रांची। मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षा प्रेमी हाजी अब्दुल गफूर हव्वारी पंचायत और हव्वारी मस्जिद, रांची के पूर्व सचिव एवं अध्यक्ष और मुस्लिम फंड के पूर्व सदस्य जमीतुल उलेमा हिंद, रांची मदरसा हुसैनिया, कडरु, रांची के हमदर्द का रांची में देहांत हो गया। हाजी अब्दुल गफूर 109 वर्ष के थे। हाजी साहब को शनिवार रात को रातू रोड कब्रिस्तान रांची में सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया। उनके जनाजे की नमाज मदरसा हुसैनिया कडरू के प्रमुख मौलाना मोहम्मद ने पढ़ाई। जनाजे की नमाज के दौरान अपनी बात रखते हुए मौलाना मोहम्मद ने कहा कि हाजी अब्दुल गफूर साहब रांची के लिए एक अनमोल धरोहर थे। बहुत नेक दिल और सब के काम आने वाले। इसीलिए अल्लाह ने ईद-उल-फितर का सुनहरा दिन उन्हें अपने पास बुलाने के लिए चुना। मदरसा हुसैनिया से उन्हें बहुत खास लगाव था।
हाजी अब्दुल गफूर के देहांत की खबर सुनने पर प्रतिक्रिया देते हुए मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता सैयद तनवीर अहमद ने कहा कि रांची के सब से ज़्यादा उम्र के समाज सेवी, हव्वारी पंचायत के 4 दशक तक अध्यक्ष के पद पर कार्य कर चुके और हव्वारी मस्जिद, कर्बला चौक के पूर्व अध्यक्ष और सेक्रेटरी रहे हाजी अब्दुल गफूर साहब एक जाने माने समाज सेवी, ईमानदार छवि के मालिक, काफी मिलनसार, गरीब परवर इंसान थे। इनकी मौत से समाज ने एक बड़े सुलझे हुए जिम्मेदार अभिभावक को खो दिया है। इन्होंने अपनी जिंदगी में हव्वारी पंचायत को एकजुट करने और हव्वारी समाज मे शिक्षा का जो दीप जलाया था, आज उसी का नतीजा है कि हव्वारी पंचायत के लोग पढ़-लिख कर ऊंचे-ऊंचे ओहदे पर कार्यरत हैं। हाजी अब्दुल गफूर साहब की मौत पर अपना दुख व्यक्त करते हुए सूचना सेवा के अधिकारी और हाजी साहब के परिवार के पारिवारिक मित्र शाहिद रहमान ने कहा कि हाजी साहब एक अद्भुत शिक्षा प्रेमी थे उन्होंने समाज को सही राह दिखाने का हमेशा प्रयास किया। हाजी साहब का जाना रांची के इतिहास के एक पन्ने का बंद हो जाने जैसा है।
जनाजे़ की नमाज में शामिल होने व मिट्टी में शामिल होने आए अंजुमन इस्लामिया रांची के अध्यक्ष इबरार अहमद ने कहा कि हाजी अब्दुल गफूर साहब का पूरा जीवन समाज सेवा को समर्पित था। यही कारण है की पूरे रांची शहर व झारखंड में वह एक जाना पहचाना नाम थे। अबरार साहब ने कहा कि पिछले दिनों अंजुमन इस्लामिया अस्पताल के बच्चों के वार्ड का शिलान्यास करना था तो अंजुमन के लोगों ने अत्यधिक उम्र व बीमार होने के बावजूद इस नेक काम के लिए हाजी साहब को ही आमन्त्रित किया। शिलान्यास के अवसर पर हाजी साहब ने उनके पास सहेज कर रखे हुए चौदह हजार रुपए बच्चा वार्ड की भलाई के लिए दान कर दिये। अबरार ने बतया कि हाजी साहब के अच्छाइयों की एक लंबी फेहरिस्त है और समाज के लिए उनके कंट्रीब्यूशन की जितनी भी तारीफ की जाए वह कम है।
हाजी साहब के सबसे छोटे बेटे जावेद अहमद जो सुधा डेयरी में कार्यरत हैं, ने बताया कि ईद के दिन उनका इस दुनिया से जाना इसलिए भी खास है कि प्रतिवर्ष ईद की नमाज के बाद रांची शहर और आसपास के 100 से अधिक लोग सीधे हाजी साहब से मिलने आया करते थे और ईद की बधाइयां देने और सेव्वयां इत्यादि खाने के बाद ही फिर अपने अपने घरों की ओर रवाना होते थे।
जावेद ने बताया कि आस-पास के हर समाज के लोग बीमार होने पर या किसी परेशानी में हाजी साहब से दुआ कराने या पानी पढ़वा कर ले जाने के लिए रात के दो बजे भी घर पर बिना झिझक दस्तक देते थे और वह खुशी-खुशी उनकी आवश्यकता पूरी करते। हाजी साहब ने अपने पीछे एक भरा-पूरा परिवार छोड़ा है।
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