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उबैदुल्लाह नासिर का लेख: क्या राहुल की तपस्या को खरगे जी सफल कर पाएंगे?

उबैदुल्लाह नासिर का लेख: क्या राहुल की तपस्या को खरगे जी सफल कर पाएंगे?


राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा 30 जनवरी को श्रीनगर में समाप्त हो गयी,लगभग 4 हज़ार किलोमीटर का यह सफ़र जो कन्या कुमारी से शुरू हुआ था करीब पांच महीनों में मोसम की सर्दी गर्मी बरसात झेलता हुआ अपनी मंजिल पर पहुंचा I राहुल गाँधी ने यह पूरा सफ़र एक टी शर्ट और एक जींस में पूरा किया इस बीच उनकी टी शर्ट पर नकारात्मक और सकारात्मक सभी प्रकार के कमेन्ट भी सोशल मीडिया पर देखने को मिले इस सफ़र में यह भी देखने को मिला कि जिस सोशल मीडिया पर कभी बी जे पी का एकाधिकार हुआ करता था वही उसके लिए सब से बड़ी समस्या भी हो गया  क्योंकि कांग्रेस का सोशल मीडिया सेल ही नहीं कांग्रेस के समर्थक नवजवान लड़के लडकियाँ भी सोशल मीडिया पर राहुल के खिलाफ उछाले गए हर बयान का मुंह तोड़ जवाब देते दिखाई दिए यहाँ तक के प्रधान मंत्री के भाषणों को भी खूब वायरल कर के उनका मखौल उड़ाया गया उधर अजीत अंजुम, अभिसार शर्मा,पुन्य प्रसून बाजपाई, साक्षी जोशी,आशुतोष और उनकी टीम आदि  जैसे U टयुबर्स ने भी गोदी मीडिया की नाक में दम कर दिया इस तरह राहुल की यात्रा के खिलाफ एकतरफा प्रोपगंडा भी मोदी सरकार नहीं करा पायी उलटे राहुल ने जिस प्रकार मोदी के साथ साथ गोदी मीडिया को भी निशाने पर रखा उस से उसकी रही सही साख भी मिटटी में मिल गयी I

इतिहास में ऐसी कोई मिसाल नहीं मिलती जब किसी नेता ने अपने देश और समाज के हालात बदल्रने के लिए पैदल इतना लम्बा सफर मुसलसल किया हो इस मामले ,में राहुल ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया है I इस सफ़र में राहुल के साथ जो लोग भी चले चाहे वह शुरू से आखिर तक उनके साथ रहे हों या कुछ दूर कुछ दिन ही चले हो साधुवाद के अधिकारी है क्योंकि उन्हों ने भी समाज और सियासत के इस माहौल से अपनी बेज़ारी, बेचैनी और बद्दिली ज़ाहिर कर दी, जिससे न केवल देश का संवैधानिक लोकतंत्र ही खतरे में पड़ गया है बल्कि उसकी एकता और अखंडता भी खतरे में है क्योंकि भारत जैसी विविधता वाले देश में एक विचारधारा,एक धर्म एक भाषा का वर्चस्व थोपने का जो प्रयास हो रहा है वह देश की भावनात्मक एकता के लिए सब से बड़ा खतरा है I धर्मान्धता,अविश्वास और घृणा की राजनीति का बहुत बड़ा मूल्य हम 1947 में देश के विभाजन की शक्ल में अदा कर चुके हैं I इस खतरे की रोकथाम के लिए ही हमारे नेताओं ने देश को एक संविधान दे कर इस देश में रहने वाले हर व्यक्ति हर धर्म हर विचारधारा हर भाषा और  हर क्षेत्र के अधिकार सुरक्षित कर दिए थे और ऊँच नीच झेलता हुआ हमारा यह संविधान 75वर्षों तक देश की भावनातमक एकता को अक्षुण रखने में सफल रहा I देश में लोकतन्त्र मज़बूत रहे और महज़ संख्या बल पर कोई शासक, कोई सरकार तानाशाह न बन जाए इससे बचने के लिए भी संविधान में कई स्वतंत्र संस्थाओं का गठन किया गया जो सरकार के क्रिया कलापों पर नज़र रखती है लेकिन मोदी युग में इन संस्थाओं को दंतविहीन कर दिया गया और एक विशेष विचारधरा के लोगों को वहां बिठा कर उन्हें सफ़ेद हाथी बना दिया गया I दूसरी ओर कई मूर्खतापूर्ण फैसलों द्वारा देश की अर्थव्यवस्था को चौपट किया गया जिससे बेरोज़गारी और मंहगाई आसमान छूने लगी,राजनैतिक लाभ के लिए समाज के तानेबाने को छिन्न भिन्न किया गया,चीन की विस्तारवादी नीति से आँख बंद रखी गयी जिससे देश के बड़े भूभाग पर उस ने कब्जा कर लिया दो कॉर्पोरेट घारानो के हाथो देश की सम्पतियों और संसाधनों को कौड़ियों के भाव बेच दिया गया Iराहुल की यह भारत जोड़ो यात्रा इन्हीं बरबादियों और खतरों के खिलाफ एक जन जागरण अभियान थी और वह इसमें काफी हद तक सफल रहे हैं I आज इससे कोई इनकार नहीं कर सकता की राहुल ने अवाम को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है की देश में बहुत कुछ गलत और खतरनाक हो रहा है ,यही राहुल की इस तपस्या की सब से बड़ी सफलता है I

