G 20 के सफल आयोजन से सभी भारतीयों का प्रसन्न होंना और उस पर गर्व करना स्वाभाविक है, हालांकि अगर कठोर आर्थिक दृष्टि से देखा जाये तो करीब 42 हज़ार करोड़ रुपया खर्च कर देने के बाद देश के बेरोजगार नवजवानों मंहगाई की मार झेल रहे अवाम, आत्महत्या पर मजबूर किसान, लुटे हुए मजदूर और तबाह हो चुके छोटे ब्योपारियों को क्या मिला तो जवाब बाबा जी का ठिल्लू ही मिलेगा I लेकिन देशों और राष्ट्रों के जीवन में ऐसे अवसर आते रहते हैं जब सब कुछ नफा नुकसान और पैसों के पैमाने से नहीं देखा जा सकता अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में देश के मान सम्मान को ऊंचा रखने के लिए ऐसे आयोजन सभी देश कराते हैं I भारत ने आजादी के तुरंत बाद ही एफ्रो एशियाई कांफ्रेंस कराई थी जिसमें करीब 56 देशों के राष्ट्र प्रमुख शरीक हुए थे उसके बाद 1983 में गुट निर्पेक्ष देशों का सम्मेलन भारत में हुआ था जिसमें 135 देशों के राष्ट्रप्रमुख शरीक हुए थे I इस लिए G 20 के सफल आयोजन के लिए प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी टीम के लोगों को मुबारकबाद दी जानी चाहिए Iहालांकि कुछ छोटे छोटे मामलों को ले कर कांफ्रेंस पर सवाल भी उठे हैं उन में सब से महत्त्वपूर्ण है चीन के राष्ट्रपति ज़ी शिन्गपी और रूस के राष्ट्रपति पुतिन का न आना,चीन के प्रधान मंत्री और रूस के विदेश मंत्री ने अपने अपने देशों की नुमायन्दगी की I दूसरी दुर्भाग्यपूर्ण बात थी देश की सब से बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष और राज्य सभा में नेता प्रतिपक्ष मलिकार्जुन खरगे और कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गाँधी को राष्ट्रपति द्वारा विदेशी मेहमानों को दिए जाने वाले डिनर में आमंत्रित न करना I ध्यान रखना चहिये की यह डिनर भारत सरकार की तरफ से दिया गया था और सरकारी पैसा खर्च किया गया था यह किसी के बेटे बेटी का विवाह का प्रीतिभोज नहीं था जिसमें उसे जिसको चाहे बुलाएँ जिसको चाहे न बुलाने की आज़ादी होती है लोकतंत्र में विपक्ष सब से महत्वपूर्ण होता है और उसके नेताओं का यह तिरस्कार केवल देश ही नहीं विदेशों में भी आलोचना का कारण बना हुआ है I सोचिये पहले से ही भारतीय लोकतंत्र पर लगे सवालिया निशानों पर सरकार की इस अलोकतांत्रिक हरकत का क्या असर होगा I इसके अलावा अमरीका के राष्ट्रपति जोए बाईडन समेत किसी मेहमान को पत्रकारों से न मिलने देना भी आलोचना का विषय है I बाईडेंन ने तो यहाँ से वियतनाम जा कर बयान दिया की उन्हों ने प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी से भारत में मानव अधिकारों, प्रेस की आज़ादी, अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे अत्याचार और सिविल सोसाइटी को पेश आने वाली समस्याओं पर बातचीत की I क्या इन्ही कारणों से बाईडेन को भारत में प्रेस से नहीं मिलने दिया गया था ?
