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अभी भी वक्त है महकते हुए चमन को उजड़ने से बचाया जा सकता है

अभी भी वक्त है महकते हुए चमन को उजड़ने से बचाया जा सकता है

मो. राशिद अल्वी (विधिकछात्र)
माननीय उच्चतम न्यायालय ने नुपुर शर्मा पर बहुत तल्ख टिप्पणियां की। यहां तक कह डाला कि आपकी वजह से पूरे देश का माहौल खराब हुआ है। आपने देश की सुरक्षा को ख़तरे में डाला।दिल्ली पुलिस को भी फटकार लगाई। मैं समझता हूँ कि इतना सब होने के बाद सिर्फ फटकार लगाना ही काफी नहीं है। शासन-प्रशासन के द्वारा ऐसे तमाम फ्रिंज एलिमेंट्स पर कार्रवाई नहीं करना यह दर्शाता है कि देश में विधि का शासन कितना कमजोर हो गया है। जब सुप्रीम कोर्ट ने माना नुपुर शर्मा के बयान से देश की सुरक्षा ख़तरे में पड़ी है तब सुप्रीम कोर्ट को फटकार के साथ साथ गिरफ्तारी का आदेश भी देना चाहिए था और देश में कमजोर होते विधि शासन के लिए प्रशासन को सख्त हिदायत भी देनी चाहिए थी।
भारत नफ़रत की ओर बहुत तेजी से बढ़ रहा है।जिसके दूरगामी परिणाम सामने हैं। कन्हैय्यालाल ,अफजरूल,अख़लाक़,पहलु ख़ान, हाफ़िज़ ज़ुनैद जैसी तमाम लिंचिंग की दिल दहला देने वाली घटनाएं आपके सामने हैं। भारत में नफ़रत अपने उरूज पर है। भारत की फिज़ाओं में फैली इंसानियत की खुश्बू गुम होती जा रही है। तेज़ी से फैलती इस नफ़रत को नहीं रोका गया तो आने वाला भारतीय दौर पूरी तरह हिंसा का रूप ले लेगा। कुछ सालों से आप देख रहे हैं कि नफ़रत के बीज बोकर जो ज़हर उगाया जा रहा है उसने आपको धार्मिक कट्टरवाद के दल दल में धकेलकर आपकी सौंच को घृणित बना दिया है और आपकी सोच को व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के ज्ञान तक सीमित कर दिया है और आपके दिमाग से इंसानियत का शब्द खत्म कर कटृरवाद की ओर धकेल दिया गया है।नफ़रत का सबसे बड़ा कारण‌ कटृरवादी राजनेता और तथाकथित धर्म गुरुओं के बयान और उन बयानों पर चलतीं कुछ तथाकथित चैनल्स और एंकर्स की धार्मिक तुष्टिकरण डिबेट्स हैं। ऐसा लगता है कि गांधी के अहिंसा का भारत अब गुम होता जा रहा है। जहां लिंचिंग करने वालो को मालाएं डाल कर स्वागत किया जाता है,आतंक के आरोपियों को संसद भेजा जाता है और गांधी की जयंती पर गोडसे को पूजा जाता है। देश दिन  प्रतिदिन हिंसात्मक और कुंठा से ग्रस्त होता जा रहा है। एक वो दौर था जब हमारे देश की फिज़ाएं पहले इंसानियत की खुशबू से महका करती थीं। जहां अपने अपने धार्मिक त्यौहार में शादियों में हर खुशी-गम में एक दूसरे के साथ होते थे। पहले होता था आजा तू मेरी ईद पर सिमईयां खाले और मैं तेरी होली पर गुजियां खालूं। पड़ोसी पड़ोसी के हर सुख दुख में साथ देता था चाहें मुस्लिम का पड़ोसी हिंदु हो या हिंदू का पड़ोसी मुस्लिम पर आज वो भाईचारा, इंसानियत और मानवता कहीं गुम सी हो गई है और उस इंसानियत को जिंदा रखने वाले भी अब कहीं गुम हो गये हैं।अब देश में इतना ज़हर बो दिया गया है जिसको खत्म करने में दशकों लगेंगे।अगर भारत की फिज़ाओं में नफ़रत के ज़हर को फैलने से रोकना है तो इंसानी सोच रखने वाले समाज, धार्मिक गुरुओं और बुद्धिजीवी वर्ग को आगे आना होगा और हिंसा के खिलाफ अपनी आवाज‌ को बुलंद करना होगा। तभी भारत के इस महकते हुए चमन को उजड़ने से बचाया जा सकता है।
मेरी उच्चतम न्यायालय से भी अपील है सिर्फ नुपुर शर्मा ही नहीं, ऐसे तमाम फ्रिंज एलिमेंट्स चाहे वह नेता हों, धार्मिक गुरु हों या मीडिया जो नफ़रत का ज़हर परोस रहे हैं, जिनकी वजह से देश में घृणित मानसिकता और कटृरवाद फैल रहा है, ऐसे तमाम फ्रिंज एलिमेंट्स जो नफ़रत की राजनीति और कारोबार कर रहे हैं, जिनकी वजह से देश की आंतरिक सुरक्षा ख़तरे में पड़ रही है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसे फ्रिंज एलिमेंट्स की वजह से भारत को बदनामी का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे तमाम फ्रिंज एलिमेंट्स और फ्रिंज एक्टिविटीज़ पर रोक लगाने के लिए उच्चतम न्यायालय को सख्त कानून बनाने के लिए सरकार को आदेश देना चाहिए।

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