नई दिल्ली : टीआरपी घोटाले में नाम सामने आने के बाद से ही सुर्खियां बटोर रहे रिपब्लिक टीवी की मुश्किलें ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही हैं, कुछ दिन पहले मुंबई पुलिस ने रिपब्लिक टीवी की संपादकीय टीम के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया था और सोमवार को देश की शीर्ष अदालत ने रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्णब गोस्वामी को लेकर कुछ अहमतरीन टिप्पणियां की हैं, शीर्ष अदालत महाराष्ट्र सरकार की ओर से दायर उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें सरकार ने बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्णब गोस्वामी के ख़िलाफ़ चल रही जांच पर 30 जून को रोक लगा दी थी.

महाराष्ट्र सरकार की ओर से अदालत में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि हाई कोर्ट कैसे पूरी जांच पर रोक लगा सकता है, सिंघवी ने अदालत के सामने अर्णब गोस्वामी के द्वारा चलाए गए कथित सांप्रदायिक बयानों को रखा, अर्णब की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने पत्रकार की पूरी टीम के ख़िलाफ़ दर्ज एफ़आईआर के बारे में अदालत को बताया, सारी दलीलों को सुनने के बाद सीजेआई एसए बोबडे ने कहा कि हमारी पहली चिंता यह है कि समाज में शांति और सौहार्द्र बना रहे, सीजेआई ने कहा कि अदालत अर्णब की ओर से जिम्मेदारी का भरोसा चाहती है.

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बोबडे ने कहा कि अदालत प्रेस की आज़ादी की अहमियत को समझती है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि किसी मीडिया पर्सन से सवाल नहीं पूछे जाने चाहिए, साल्वे ने सीजेआई की बात के जवाब में कहा कि वह उनकी बातों से सहमत हैं लेकिन जो एफ़आईआर दर्ज की गई है, वह सही नहीं है, बोबडे ने कहा कि रिपोर्टिंग करते वक्त जिम्मेदारी का ध्यान रखा जाना चाहिए, कुछ ऐसी बातें हैं जहां पर सावधानी रखी जानी चाहिए, सीजेआई ने अर्णब से कहा, ‘मैं तुम्हारी रिपोर्टिंग को बर्दाश्त नहीं कर सकता,’ सीजेआई ने साल्वे से कहा कि वह क्या करना चाहते हैं, इस बारे में एक हलफनामा दें,

महाराष्ट्र सरकार ने अदालत को बताया कि अगर यह जांच शुरू हो जाती है, तब भी अर्णब गोस्वामी को गिरफ़्तार नहीं किया जाएगा और जांच में आने से 48 घंटे पहले उन्हें नोटिस भेजा जाएगा, इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से कहा कि वह इस बात की सूची दे कि अर्णब गोस्वामी के ख़िलाफ़ कितनी एफ़आईआर दर्ज हुई हैं, इस मामले में अब दो हफ़्ते बाद सुनवाई होगी, इससे पहले 23 अक्टूबर को एनएम जोशी मार्ग पुलिस ने आईपीसी की कई धाराओं के तहत रिपब्लिक टीवी की संपादकीय टीम के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया था, इन धाराओं के तहत तीन साल की जेल हो सकती है और ये ग़ैर जमानती धाराएं हैं.

मुंबई पुलिस के सब इंस्पेक्टर शशिकांत पवार की शिकायत पर रिपब्लिक टीवी की डेप्युटी एडिटर सागरिका मित्रा, एंकर शिवानी गुप्ता, डेप्युटी एडिटर शावन सेन, एग्जीक्यूटिव एडिटर निरंजन नारायणस्वामी, न्यूज़ रूम इंचार्ज और संपादकीय टीम के सभी लोगों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया गया था, एफ़आईआर में शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि रिपब्लिक टीवी की ओर से एक ख़बर चलाई गई, जिससे मुंबई महानगर के पुलिसकर्मियों के बीच असंतोष भड़काने की कोशिश की गई और मुंबई पुलिस की मानहानि भी की गई.

कुछ दिन पहले ही सुशांत मामले में रिपब्लिक टीवी द्वारा की गई रिपोर्टिंग को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट ने चैनल को जमकर फटकार लगाई थी, अदालत ने रिपब्लिक की वकील से कहा था, ‘जांच भी आप करो, आरोप भी आप लगाओ और फ़ैसला भी आप ही सुनाओ! तो अदालतें किसलिए बनी हैं?’, बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा, ‘सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या की या उसकी हत्या हुई?, इस मामले की जांच जब चल रही थी तो आप अपने चैनल पर चिल्ला-चिल्लाकर उसे हत्या कैसे करार दे रहे थे, किसकी गिरफ्तारी होनी चाहिए और किसकी नहीं, इस बात को लेकर आप लोगों से राय या जनमत कैसे मांग रहे थे? क्या यह सब आपके अधिकार क्षेत्र की बात है?’ अदालत ने बेहद सख़्त लहजे में कहा कि एक मृत व्यक्ति को लेकर भी आप लोगों के मन में कोई भावना नहीं है! सुशांत सिंह के प्रकरण में आपके चैनल ने जिस तरह की बातें कही हैं उसका समर्थन नहीं किया जा सकता.

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