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लॉक डाउन के बीच शब-ए-बारात, क्यों खास है शब-ए-बराअत की रात

नई दिल्ली: शब-ए-बरात 9 अप्रैल गुरुवार की शाम से शुरू होकर यह 10 अप्रैल शुक्रवार की शाम तक चलेगी, फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम डॉ. मुफ्ती मोहम्मद मुकर्रम बताते हैं कि आम बोलचाल में लोग इसे शब-ए-बरात कह देते हैं, लेकिन ये शब-ए-बराअत है, यहां ‘बरा’ का मतलब बरी किए जाने से है और ‘अत’ का अता किए जाने से, यानी यह (जहन्नुम से) बरी किए जाने या छुटकारे की रात होती है,

इस्लाम में इस रात का बहुत महत्व है, इस रात को की जाने वाली हर जायज दुआ को अल्लाह जरूर कबूल करते हैं, इस पूरी रात लोगों पर अल्लाह की रहमतें बरसती हैं, इस रात में पूरे साल के गुनाहों का हिसाब-किताब भी किया जाता है और लोगों की किस्मत का फैसला भी होता है, इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से शाबान का महीना शुरू हो चुका है और इसी महीने में शब-ए-बरात मनाई जाती है,

मुफ्ती मुकर्रम कहते हैं कि इस रात को लोग न सिर्फ अपने गुनाहों से तौबा करते हैं बल्कि अपने उन बुजुर्गों की मग़फिरत के लिए भी दुआ मांगते हैं जिनका इंतकाल हो चुका होता है, यही वजह है कि लोग इस मौके पर कब्रिस्तानों में भी जाते हैं, हालांकि इस बार लॉकडाउन चल रहा है इसलिए सभी लोगों से अपील की जा रही है कि घरों में रहकर ही इबादत करें, नमाज पढ़ें और अल्लाह से माफी मांगें,

मुफ्ती मुकर्रम बताते हैं कि दो तरह की किस्मत होती है, एक जो बदली नहीं जा सकती, जैसे मौत को टाला नहीं जा सकता और दूसरी जो बदली जा सकती है, मसलन अगर कोई अल्लाह से यह मांगता है कि उसे तंदुरुस्ती दे तो उसकी किस्मत में तंदुरुस्ती लिखी जा सकती है, गुरुवार अप्रैल की शाम को मगरिब की अजान होने के साथ शब-ए-बरात की शुरुआत होगी और शुक्रवार को शाबान का रोजा भी रखा जाएगा,

कोरोना वायरस के कारण दुनिया के अधिकतर धार्मिक स्थलों पर भी ताला लगा है, इसका असर अब सऊदी अरब के मक्का-मदीना पर भी देखने को मिल सकता है, जुलाई में होने वाली हज यात्रा वायरस के कहर के चलते रद्द की जा सकती है, अगर ऐसा हुआ तो ये 222 साल के बाद होगा जब हज की यात्रा पर रोक लगी हो, इससे पहले 1798 में ऐसा हुआ था,

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इससे पहले सऊदी अरब सरकार ने उमरा पर बैन लगा दिया था और सभी सीमाएं सील कर दी थीं, बता दें कि मक्का-मदीना में हर साल हज यात्रा के दौरान दुनियाभर से करीब 30 लाख लोग पहुंचते हैं, हज यात्रा का समय चंद्र कैलेंडर से तय किया जाता है, निश्चित इस्लामी महीने में मक्का की यात्रा को हज कहा जाता है, ऐसी मान्यता है कि हर समर्थ मुस्लिम को हज की यात्रा जरूर करनी चाहिए

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