जीवन अनमोल है, इसमें ढेरों संभावनाएं छुपी हुई हैं। यही दिशा, मार्गदर्शन, सतत प्रयास और आत्मबल के संयोजन से ऐसा क्या है जो मनुष्य हासिल नहीं कर सकता। कुछ भी हासिल करने के लिए जो पहली मांग है, वो है चाह। व्यक्ति तभी किसी कार्य सिद्धि की चाह करता है, जब उसके अंदर ज्ञान का आलोक है, जिज्ञासा का बीज हो, मार्गदर्शन का समय-समय पर सींचन हो और निरीक्षण करने वाली आंखें हों। बिना रोक-टोक का जीवन कठिन परिस्थितियों में हठात-बलात या दैव योग से अराजक हो सकता है लेकिन, एक सामर्थ्यवान गुरू संग व अनुसरण से दुर्भाग्य की मार भी व्यक्ति को हरा नहीं पाती और वह परिस्थिति जन्य विकट तमाम उपद्रवों पर विजय हासिल कर सकता है।
महिलाएं जीवन का आधार हैं वो केवल कोख से संतानोत्पत्ति ही नहीं करती अपितु वे निर्माण करती हैं एक सभ्य, शिक्षित सभ्रांत समाज का। महिलाओं द्वारा सभ्य समाज व हमारे सुनहरे साहित्य व संस्कृति को संजो के रखने और भावी पीढ़ी को सौंपने का उत्तरदायित्व जिस सरलता और प्रवीणता के साथ महिलाओं द्वारा निभाया जाता है उनका यह किरदार उनकी समाज में महत्ता को स्वयं सिद्ध करता है। महिला आजीवन अपने आचरण, व्यवहार और संस्कार से प्रतिपल समाज को सिंचित करती रहती है। हिंदू संतों का व देश के अन्य विद्वतजनों का यह विश्वास है कि संतान अपने संस्कारों को बचपन में मां की कोख से ही सीखना शुरु कर देती है। इसी कारण मां को पहला गुरु माना जाता है।
व्यक्ति का जीवन उसके पूर्वजों द्वारा आर्जित किए गए ज्ञान, व्यवहार, संस्कार को सीखने से समृद्ध होता है। मां बड़ी ही प्रवीणता व सरलता से संतान में इतिहास को संजोई संस्कृति को हमारे आचार-विचार पौशाक, खान-पान, तहज़ीब, रहन-सहन को हमारे भीतर बहुत गहरे बैठाने का काम करती है। बालक को पता ही नहीं चलता कि मां ने कब उसके अंदर पूरे समाज के संस्कार भर दिए। बालक जब तक समझने लायक होता है तब तक तो ये संस्कर उसका आचरण बन चुके होते हैं, बड़ी ही साफगोई से घर की महिलाएं अपने पुरखों की सूझ-बूझ, जिससे हम जीवन जीने की कला सीख सकें, को हम में लोरियों के माध्यम से रोप देती हैं। उनकी वो मधुर हास्यात्मक किस्से कहानियां हमें जीवन में आनंद ने जीना सिखाती हैं, हम जीवन का मूल्य समझते हैं और हमारे भीतर कहीं न कहीं जिजिविषा का श्रोत बहता रहता है। इसी से समझ में आता है कि महिलाएं मां के रूप में हमारे जीवन को कैसे संवारती हैं।
जननी केवल हमें जन्म ही नहीं देती बल्कि वो परिवार की पिरोती है। जननी कभी मां कभी बहन कभी चाची तो कभी बुआ, कई किरदारों में अपनी भूमिका का निर्वहन करती है। ऐसे में उसके समक्ष कई रिश्ते होते हैं जो उसको निभाने होते हैं। इन तमाम रिश्तों को निभाने में उसे न केवल संयम की आवश्यकता होती है बल्कि व्यवहार कुशलता उसका अति महत्वपूर्ण पहलू है और ये गुण उपजता है, उसके अंत: पुष्ट विचार से। सुबह से लेके देर रात तक मधुर भाव मे रहकर परिवार के सभी सदस्यों की ज़रूरतों का ध्यान रखते हुए उनके उठने बैठने से लेके पहनने ओढ़ने से खाने तक की तमाम ज़िम्मेदारियों को बिना किसी के कहे शांत भाव से बिना कुछ जताये करने का गुण महिलाओं का होता है। वह बिना अपने अहम भाव के सदैव परिवार की सुख शान्ति के लिए तत्पर रहती है। वह कभी नहीं जतातीं कि परिवार के सदस्यों के जीवन के कुशल निर्वाह में उसका योगदान कितना अविस्मरणीय है। वह घर के नाते से रिश्तेदारों को बुलाकर उनकी सेवा करती है, वह जानती है कि इससे उसके परिवार वालों को प्रसन्नता होगी, उनमें आपसी प्रेम बढ़ेगा। उसके द्वारा निभाए गए ये रिश्ते ही आढ़े वक्त में काम आते हैं। इस प्रकार वह दूरदर्शी है, वह जानती है कि परिवार को मज़बूत बनाने और प्रसन्न रखने के लिए नाते रिश्तेदारों से प्रेम मुरव्वत बनाये रखना कितना उपयोगी होता है।
बहन जब अपने भाई के हाथ की कलाई में धागा बांधती है तो यह रक्षासूत्र भाई को सदैव यह याद दिलाता रहता है कि कोई उसको अपना रक्षक मानता है और उस पर बहुत विश्वास करता है, उससे बहुत प्रेम करता है। इससे उस व्यक्ति पर अपने आप को अच्छा इंसान बनाए रखने की प्रेरणा तो मिलती ही है लेकिन, सबसे पहले उसे जिस बात का अहसास होता है, वह है पवित्र प्रेम की भावना। जिसका सरोकार दुनियादारी से न होकर केवल एक दूसरे का भला स्वयं से पहले चाहने की भावना से है। बहन का यह प्रेम भाई में आत्मविश्वास, आत्मसम्मान और कर्मनिष्ठा की भावना का संचार करता है। जिसके हाथ में रक्षासूत्र बंधा हो तो वह कभी किसी स्त्री को बुरी निगाह से नहीं देख सकता, क्योंकि वह इस बात को महसूस करता है कि अन्य स्त्रियां भी उसी की बहन की तरह किसी परिवार की प्यारी सदस्य हैं जो अपने परिवार को उसी प्रकार से पूरा करती हैं जिस प्रकार से उसकी खुद की बहन। यह रिश्ता उसे इंसान बनने की प्रेरणा देता है। परिवार में चाची मामियां मौसियां सभी की होती हैं, ये वो रिश्ते हैं जिन्हें हम बचपन में, हम अपनी छुट्टियों में, अपने जीवन की बड़ी उपलब्धियों में, दुखी होने पर याद करते हैं और अपने पास पाते हैं। परिवार में डांट पड़ने पर यही हमारा पक्ष लेती हैं, गाहे बगाहें हमें भेंट देकर प्रोत्साहित करती हैं, अपने किस्से कहानियों से अपनापन दर्शाती हुई हमें अपने प्यार में ओंट लेती हैं। इनसे हम सीखते हैं मिलजुल कर रहना, अपने से पहले दूसरों की सोचना और साथ ही हम सीखते हैं हंसी मज़ाक करना और उसे सहना। इसी से हमें समझ में आता है कि किस प्रकार अपने अहम को त्यागा जाता है और सामने वाले की इच्छानुसार समय की औचित्यता को ध्यान में रखते हुए त्याग किया जाता है। इस प्रकार महिलाएं हमारे जीवन के गुणों की पोषक होती हैं।
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