नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है और इस संबंध में दाखिल की गई याचिका खारिज कर दी है, SC ने कहा कि यह योजना 2018 में लागू हुई और चल भी रही है.
इसके लिए सुरक्षा उपाय भी किए गए हैं, बंगाल समेत अन्य राज्यों में चुनाव के दौरान चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने वाली अर्जी पर SC का शुक्रवार को यह फैसला आया है, इस मामले पर 24 मार्च को SC ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था.
सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने SC में कहा कि वो चुनावी बांड योजना का समर्थन करते हैं क्योंकि अगर ये नही होगा तो राजनितिक पार्टियों को चंदा नगद मिलेगा, आयोग ने कहा कि हालांकि वो चुनावी बांड योजना में और पारदर्शिता चाहता है.
प्रशांत भूषण ने कहा इलेक्टोरल बॉन्ड्स तो सत्ताधारी दल को चंदे के नाम पर रिश्वत देकर अपने काम कराने का जरिया बन गया है.
इस पर SC ने अहम टिप्पणी की कि हमेशा यह रिश्वत का चंदा सत्ताधारी दल को ही नहीं बल्कि उस दल को भी चंदा मिलता है, जिसके अगली बार सत्ता में आने के आसार प्रबल रहते हैं.
भूषण ने कहा कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने भी इस पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है क्योंकि आरबीआई का कहना है कि ये बॉन्ड्स का सिस्टम तो एक तरह का हथियार औजार या जरिया है आर्थिक घपले का.
कई लोग देश विदेशो में पैसे इकट्ठा कर औने पौने इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीद सकते हैं, यह दरअसल सरकारों के काले धन के खिलाफ कथित मुहिम की सच्चाई बयान करता है बल्कि उनकी साख पर भी सवाल खड़े करता है.
दरअसल SC में एक अर्जी दाखिल कर केंद्र और अन्य पक्षों को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि चुनावी बॉन्डकी आगे और बिक्री की अनुमति नहीं दी जाए.
याचिका में कहा गया था कि राजनीतिक दलों की फंडिंग और उनके खातों में पारदर्शिता की कथित कमी से संबंधित एक मामले का निपटारा होने के बाद ही बॉन्ड की बिक्री की अनुमति हो.
लंबित याचिका में एनजीओ की ओर से दाखिल आवेदन में दावा किया गया कि इस बात की गंभीर आशंका है कि बंगाल और असम समेत कुछ राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चुनावी बॉन्डों की आगे और बिक्री से मुखौटा कंपनियों के जरिये राजनीतिक दलों का अवैध और गैरकानूनी वित्तपोषण और बढ़ेगा.
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