भागवत से बातचीत तो ठीक, लेकिन समस्या पर राष्ट्रीय एकीकरण परिषद में गौर हो
(उबैदउल्लाह नासिर)
विगत दिनों देश के पांच प्रबुद्ध मुसलमानों ने जिनमें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व वाईस चांसलर और सेना के वरिष्ठ अधिकारी रह चुके लेफ्टीनेन्ट जनरल ज़मीरुद्दीन शाह पूर्व आईएस अधिकारी और देहली के लेफ्टिनेंट गवर्नर रह चुके नजीब जंग पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त वाई एस कुरैशी वरिष्ट पत्रकार और पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी और एक बड़े कारोबारी और समाज सेवी सईद हाशमी ने आरएसएस के सरसंघ चालक मोहन भागवत से मुलाक़ात कर के उनसे देश के मुसलमानों की समस्याओं पर बात चीत की वैसे तो श्री मोहन भागवत की कोई सरकारी हैसियत नहीं है लेकिन चूँकि वह सत्ताधारी दल के कथित परिवार के मुखिया हैं इस लिए उन से यह बात चीत आवश्यक भी थी और उपयुक्त भी क्योंकि अगर वह ईमानदारी से चाहें और देश हित में कोई कडा रुख अख्तियार करें तो हिंदुत्व के नाम पर सड़कों पर हो रही गुंडागर्दी से लेकर कार्यपालिका से ले कर न्यायपालिका तक देश के मुसलमानों के साथ जो अन्याय और सौतेला सुलूक हो रहा है और जिन गैर कानूनी असंवैधानिक और आन्याय पूर्ण सजाओं और कार्रवाइयों से उन्हें दो चार होना पड़ता है जिस प्रकार उन्हें अपने हिन्देश में दुसरे दर्जे का नागरिक बनाया जा रहा है जिस प्रकार उनका जीवन नर्क बनाया जा रहा है जिस प्रकार उनके संवैधानिक और मानव अधिकारों का हनन हो रहा है, जिस प्रकार उन्हें घृणा और हिंसा का निशाना बनाया जा रहा है, खुले आम उनके नरसंहार का आह्वान किया जाता है, बात बात पर उन्हें पाकिस्तान चले जाने का ताना दिया जाता है, उनके धर्मस्थलों को गिराया जा रहा और ऐतिहासिक इमारतों पर कब्जा कर के उन्हें मंदिर बनाने के लिए नित नये खेल खेले जा रहे हैं यहाँ तक की संसंद से बने कानून तक की खुद अदालतों द्वारा धज्जियाँ उड़ाई जा रही है वह सब काफी हद तक रुक सकती है I हालांकि बात चीत में ही इन महानुभावों ने भागवत जी पर क्लियर कर दिया था की वह मुस्लमानो के प्रतिनिधि के तौर पर नहीं बल्कि चिंतित नागरिक के तौर पर उनसे बात करने आये हैं लेकिन चाहे जिस हैसियत से भी हो इन लोगों ने भारतीय मुस्लमानो की चिंताओं से भागवत जी को आगाह किया यही बड़ी बात है और इससे आम मुसलमानों को यह इत्मीनान हुआ की उनकी समस्याओं का हल निकले या निकले लेकिन उनकी समयाओं से एक ऐसे व्यक्ति को आगाह किया गया है जिसका संगठन ही वास्तव में इन समयाओं का ज़िम्मेदार है I यह व्यक्ति दुनिया के सब से बड़े सब से सुसंगठित सबसे शक्तिशाली संगठन का मुखिया है जिसके इशारे पर सरकारें बनती बिगडती है और जो अगर वासत्व में ईमानदारी से चाह जाए तो तो यह सभी समस्याएं हल हो सकती है I लेकिन क्या वह ऐसा चाहेगा क्योंकि तब उसे अपने संगठन की उस मूल विचारधारा को ही तिलांजलि देनी पड़ सकती है जो गुरु गोल्वालकर ने बंच ऑफ़ थॉट्स और वि एंड अवर नेशनहुड डिफाइंड में में विस्तारपूर्वक लिख दी थीं और जिन पर भारत में मोदी युग शुरू होने के बाद अमल शुरू कर दिया गया था और अब यह सिलसिला तेज़ी से चल रहा है Iबीजेपी शासित राज्यों के मुख्य मंत्री आसाम के हेमंत बिस्वाल सरमा UP के योगी आदित्य नाथ, कर्नाटक के बसवा बोम्मई हरियाणा के मनोहर लाल खट्टर और मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्र इसे एजेंडा को पूरी तन्मयता से लागू कर रहे हैं I