लेकिन वरिष्ट पत्रकारों और समाज के प्रबुद्ध वर्ग द्वारा जो सवाल पूछा जा रहा है वह भी वाजिब है और उसका जवाब खोजा जाना चाहिए और वह सवाल यह है की क्या राहुल की यह सफल तपस्या  वोटों में भी तब्दील होगी  और क्या कांग्रेस बीजेपी के चुनावी अस्त्र को भी विफल कर सकती है ? क्या कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा इतना मज़बूत है की वह बीजेपी आरएसएस और उसके सैकड़ों अनुषंगिक संगठनों की संयुक्त शक्ति को विफल कर सकें यहाँ यह भी ध्यान रखना होगा कि बीजेपी की शक्ति केवल उसका संगठन और संसाधन ही नहीं है बल्कि बीजेपी की बहुत बड़ी ताक़त मीडिया और क्षेत्रीय दल भी हैं जिन में से अधिकतर किसी न किसी समय बीजेपी के साथ मिल कर सत्ता सुख भोग चुके हैं और आगे भी सीधे या घुमा फिरा कर बीजेपी की मदद कर सकते हैं बीजेपी की सब से बड़ी ताक़त 3 M अर्थात Money,Media,Man Power हैं कांग्रेस इसके मुकाबले कहीं खड़ी नहीं होती क्योंकि ADR की रिपोर्ट के मुताबिक मोदी युग में बीजेपी को कॉर्पोरेट के चुनावी चंदे का 86% हिस्सा मिला है बाक़ी 14% में कांग्रेस समेत अन्य दल है I मोदी सरकार  इस बात पर विशेष ध्यान देती है कि उसे न केवल अधिक से अधिक चन्दा मिले बल्कि विपक्ष खासकर कांग्रेस को कदापि चन्दा न मिले I उधर अधिकतर क्षेत्रीय नेताओं की फाइलें मोदी जी की मेज़ पर रखी हुई है जिसे वह समय समय पर इन नेताओं को दिखा कर उनकी होलिया टाइट रखते है I उस से भी बड़ी बात यह है की सभी क्षेत्रीय दल कांग्रेस के वोट बैंक छीन कर ही मज़बूत हुए है, अब अगर कांग्रेस मज़बूत होती है और उसका वोट बैंक उसकी ओर वापस जाता है तो क्षेत्रीय दलों का वजूद ही संकट में पड़ जाएगा I सच बात तो यह है कि क्षेत्रीय दल और क्षेत्रीय नेता दोहरे खतरों में घिरे हैं इसी लिए वह कांग्रेस से दूरी बनाने पर मजबूर हैं और इसी मजबूरी के कारण ही अधिकतर क्षेत्रीय नेता न्योता मिलने के बावजूद राहुल की भारत जोड़ो यात्रा की समाप्ति पर श्री नगर में होने वाली रेली में शरीक नहीं हुए थे I इसी लिए कहा जाता है की राहुल गांधी और अब मल्लिकार्जुन खरगे के सामने जो चैलेंज है वह कांग्रेस के पूरे इतिहास में कभी किसी अध्यक्ष के सामने नहीं रहे I

