नई दिल्ली : कांग्रेस पार्टी ने अपने नये अध्यक्ष की तलाश तेज कर दी है इसी कड़ी में कल अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बड़े नेताओं की बड़ी बैठक बुलाई.
जानकारी के अनुसार, कांग्रेस के बड़े नेताओं के इस जी-23 समूह की बैठक में नेताओं के साथ सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका भी रह सकते हैं.
कांग्रेस के इस मंधन के बीच सहयोगी राजद ने निशाना सधा, नेता शिवानंद तिवारी ने कांग्रेस को बिना पतवार की नाव बताते हुए राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
शिवानंद तिवारी ने कहा, ‘राहुल गांधी में लोगों को उत्साहित करने की क्षमता नहीं है, जनता की बात तो छोड़ दीजिए, उनकी कांग्रेस के लोगों का ही उनपर भरोसा नहीं है.
इसलिए जगह-जगह के लोग कांग्रेस पार्टी से मुंह मोड़ रहे हैं, सोनिया जी कामचलाऊ अध्यक्ष के रूप में किसी तरह पार्टी को खींच रही हैं.’
कांग्रेस की बैठक होने जा रही है, पता नहीं उस बैठक का नतीजा क्या निकलेगा, लेकिन यह स्पष्ट है कि कांग्रेस की हालत बिना पतवार के नाव की तरह हो गई है, कोई इसका खेवनहार नहीं है.
राजीव गांधी अनिच्छुक राजनेता रहे हैं, वैसे भी यह स्पष्ट हो चुका है कि राहुल गांधी में लोगों को उत्साहित करने की क्षमता नहीं है, जनता की बात तो छोड़ दीजिए, उनकी कांग्रेस के लोगों का ही भरोसा उन पर नहीं है.
इसलिए जगह-जगह के लोग कांग्रेस पार्टी से मुंह मोड़ रहे हैं, खराब स्वास्थ्य के बावजूद बहुत ही मजबूरी में सोनिया जी कामचलाऊ अध्यक्ष के रूप में किसी तरह पार्टी को खींच रही हैं, मैं उनकी इज्जत करता हूं.
सीताराम केसरी के जमाने में कांग्रेस किस तरह डूबती जा रही थी, वैसी हालत में उन्होंने कांग्रेस पार्टी का कमान संभाला था और पार्टी को सत्ता में पहुंचा दिया था, हालांकि उनके विदेशी मूल को लेकर काफी बवाल हुआ था.
बीजेपी की बात छोड़ दीजिए, कांग्रेस पार्टी में भी उनके नेतृत्व को लेकर गंभीर संदेह व्यक्त किया गया था, शरद पवार आदि उसी जमाने में सोनिया जी के विदेशी मूल के ही मुद्दे पर पार्टी से अलग हुए थे.
हालांकि 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिला बहुमत सोनिया जी के ही नेतृत्व में मिला था, इसलिए सोनिया जी ही पीएम की कुर्सी की स्वभाविक अधिकारी थीं, लेकिन उनका पीएम नहीं बनना असाधारण कदम था, उसी कुर्सी के लिए हमारे देश के दो बड़े नेताओं ने क्या-क्या नाटक किया था, हमारे जेहन में है.
अपनी जगह पर मनमोहन को उन्होंने पीएम के रूप में नामित किया था, यूपीए के नेताओं का उनके नाम पर समर्थन पाने के लिए वे सबसे उनको मिला रही थीं, उसी क्रम में मनमोहन सिंह जी को लेकर लालू जी का समर्थन हासिल करने के लिए उनके तुगलक लेन वाले आवास पर आई थीं.
संयोग से उस समय मैं वहां उपस्थित था, बहुत नजदीक से उनको देखने का अवसर उस दिन मुझे मिला था, पीएम की कुर्सी त्याग कर आई थीं, उस दिन का उनका चेहरा मुझे आज तक स्मरण है, उनके चेहरे पर आभा थी!
त्याग की आभा उनके चेहरे पर दमक रही थी, अद्भुत शांति उनके चेहरे पर थी, लालू जी ने मेरा उनसे परिचय कराया, मैंने बहुत ही श्रद्धा के साथ उनको प्रणाम किया था.
आज उन्हीं सोनिया जी के सामने एक यक्ष प्रश्न है, ‘पार्टी या पुत्र’ ? या यूं कहिए कि ‘पुत्र या लोकतंत्र’? कांग्रेस पार्टी की महत्वपूर्ण बैठक होने वाली है, मैं नहीं जानता हूं कि मेरी बात उन तक पहुंचेगी या नहीं.
लेकिन देश के समक्ष जिस तरह का संकट मुझे दिखाई दे रहा है वही मुझे अपनी बात उनके सामने रखने के लिए मजबूर कर रहा है, कांग्रेस पार्टी आज के दिन भी क्षेत्रीय पार्टियों से ऊपर है, कई राज्यों में वही बीजेपी के आमने-सामने है.
इसलिए वह जनता की नजरों में विश्वसनीय बने, मौजूदा सत्ता का विकल्प बने, य़ह लोकतंत्र को और देश की एकता को बचाने के लिए जरूरी है, अतः मेरे अंदर का पुराना राजनीतिक कार्यकर्ता मुझे बोलने के लिए दबाव दे रहा है.
जिस पार्टी में मैं हूं, उसका नेतृत्व मेरी इस बात को पसंद नहीं करें, लेकिन अब मैं किसी के पसंद और नापसंद से ज्यादा अहमियत अपनी आत्मा के आवाज को देता हूं.
उसी की आवाज के अनुसार मैं सोनिया जी से नम्रता पूर्वक अपील करता हूं कि जिस तरह से आपने पीएम की कुर्सी का मोह त्याग कर कांग्रेस को बचाया था, आज उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि पुत्र मोह त्याग कर देश में लोकतंत्र को बचाने के लिए कदम बढ़ाइए.
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