G 20 सम्मलेन को ले कर और भी एक सवाल उठ रहा है वह है इतना पैसा खर्च करना I शुरू में इसके लिए 990 करोड़ रुपया का प्रावधान किया गया था मगर खर्च कर दिए गए करीब 4200 करोड़ रूपये, अर्थात चार गुना ज़्यादा खर्च I इसका क्या औचित्य हो सकता है ? बजट से कुछ ज्यादा खर्च हो जाना तो स्वाभाविक हो सकता मगर चार गुना अधिक खर्च सवाल तो खड़े ही करेगा I
अब आइये G 20 के सियासी पहलू की ओर I यह तो हर पढ़ा लिखा व्यक्ति (भक्तों को छोड़ कर उनकी डिग्री चाहे जितनी बड़ी हो ) जानता है की G 20 की अध्यक्षता रोटेशन से मिलती है भारत (India) का नम्बर 2022 में आया था मगर 2024 के आम चुनावों में इसका फायदा उठाने के लिए मोदी सरकार ने इंडोनेशिया (Indonesia) से इसकी अदला बदली कर ली और देश में यह प्रचार किया जाने लगा कि जैसे मोदी जी की महिमा से भारत को पहली बार इतना मान सम्मान मिल रहा है मोदी जी की इस महिमामंडन के प्रचार प्रसार में ही करोडो रुपया खर्च कर दिया गया मगर ऐसा लगता है दांव उल्टा पड़ गया I अभी हुए विभिन्न राज्यों की विधान सभाओं के सात उपचुनावों में बीजेपी को 3 और विपक्ष को चार सीटों पर जीत मिली I अगर समाजवादी पार्टी ने गठबंधन धर्म निभाया होता तो उत्तराखंड की बागेश्वर सीट कांग्रेस केवल 2400 वोटों से न हारती तब बीजेपी के खाते में केवल त्रिपुरा की ही 2 सीटें जाती I
वैसे तो यह चुनावी परिणाम कोई बहुत बड़ी बात नहीं है लेकिन उत्तर प्रदेश की घोसी सीट पर बीजेपी की करारी हार ने उसे अन्दर तक हिला कर रख दिया है क्योंकि गुजरात के बाद उत्तर प्रदेश ही बीजेपी का सब से मज़बूत किला है आगामी लोक सभा चुनाव में उसे उत्तर प्रदेश से सब से अधिक आशाएं है लेकिन अगर घोसी का रुझान प्रदेश व्यापी हो गया तो बीजेपी के सपनो पर पानी फिर जाएगा I2014 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी को उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से 75 सीटें मिल गयी थी फर 2019 के चुनाव में पुलवामा के बावजूद उसको 10 सीटों का नुकसान हुआ और कुल 65 सीटें ही जीत पायी जबकि मध्य प्रदेश राजस्थान और कर्नाटक में उस ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया था I
विपक्ष के INDIA नामी गठबंधन के बाद उत्तर प्रदेश उसका पहला इम्तिहान था जिसमे उसे शानदार कामयाबी मिली इस चुनाव में दोनों पक्षों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी बीजेपी ने “महान दल बदलू” ओम प्रकाश रॉजभर को समाजवादी पार्टी से तोड़ लिया और मायावती ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा बीजेपी को उम्मीद थी की बसप का दलित वोट उसकी ओर आ जाएगा मायवाती ने भी दलितों को अपना गुलाम समझते हे आदेश जारी कर दिया की दलित वर्ग के लोग वोट डालने न जाएँ और यदि जाये तो नोटा का बटन दबाएँ मगर दलितों ने उनकी एक नहीं सुनी और झोर के समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सुधाकर सिंह को वोट दिया I यह क्षेत्र मुख़्तार अंसारी के प्रभाव वाला माना जाता है इसका भी फायदा सप के उम्मीदवार को मिला इसे अलावा कांग्रेस के प्रदेश अद्यक्ष अजय राय का भी वह प्रभाव क्षेत्र है और अपनी बिरादरी भूमिहरों के वह बड़े नेता माने जाते हैं सुधाकर सिंह के लिए उनकी अपील और क्षेत्र के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने दिल लगा के मेहनत की और सब से बढ़ कर चाचा शिव पाल यादव जो चुनावी मैदान के जाने माने खिलाड़ी है उनकी व्यूह रचना से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को 42 हज़ार वोटों से शानदार सफलता मिलती क्या यह महज़ संयोग है की G20 पर 4200 करोड़ रुपया खर्च हुआ और घोसी में 42 हजार वोटों से बीजेपी हार गयी I घोसी का यह उपचुनाव जीतने के लिए बीजेपी ने पूरी ताक़त झोंकी थी मुस्लिम वोटरों को वोट देने से रोकने के लिए पुलिस ने पूरी नंगई दिखाई रामपुर जैसा सब कुछ यहाँ भी हुआ लेकिन नतीजा उलटा आया शायद ही किसी उपचुनाव में सरकारी पार्टी को ऐसी शर्मनाक शिकस्त हुई हो जैसी घोसी में बीजेपी को हुई है I हालांकि एक रिकॉर्ड यह भी है की एक 1977-78 में उपचुनाव में कांग्रेस के एक नवजवान कार्यकर्ता राम कृष्ण द्वेदी ने जनता पार्टी के मुख्यमंत्री टी एन सिंह को हरा दिया था I
G20 के इस शानदार आयोजन से देश को क्या मिला क्या नहीं मिला इस बहस से इतर 4200 करोड़ रुपया खर्च आर के मोदी जी ने इस आयोजन से जो चुनावी फायदा उठाना चाहा था उपचुनावों ख़ास कर घोसी के नतीजों ने उन पर पानी फेर दिया है। लोक सभा के चुनाव में इसका फायदा मिलेगा या नहीं यह आने वाला समय ही बताएगा।
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