खरगे जी उनकी टीम और आज के कांग्रेसजनों को इन्हीं समस्याओं के बीच से जीत का रास्ता निकालना है राहुल गांधी ने बंजर ज़मीन को कृषि योग्य बना दिया है उनके साथ जो लाखों लाख लोग कभी  भारत जोड़ो यात्रा में पैदल चले थे वह कांग्रेस के मज़बूत सिपाही बन सकते हैं क्योंकि यह लोग रेली में लायी गयी किराए की भीड़ नहीं थी बल्कि वास्तव में देश के हालत से चिंतित लोगों की संगठित फौजी है जो अपने खर्च से इस यात्रा में शरीक होने के लिए सैकड़ों मील से चल कर आये थे I अब उत्तर प्रदेश में ही बलिया से ले कर बागपत तक जो लाखों लोग यात्रा में शरीक हुए थे खून जमा देने वाली सर्दी में केम्पों में रुके थे ठंडी बर्फीली बयार में पैदल चले थे क्या वह पार्टी का बहुमूल्य खजाना  नहीं है, उनका उपयोग कैसे हो यह रास्ता निकालना पार्टी नेत्रित्व का काम है I क्षेत्रीय दलों पर विश्वास न करते हुए भी उन पर विश्वास करना होगा और उनको विश्वास में लेना होगा इस के लिए UPA3 को मज़बूत करने की कवायद अभी से शुरू करनी होगी I धू धू कर जल रही आग को बुझाने के लिए जो भी एक बाल्टी पानी डालने को तैयार हो उसका अतीत भूल कर उससे सहयोग लेने में ही भलाई है I सब से आवश्यक है जनता खासकर नवजवानों को धर्मान्धता  और उग्र राष्ट्रवाद का जो मिक्सचर पिलाया गया है जिसमें मस्त  हो कर  वह अपने भविष्य और देश की बर्बादी भूल चुके हैं उस नशे से उन्हें बाहर निकाल कर देश के नवनिर्माण में लगाना है I इसके लिए हमारे नेताओं को जवाहर लाल नेहरु की तरह जनता के शिक्षक का भी किरदार अदा करना चाहिए बताया जाता है कि नेहरु जी केवल राजनैतिक भाषण ही नहीं देते थे या  विपक्ष की कम्ज़ोरिया और  गलतियाँ ही  नहीं गिनवाते थे बल्कि जनता को उन खतरों से भी आगाह करते रहते थे जो धर्मान्धता बहुसंख्यकवाद और फासीवाद द्वारा खड़े किये जा सकते थे I  

बहुत से राज्यों में जहां कांग्रेस  बहुत कमज़ोर है वहां उसे  अपनी जीत से ज्यादा बीजेपी के हार की स्ट्रेटजी बनानी चाहिए यदि गठबंधन न हो तो फ्रेंडली फाइट एक विकल्प हो सकता है I चुनाव जीतने के लिए केवल पार्टी या नेता की लोकप्रियता ही काफी नहीं होती चुनावी स्ट्रेटेजी सब से महत्वपूर्ण होती है इस मामले में कांग्रेस समेत सभी दलों को बीजेपी से सबक लेना चाहिए जिसका चुनावी अभियान वोटर लिस्ट की तय्यारी से ले कर वोटों की गिनती तक पूरी ताक़त से चालू रहता है I स्ट्रेटेजी की कमजोरी का अंजाम कांग्रेस पंजाब और उत्तराखंड में जीता हुआ चुनाव हार कर भुगत चुकी है उत्तर प्रदेश और अभी हाल में गुजरात विधान सभा के चुनाव में इसी स्ट्रेटेजी की कमजोरी के कारण उसकी लोटिया डूब चुकी है जिसके उबरने का निकट भविष्य में कोई चांस नहीं दिखाई देताI

(यह चुनावी साल है और कांग्रेस के नए अध्यक्ष खरगे जी का सियासी इम्तिहान भी है इस साल 9 राज्यों की विधान सभाओं का चुनाव है जिनमें उनका अपना राज्य कर्नाटक भी शामिल हैI 36 गढ़ और राजस्थान में कांग्रेस को अपनी सरकार बचाए रखने का चैलेंज है जबकि मध्य प्रदेश में अपनी बीजेपी द्वारा लूटी गयी सरकार दुबारा प्राप्त कंरने का चैलेंज हैI इसके बाद 2024 में लोक सभा का चुनाव होगा यह चुनाव  कांग्रेस ही नहीं सभी विपक्षी दलों के लिए चैलेंज होगा क्योंकि इस चुनाव का नतीजा ही देश के संवैधानिक लोकतंत्र का भविष्य तय करेगा I उन्हें यह चुनाव करो या मरो के तर्ज़ पर लड़ना होगा क्योंकि संवैधानिक लोकतंत्र बचा तब ही उनका वजूद भी बचेगा I)

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