सूचना के अनुसार इन महानुभावों ने श्री भागवत से कहा कि उनकी मुख्य चिंता यह है देश में आज जो कुछ जो रहा है वह देश हित में नहीं है क्योंकि समाज के एक बड़े वर्ग को अलग थलग कर के और उनके अधिकारों का हनन करने से देश में कलह की स्थित पैदा होगी जिससे देश का विकास रुक जाएगा इसके लिए आपसी बातचीत आवश्यक है ताकि जो गलतफहमी है वह दूर हो सके ज़ाहिर है यह बहित अच्छी बात कही गयी और कोई भी विवेकशील व्यक्ति इसको गलत नहीं कह सकता और न ही इसकी आवश्यकता से इंकार कर सकता है क्योंकि आपसी विश्वास बहाल करने और साम्प्रदायिक तनाव कम करने का एकमात्र रास्ता बातचीत है जो बिना रोक टोक चलते रहना चाहिए I लेकिन सवाल यह है कि जो संगठन अपनी स्थापना से लेकर आज तक मुसलमानों को इस देश का स्वाभाविक नागरिक नहीं समझती बल्कि आक्रान्ता या बाबर की औलाद कह कर उनको निशाना बनाती है जिसकी सोच यह है की पाकिस्तान बन जाने के बाद भारत में मुसलमानो को रुकने देना ही नहीं चाहिए था,जो इतिहास के गड़े मुर्दे उखाड़ कर और ऐतिहासिक घटनाओं को तोड़ मरोड़ कर और उन्हें साम्प्रदायिक रंग दे कर आज की नस्लों में उनके खिलाफ ज़हर भर रही हो जिसका वजूद ही मुस्लिम दुश्मनी पर आधारित हो और आज जिसे इस मुस्लिम दुश्मनी का भरपूर सियासी फायदा मिल रहा हो जिसके कार्यकर्ताओं की लगभग 100 साल की मेहनत लगन और बलिदान का फल उसे अब मिल रहा हो और जो अब अपने सपनो का भारत (हिन्दू राष्ट्र ) बनते हुए देख रही हो क्या वह वास्तव में अपनी विचारधारा अपनी पहचान अपनी पॉलिसी और अपने सियासी लाभ को छोड़ देगी ? जहां तक देश हित की बात है तो देशहित के सम्बन्ध में आरएसएस की सोच और अन्य दलों और आम भारतियों की सोच में जमीन आसमान का अंतर है I
श्री कुरैशी ने इस मुलाक़ात के सम्बन्ध में इंडियन एक्सप्रेस में जो लेख लिखा है उसमे बताया की श्री भागवत ने उन से बताया की हिन्दुओं को मुस्लमानो से शिकायत है कि वह उन्हें काफिर कहते हैं दुसरे गौमांस ( Beef) खाते हैं अब पता नहीं कुरैशी साहब ने भागवत जी को क्या जवाब दिया लेकिन असलियत तो यह है कि मोटे तौर से काफिर भगवान/इश्वर /अल्लाह /गॉड आदि को न मानने वाले को कहा जाता है और हिन्दू धर्म जो दुनिया का सब से liberal धर्म है उसमें तो भगवान्/इश्वर /अल्लाह गॉड के सिलसिले में हर प्रकार का विचार मौजूद है इस्लाम की तरह एकईश्वरवाद का भी कांसेप्ट है और बहु ईश्वरवाद का भी, इसलिए हिन्दुओं को काफिर तो बिलकुल नहीं कहा जा सकता और न ही कोई आम तौर से कहता है कभी गुस्से झुन्झुलाहट या जिहालत में कोई कह दे तो वह ऍम मुसलमान की सोच नहीं इसके बरखिलाफ संघी संस्थागत तरीके से मुसलमानों को म्लेच्छ,जिहादी, आतंकी,देशद्रोही,अदि न जाने क्या क्या कहते रहते हैं और देश में उनके खिलाफ एक माहौल बनाने में सफल भी हो गए हैं I जहां तक बीफ खाने की बात है तो आज़ादी के बाद ही गौहत्या पर पाबंदी का कानून बन गया था जो आज देश के अधिकतर हिस्सों में लागू है और कभी किसी मुसलमान ने इसका विरोध भी नहीं किया, हालांकि हमारा संविधान हर नागरिक को अपनी मर्ज़ी के खान पान की इजाज़त देता है I दूसरी ओर खुद बीजेपी ने चुनाव के समय गोवा और NE में अपने घोषणापत्र में क्या यह नहीं कहा था की वह इन प्रदेशों में बीफ की कमी नहीं होने देगी और आवश्यकता पड़ी तो अन्य राज्यों से मंगा कर जनता को सप्लाई करेगी यह दोहरा माप दंड क्यों ? क्या इन महानुभावों ने भागवत जी के सामने यह सच्चाई रखी थी या केवल चार्ज शीट ले कर ही चले आये ?
