Header advertisement

भारत रत्न मौलाना आज़ाद की जयंती पर आफ़ताब अहमद का विशेष लेख

भारत रत्न मौलाना आज़ाद की जयंती पर आफ़ताब अहमद का विशेष लेख

आज देश भारत रत्न मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को उनके जन्मदिवस पर याद कर रहा है। मौलाना आज़ाद एक प्रसिद्ध कवि, लेखक और पत्रकार थे। भारत की आज़ादी में उनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही और देश उन्हें हमेशा एक महान स्वतंत्रता सेनानी के रूप में याद किया जायगा। वे महात्मा गांधी के सिद्धांतो का हमेशा समर्थन करते थे और शिक्षा के क्षेत्र में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा व खिलाफत आंदोलन में भी मौलाना आज़ाद की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। कांग्रेस पार्टी को सींचने में भी उनका बहुत बड़ा योगदान रहा था और 1923 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे कम उम्र के प्रेसीडेंट बने और 1940 से 1945 के बीच कांग्रेस के प्रेसीडेंट रहे। इसी दौरान भारत छोड़ो आन्दोलन हुआ था, 1947 में आजादी के बाद वे भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के रामपुर जिले से 1952 में सांसद चुने गए और वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने।

भारत की आज़ादी की लड़ाई में मौलाना के संघर्ष को हमेशा उच्च श्रेणी में रखा जायगा, कांग्रेस के अन्य प्रमुख नेताओं की तरह मौलाना आज़ाद को तीन साल जेल में बिताने पड़े थे। आजाद अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ थे। उन्होंने अंग्रेजी सरकार को आम आदमी के शोषण के लिए जिम्मेवार ठहराया। जेल से निकलने के बाद उन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ आवाज़ बुलंद की और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष जारी रखा। मौलाना आज़ाद खिलाफ़त आन्दोलन के भी प्रमुख नेताओं में थे। गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन में भी वो सक्रिय रूप से शामिल रहे। आज़ादी के बाद उन्होंने भारतीय मुसलमानों से पाकिस्तान नहीं जाने और भारत में रुकने की भावुक अपील की थी।

मौलाना आज़ाद की प्राथमिक तालीम मदरसों से ही हुई, जब आज़ाद मात्र 11 साल के थे तो उनकी वालिदा का देहांत हो गया। उनकी आरंभिक शिक्षा इस्लामी तौर तरीकों से हुई। घर पर या मस्ज़िद में उन्हें उनके पिता ने तथा बाद में अन्य विद्वानों ने पढ़ाया। इस्लामी शिक्षा के अलावा उन्हें दर्शनशास्त्र, इतिहास तथा गणित की शिक्षा भी अन्य गुरुओं से मिली। आज़ाद ने उर्दू, फ़ारसी, हिन्दी, अरबी तथा अंग्रेजी़ भाषाओं में महारथ हासिल की। वे देवबन्दी विचारधारा के करीब थे और उन्होंने क़ुरान पाक के अन्य भावरूपों पर लेख भी लिखे। आज़ाद आधुनिक शिक्षावादी सर सैय्यद अहमद खाँ के विचारों से नजदीकी भी रखते थे।

देश की आज़ाद व राजनीति के प्रति उनके झुकाव ने उन्हें पत्रकार बना दिया, 1912 में एक उर्दू पत्रिका अल हिलाल का सूत्रपात किया जिसका मकसद मुसलमान युवकों को क्रांतिकारी आन्दोलनों के प्रति उत्साहित करना और हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल देना था। अंग्रेजों के दमन को झेलते हुई उन्होंने 1920 में राँची में जेल की सजा भुगतनी पड़ी।

1952 के संसदीय चुनावों में वे उत्तर प्रदेश की रामपुर संसदीय सीट से तथा 1957 के संसदीय चुनावों में हरियाणा की गुड़गांव संसदीय सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में सांसद चुने गए और वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने, उन्होंने ग्यारह साल तक राष्ट्र की शिक्षा नीति का मार्गदर्शन किया। मौलाना आज़ाद को ही ‘भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान’ अर्थात ‘आई.आई.टी.’ और ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ की स्थापना का श्रेय है। उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की। 1953 में संगीत नाटक अकादमी, 1954 में साहित्य अकादमी व
ललितकला अकादमी की सौगात उन्होंने भारत की आवाम को दी थी। मौलाना आज़ाद जब केंद्रीय सलाहकार शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष थे तो सरकार से केंद्र और राज्यों दोनों के अतिरिक्त विश्वविद्यालयों में सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा, 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा, कन्याओं की शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, कृषि शिक्षा और तकनीकी शिक्षा जैसे सुधारों की बुनियाद भी मौलाना आज़ाद ने रखी थी। उनके योगदानों को देखते हुए 1992 में उनको भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और आज उनके उल्लेखनीय कार्यों को देखते हुए उनका जन्मदिवस राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

गुड़गांव के मेवात का ये सौभाग्य था की मौलाना आज़ाद यहाँ से सांसद बने थे लेकिन दुर्भाग्य ये रहा की सांसद बनने के साल भर के अंदर ही 1958 को हार्ट अटैक से उनका देहांत हो गया था। ये देश और मेवात सहित गुड़गांव के लिए एक बड़ी छति साबित हुई जिसकी भरपाई करना संभव नहीं था।

मौलाना आज़ाद की जीवनी को हर धर्म के छात्रों को जरूर पढ़ना चाहिए ताकि उनके भविष्य को सही दिशा व दशा मिल सके, मौलाना आज़ाद इस बात की भी मिशाल हैं की मदरसे से पढ़े छात्र भी भारत को आई आई टी, यू जी सी, आईआईएम जैसे सर्वश्रेष्ठ इदारे दे सकते हैं। उनके जन्मदिवस पर यही कहा जा सकता है की मौलाना आज़ाद जैसे लोग सदियों में ही पैदा होते है।

हजारो साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है
बडी मुश्किल से होता है चमन मे दीदावर पैदा

मौलाना आज़ाद को खिराजे अकीदत।

( लेखक कांग्रेस विधायक दल के उपनेता व नूंह विधायक आफ़ताब अहमद हैं )

No Comments:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *