(उबैद उल्लाह नासिर)
लगातार चौथी बार एक अमरीकी आयोग ने भारत पर अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव का आरोप लगाते हुए उसे ब्लैक लिस्ट करने की सिफारिश की है Iअमरीका के अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रा आयोग (USRFC) नामी इस संगठन ने कहा है कि भारत में सरकारी संस्थाएं और अधिकारी धार्मिक स्वतंत्रता के घोर उल्लंघन के ज़िम्मेदार हैं,भारत में अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव हो रहा है इस लिए उसे ब्लैक लिस्ट कर दिया जाना चाहिए I ध्यान रहे कि ब्लैक लिस्ट किये जाने के बाद उस पर पाबंदियां (Sanctions) लगाने की बात भी उठ सकती है I इस आयोग ने अमरीकी संसंद में कहा की अमरीका भारत से द्विपक्षीय बात चीत में यह मामला उठाये I ध्यान रहे की यह संस्था विगत 2020 से अमरीकी प्रशासन को यह रिपोर्ट दे रही है लेकिन अमरीका ने अब तक इसकी सिफारिश मानी नहीं है क्योंकि कानूनन वह इस संस्था की सिफारिशें मानने के लिए बाध्य नहीं है I आयोग ने भारत में अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे भेदभाव के जो मुद्दे गिनाये हैं उन में गोरक्षा के नाम पर मोबलिंचिंग, बुलडोज़र से मकानों को गिराया जाना, UAPA जैसी सख्त धाराओं में अंधाधुंध गिरिफ्तारियां, NGOs को विदेशी सहायता कानून (FCRA) के तहत निशाना बनाना, हिजाब पर पाबंदी और धर्म परिवर्तन जैसे कानून शामिल हैं जिस का सीधा प्रभाव मुसलमानों ईसाईयों सिखों और दलितों पर पड़ता है I रिपोर्ट में यह भी कहा गया है की केंद्र सरकार विरोधियों ख़ास कर उनकी आवाज़ दबाती है जो अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए उठाई जाती हैं I रिपोर्ट में यह भी कहा गया ही की भारत में केंद्र राज्य और स्थानीय सरकारों ने ऐसे कानून बनाये हैं जिन से अल्पसंख्यक समुदाय के साथ भेदभाव होता है Iअमरीकी विदेश विभाग के प्रवक्ता वेदान्त पटेल ने कहा है की यह आयोग सरकारी नहीं है लेकिन इसकी रिपोर्ट अमरीकियों के लिए धार्मिक स्वतंत्रता कितनी महत्वपूर्ण है यह दर्शाती है उन्हों ने कहा कि रिपोर्ट की सिफारिशें अमरीकी विदेश विभाग की विशेष चिंता वाले देशों की सूची के साथ काफी हद तक मेल खाती हैं लेकिन यह पूरी तरह निर्णायक नहीं है I उन्हों ने कहा की जिन्हें इस रिपोर्ट पर सवाल उठाना है या कुछ पूछना है वह सीधे आयोग से सम्पर्क कर सकते हैं I
भारत के अलावा अफगानिस्तान नाईजेरिया सीरिया और वियतनामको भी ब्लैक लिस्त्ग करने की बात आयोग ने कही है ध्यान रहे कि चीन, ईरान, म्यांमार, पाकिस्तान,, रूस सऊदी अरब पहले से ही ब्लैक लिस्ट हैं Iअमरीका के अलावा यूरोप के कई देशो ने भी भारत में अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे भेदभाव पर चिंता व्यक्त की है यहाँ तक कि इस मामले में हमेशा चुप्पी साधे रखने वाले अरब देशों ने भी आवाज़ उठाना शुरू कर दिया है मुस्लिम देशों के संगठन इस्लामिक सहकारिता (OIC) ने भी कई बार चिंता ज़ाहिर किया है I
सदैव की भांति इस बार भी भारत सरकार ने आयोग की रिपोर्ट को खारिज करते हुए इसे पक्षपातपूर्ण बताया है भारत सरकारं ने यह भी कहा की आयोग ने तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया है I भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा की यह टिप्पणियां भारत के संवैधानिक ढाँचे बहुलता और उसके लोकतांत्रिक लोकाचार की समझ की भारी कमी को दर्शाती हैं I
उक्त अमरीकी संस्था के अलावा कई अन्य देशों ने भी भारत में अल्पसंख्यकों की हालत और उनके साथ किये जा रहे सुलूक को ले कर चिंता जताई है दुनिया में नरसंहार के मामलों पर नज़र रखने वाली संस्था जेनोसाइड वाच ने अपनी रिपोर्ट में कहा है की किसी देश मे नरसंहार के जो 10 स्टेज होते हैं भारत उन में से आठ को पार कर चूका है लोकतंत्र के हालात पर नज़र रखने वाली संस्था ने तो भारत को पूर्ण लोकतंत्र की श्रेणी से निकाल कर पाक्षिक लोकतंत्र (Partial democracy ) की श्रेणी में ही रख देने की बात कही थी भारतीय मीडिया 180 में से 161वें स्थान पर पहुँच गयी है,2022 में 150 वें नम्बर पर थे अर्थात एक साल में 11 रैंक और नीचे गिरे I भारत में जनता की ब्रेन वाशिंग कर के सच को झूट झूट को सच बना दिया जाए, धर्म के नाम पर जनता को नफरत में अँधा कर दिया जाये, उस से चुनाव तो जीते जा सकते हैं लेकिन अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी की आँखों में धूल नहीं झोंकी जा सकती I इन्टरनेट ने दुनिया को बहुत छोटा कर दिया है I दुनिया के किसी भी कोने में कोई घटना घटे वह मिनटों सेकंडों में दुनिया के एक कोने से ले कर दुसरे कोने तक पहुँच जाती है I हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए की मानव अधिकारों का उल्लंघन अब किसी देश का अंदरूनी मामला नहीं रह गया है इस लिए ऐसी आलोचनाओं और रिपोर्टों से बचने का एक मात्र रास्ता अपने अंदरूनी हालत सुधारना, संविधान और कानून के शासन को स्थापित करना और अगर संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव की भाषा में कहें तो गांधी नेहरु के रास्ते पर चल कर ही भारत अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में अपनी साख बहाल कर सकता है I
मोदी सरकार और आरएसएस भारत को विश्वगुरु बनाने की बात करते हैं अगर राजनैतिक विद्वेष और दुर्भावना से ऊपर उठ कर सोचें तो जंग आज़ादी में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सत्य अहिंसा सद्भाव प्रेम करुणा और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के जो आदर्श दिए थे पंडित नेहरु ने देश के सामने वैज्ञानिक सोच और अंतर्राष्ट्रीय नजरिया और पंचशील के जो सिद्धांत रखे थे ,संविधान सभा में शामिल भारत के उच्च कोटि के दिमागों वाले सदस्यों ने और डॉ भीम राव आंबेडकर ने संविधान के रूप में हमें जो दस्तावेज़ दिया था उस ने भारत को गरीब और कमज़ोर होने के बावजूद दुनिया के लिए रोल मॉडल बना दिया था और आज भी दुनिया गांधी और नेहरु के बताये हुए रास्ते में ही अपनी समस्याओं का हल देखती है I यह विडम्बना ही है की वही गांधी और नेहरु जो सुनिया भर के देशों के लिए रोल मॉडल हैं वह आज अपने ही भारत में अनर्गल आलोचनाओं और इल्जामों का शिकार है I
शुतुर मुर्ग की तरह रेत में सर डाल देने से सच्चाई नहीं छुपती कोई भी देश आर्थिक और सैनिक तौर से चाहे जितना शक्तिशाली हो जाए अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में उसके मान सम्मान का दारोमदार वहाँ रह रहे सभी वर्ग के लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा समानता और देशवासियों में आपसी प्रेम और सौहार्द पर निर्भर करती है भारत के करीब 20% अल्पसंख्यकों जिनमें मुस्लिम इसाई सिख और करीब इतने ही sc/st वर्ग के लोगों के मानवाधिकारों का ह्नन कर के कोई देश विश्व गुरु तो क्या सभ्य समाज का सदस्य भी नहीं बन सकता।
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