातें कर सकें या अपनी परेशानी बता सकें। इसलिये पैसा कमाने के साथ साथ पैसा बचाना और सम्बंध कमाना भी सकें।
समाज कितना दोषी
किसी के द्वारा की गयी सुसाइड हमें केवल उसके द्वारा उठाया गया ग़लत कदम लगती है। जबकि ग़ौर किया जाए तो किसी के आत्महत्या करने में समाज भी बराबर का दोषी होता है। समाज के बनाये हालात ही उसे आत्महत्या के लिए मजबूर करते हैं। समाज में शादी के लिए जाति बंधन का होना तथा प्रेम विवाह को अनुचित मानना भी प्रेमी-प्रेमिका की आत्महत्या का कारण बनता है। “समाज क्या कहेगा” यही सोच कर प्रेम विवाह में अड़चने लगाई जाती हैं।
ऐसे में किसी की लड़की किसी के साथ भाग जाये तो यह समाज ही उसके माँ-बाप,भाई बहन को जीने नही देता। उस लड़की के घर से भाग जाने की सज़ा उसके पूरे घर को मिलती है। उस लड़की के घर कोई शादी करना पसन्द नही करता। ताने दे देकर ऐसा माहौल बना दिया जाता है कि कमज़ोर मनोस्थिति का व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है।
इसी तरह यदि कोई अमीर व्यक्ति हालात खराब होने पर ग़रीब हो जाता है तो उसका इतना मज़ाक बनाया जाता है कि वह मज़ाक बनने के डर/शर्म से आत्महत्या कर लेता है। यह सब समाज के बनाये हुये नियम हैं जिनमें हम सब फंसे होते हैं। किसी की बदहाली पर ताना देने और मज़ाक़ उड़ाने में हम सबसे आगे होते हैं। हमारे द्वारा दिए गये ताने ही हमें वापस अपनी तरफ लौटते हुये दिखाई देते हैं। हमें लगता है जैसे हमने दूसरे को कहा है वही हमारे लिए कहा जायेगा। यही शर्मिंदगी आत्महत्या पर मजबूर करती है।
अपने आसपास का माहौल हल्का बनाये रखें
यदि आपको किसी की आत्महत्या से वाक़ई में तकलीफ होती है तो अपने आसपास का माहौल हल्का बनाये रखें। जाति-धर्म और अमीरी-गरीबी के कारण बनी खाई को भरने का प्रयास करें। किसी के साथ कोई परेशानी पेश आती है तो उसे यह अहसास दिलाएं कि हम हर तरह साथ हैं। प्रेम विवाह को ऐसा मुद्दा न बनायें कि किसी को अपनी जान देनी पड़े।
आर्थिक हालात की बात की जाये तो लॉक डाउन के बाद आई बेरोज़गारी में ज़रूरी है कि अपने आसपास के लोगों से संवाद कायम किया जाये। चाय के बहाने या साथ घूमने के बहाने हालातों पर चर्चा की जाये। यदि आप किसी की मदद करने लायक हैं तो सबके चेहरों को पढ़िए। उनकी आँखों में झांकिए। उनके हाथ फैलाने का इंतज़ार मत कीजिए। क्योंकि कुछ सवाली बड़े खुद्दार होते हैं। उनके लिए किसी के आगे हाथ फैलाने से ज़्यादा आसान मौत को गले लगाना है।
अपने आसपास के लोगों के व्यवहार में आई तब्दीली को महसूस कीजिए। देखिये वो डिप्रेशन में तो नही है। कोई डिप्रेशन में नज़र आता है तो उसका हौंसला बढ़ाइए। फिजिकल डिस्टेंसिंग बनाये रखते हुये सोशल डिस्टेंसिंग दूर कीजिए। मौत को कंधा देने की बजाये ज़िन्दगी को कंधा दीजिए। कहीं ऐसा न हो कि हमारे आसपास का ही कोई आत्महत्या कर ले और हम सोचें कि हम इसकी मदद कर सकते थे। सबके साथ हँसी ख़ुशी रहिए, मौत से किसकी यारी है, आज मेरी तो कल तेरी बारी है।
ऐसा न हो कि ज़िन्दगी में हम किसी का हाल न पूछें और मरने के बाद उसको ख़ुदकुशी का चर्चा करें। यह हमेशा याद रखें कि जिन चार लोगों की बातों के डर से हम ख़ुद को मौत के हवाले कर देते हैं वो चार लोग हमें कंधा देने भी नही आते हैं।
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