इस मीटिंग के बाद मोहन भागवत जी ने आल इंडिया इमाम कौंसिल के अध्यक्ष मौलाना इलियासी से उनके घर/मस्जिद में जा कर मिले इस मुलाक़ात का भी स्वागत किया जाना चाहिए हालांकि इन मौलाना साहब की मुस्लिम समाज में क्या इज्ज़त है और आम तौर से मुसलमान उनके बारे में क्या सोचते हैं यह एक अलग विषय है I मौलाना इलियासी से मुलाक़ात के बाद भागवत जी ने किसी और मस्जिद में जा कर वहां के इमाम साहब से भी मुलाक़ात की I इन मुलाकातों और इस बातचीत का स्वागत है मगर बात घूम फिर कर फिर वहीँ आ जाति है कि क्या भागवत जी अपनी पार्टी की सरकारों को साथ न्यायपूर्ण रवय्या अपनाने और उनके संवैधानिक अधिकार सुनिश्चित करने का आदेश देंगे क्या वह बजरंग दल विश्व हिन्दू परिषद् और बहुत से ऐसे ही संगठनों और सेनाओं के धर्मांध हिंसक नवजवानों पर लगाम लगा सकेंगे ?
इन मुलाकातों वार्तालापों और भागवत जी की इस सदाशयता से एक सवाल ज़रूर लोगों के दिमाग में गूँज रहा है कि ऐसी क्या ज़रूरत आ पड़ी की यह साड़ी सरगर्मियां बढ़ गयी है I सोशल मीडिया पर भागवत जी की सरगर्मियों विशेषकर मस्जिद जा कर वहां के इमाम साहब से बात करने पर खुमार बाराबंकवी का यह शेर खूब वायरल हो रहा है :
“हैरत है तुमको देख के मस्जिद में ऐ खुमार
ऐसा भी क्या हुआ कि खुदा याद आ गया I”
इस सिलसिले में बहुत से बुद्धजीवियों का यह विचार है की भारत में जो हो रहा है उस पर अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी की नज़रें बहुत दिनों से लगी हुई है I Genocide Watch नामी संस्था ने जब से अपनी रिपोर्ट में कहा है की भारत में मुसलमानों के नरसंहार का वास्तिक खतरा पैदा अहो गया है और किसी भी देश में नरसंहार की जो 10 स्टेज होती है भारत उन में से 8 को पर कर चुका है I हरिद्वार की धर्म संसद में मुसलमानों के नरसंहार की खुले आम बात कही गयी और इसके लिए 20 लाख मुसलमानों की हत्या का टारगेट रखा गया और उस पर भारत सरकार खामोश तमाशाई बनी रही तब से Genocide watch,Human Rights Watch और मानवाधिकार से सम्बन्धित अन्य संस्थाएं बहुत सचेत हो गयी हैं I ऐसी बहुत सी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं जो देशों की रैंकिंग तय करती हैं उन में भारत हर मैदान में नीचे ही गिरता जा रहा है I चाहे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का मामला हो उनके संवैधानिक और मानव अधिकारों का मामला हो चाहे लोकतांत्रिक मूल्यों की पाबंदी का मामला हो, चाहे अदालतों और प्रेस की आज़ादी का मामला हो, हर मामले में भारत की रैंकिंग गिरती ही जा रही है और कई देशों की सांसदों में इस पर चिंता जताते हुए Resolution तक पास हो चुके हैं और यह खतरा पैदा हो गया है कि भारत पर तो नहीं लेकिन संघ के कुछ संगठनों विशेषकर बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद् पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय या ऐसी संस्थाएं कानूनी और आर्थिक पाबंदी लगा सकती है I इन बुद्धजीवियों का विचार है कि मोहन भागवत जी की यह सारी कवायद ऐसी सम्भावित पाबंदियों से बचने के लिए है I
