ध्रुव गुप्त
संगीतकार खय्याम का गुज़र जाना बहुत उदास कर गया। वे संगीत निर्देशकों की उस पीढ़ी के शायद आखिरी जीवित व्यक्ति थे जिनके लिए संगीत शोर नहीं सुकून था, राहत था, प्रेम की गहराई में धंसने और भीग कर बाहर निकलने का अवसर था, प्रेम के लिए खुला आकाश और आंसुओं के लिए मुलायम तकिया था।
उन्होंने बहुत कम फिल्मों में ही संगीत दिया, लेकिन फिल्म ‘फुटपाथ’ के गीत ‘शामे ग़म की कसम आज ग़मगीं हैं हम’ से लेकर ‘उमराव जान’ के गीत ‘ये क्या जगह है दोस्तों, ये कौन सा दयार है’ तक की उनकी संगीत-यात्रा में में प्रेम के इतने सारे शेड्स हैं कि हमसबको अपने हिस्से का कुछ न कुछ उनमें मिल ही जाता है। जिस दौर में फिल्मों में उनका आना हुआ, वह शंकर जयकिशन, नौशाद, रोशन, मदन मोहन, चित्रगुप्त, हेमंत कुमार, रवि, कल्याणजी आनंदजी जैसे संगीतकारों का दौर था।अपनी सुकून भरी अलग संगीत शैली की वजह से वे अपने लिए एक ख़ास जगह बनाने में सफल हुए।
वे गीत जिन्होंने दिलाई खय्याम को ख्याती
खय्याम के जिन कुछ गीतों ने हमारी कल्पनाओं को सबसे ज्यादा उड़ान दी, उनमें प्रमुख हैं – जीत ही लेंगे बाज़ी हम तुम, ठहरिये होश में आ लूं तो चले जाईयेगा, फिर छिड़ी रात बात फूलों की, दिखाई दिए यूं कि बेसुध किया, बहारों मेरा जीवन भी संवारो, देख लो आज हमको जी भर के, करोगे याद तो हर बात याद आएगी, हज़ार राहें मुड़ के देखी, ऐ दिले नादां आरज़ू क्या है जुस्तजू क्या है, देखिये आपने फिर प्यार से देखा मुझको, आंखो में हमने आपके सपने सजाये हैं,कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है, मैं पल दो पल का शायर हूं, ज़ुस्तज़ू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने, ज़िंदगी जब भी तेरे बज़्म में लाती है हमें, पर्वतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा है, आसमां पे है ख़ुदा और ज़मीं पे हम, आप यूं फ़ासलों से गुज़रते रहे, तुम अपना रंज़ो ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो, जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आंखें मुझमें, दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिए, सिमटी हुई ये घड़ियां, बुझा दिए हैं खुद अपने हाथों मुहब्बतों के दीये जला के। अलविदा,खय्याम साहब ! अपने गीतों के रूप में आप सदा हमारी धड़कनों में शामिल रहेंगे !