कारण कुछ भी हो आपसी बातचीत की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता और इस लिहाज़ से भागवत जी किन महानुभावों से बातचीत का स्वागत किया जाना चाहिए I यहाँ यह स्पष्ट करना भी ज़रूरी है की भारत में समस्या हिन्दुओं और मुसलमानो के बीच नहीं है असल समस्या संघियों और मुसलमानों के बीच है जिसे कृत्रिम रूप से पैदा किया गया है I जो सम्सायें खड़ी की गयी हैं उन सब का हल हमारे संविधान में दिया है बशर्त सरकार संविधान के तहत काम करे मसलन संविधान में किसी भी जुर्म की सज़ा देने का अधिकार केवल न्यायालय को है लकिन कोई न कोई रास्ता निकाल कर बुलडोज़र न्याय की नयी न्यायिक व्यवस्था शुरू कर दी गयी है और दुखद यह है कि अपने ही अधिकारों के इस अतिक्रमण को अदालत हंसीखुशी बर्दाश्त ही नहीं कर रही है बल्कि उसका औचित्य भी बता देती है Iसमस्या यह है की न्यायपालिका समेत सभी संवैधानिक संस्थाएं सरकार से अलग होने के बजाय सरकार का हिस्सा बन गयी है I क्या अन्य किसी देश में जो संविधान से चलता हो किसी वर्ग के नरसंहार का खुला आह्वान करने वाला आज़ाद घूम सकता है और अगर दिखावा मात्र के लिए ही गिरिफ्तर हो तो दूसरे तीसरे दिन जमानत पर छूट सकता है ? सवाल यह है की सिद्दीक कप्पन और और अर्नब गोस्वामी के लिए न्यायालय में ही दोहरा मापदंड क्यों ? एक जैसे जुर्म करने वाले मुसलमान या सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों पर UAPA,NSA जैसी कठोर धाराओं में मुक़दमा दर्ज कर के जेलमें सडाया जाता है और गैर मुस्लिम या सरकार परस्त पर सामान्य धाराओं पर मुक़दमा क्यों ? आज हालत यह हो गयी है की न्यायपालिका, कार्यपालिका.विधायिका सब जगह मुसलमानों के साथ खुला सौतेला ब्योहार होता है आज़ादी के बाद यह अफ्ली बार हुआ है की केन्द्रीय मंत्रीमंडल में कोई मुस्लिम नहीं है सत्तापक्ष के पास एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है और यह सब सोच समझ के किया जा रहा इत्तिफाक नहीं है I
“इन सब समस्याओं पर खुल के बात करने और सरकार समेत न्यायपालिका कर्य्पालिअक और विधायक के साथ ही साथ लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ मीडिया की सोयी आत्मा जगाने के लिए किसी एक बड़े प्लेटफार्म पर खुल कर बात होनी चाहिए और यह प्लेटफार्म केवल राष्ट्रीय एकीकरण परिषद (National Integration Council ) हो सकती है इस लिए आवश्यक है कि प्रधान मंत्री को यदि देश के समाजी ताने बाने को बचाने की चिंता है तो वह इसकी मीटिंग तुरंत बुला कर समस्याओं पर गौर करें और उसमें जो राय बने उस पर अमल करें I भगवत जी प्रधान मंत्री से कम से कम यह तो करवा ही सकते हैं।