(उबैदुल्लाह नासिर)
समय बहुत बलवान होता है और समय, समय-समय पर अपनी शक्ति का प्रदर्शन भी करता रहता है I समय बलवान हो तो गधा पहलवान हो जाता और समय खराब भो तो एक अदना चींटी हाथी को ढेर कर देती है ऊँट पर सवार आदमी को भी कुत्ता काट लेता है I जीवन की इस वास्तविकता का नवीनतम उदाहरण है अडानी ग्रुप जिनकी किस्मत का सितारा विगत चाँद बरसों से इतनी बुलंदी पर था की पूरा भारत ही एक तरह से उनके क़दमों में डाल दिया गया था और महज़ कुछ बरसों में ही पहली पीढ़ी का यह बिजनेसमैन दुनिया के तीसरे सब से आमीर आदमी होने का गौरव हासिल कर लिया था लेकिन समय ने खेला कर दिया एक अमरीकी ड्राईवर के नवजवान लड़के एंडरसन की कंपनी हिंडनबर्ग ने अडानी के आर्थिक साम्राज की ऐसी पोल खोली की वह दो दिनों में तीसरे नम्बर के अमीर होने की श्रेणी से लुढ़क कर 17वें नम्बर पर आ गए I विपक्ष ने अदानी के क्रियाकलापों के जाँच के लिए संयुक्त संसदीय कमिटी(जेपीसी) गठित करने की मांग की है और यह वाजिब भी है क्योंकि मोदी के भारत में संस्थाओं और विभागों की जो हालत है और उनका जो काम करने का ढंग है उस पर अब बहुत मुश्किल से विश्वास किया जा सकता है I अदानी ने जो कुछ भी किया वह सत्ता के समर्थन के बिना संभव नहीं था और और सत्ता के खेल सत्ता के सौदों का पर्दा केवल जेपीसी ही फाश कर सकती है कोई संस्था या विभाग नहीं I
एंडरसन की यह कंपनी हिंडनबर्ग दुनिया भर में निवेश की मामलों की जांच पड़ताल करती है उस ने अपन रिपोर्ट में अडानी ग्रुप के आर्थिक मामलों का ऐसा कच्चा चिट्ठा दुनिया के सामने रख दिया की शेयर बाज़ार में तहलका मच गया और अडानी ग्रुप के जिन शेयरों की कीमत आसमान छू रही थी वह धडाम से ज़मीन पर आगये और केवल दो दिनों में ही इस ग्रुप को करीब 4 लाख करोड़ रुपयों का घाटा उठाना पडा लेकिन दरअसल यह घाटा उनका नहीं था भारत के उन लाखों लाख गरीब लोगों का था जिन्होंने जीवन बीमा निगम और भारतीय स्टेट बैंक में अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा लगाया था I इस पैसे से जीवन बीमा निगम ने अडानी ग्रुप के शेयर, मार्किट से ज्यादा मूल्य पर खरीद लिए थे और state बैंक ने उसे अंधाधुंध क़र्ज़ दिया था ज़ाहिर है अडानी ग्रुप का जो 4 लाख करोड़ रुपया डूबा उसमें सब से बड़ा हिस्सा इन्ही दो संस्थाओं का था जिनके पास भारत की जनता का पैसा अमानत के तौर पर रखा गया था इस तरह यह घाटा अंततः भारत के लोगों का हुआ I सभी जानते हैं की स्टेट बैंक हो या भारतीय जीवन बीमा निगम उन्होंने ने यह शेयर सरकार के कहने पर या सरकार की मंज़ूरी से ही खरीदे थे और उसी के कहने पर इतना बड़ा क़र्ज़ दिया था Iअब बैंक कह रहा है की वह कोई भी क़र्ज़ बिना सोचे समझे नहीं देगा सवाल यह है की पहले ही क्यों दिया था आप जनता के पैसों के रक्षक (अमीन ) हो आपने तो अमानत में खयानत की है I
जीवन बीमा निगम हो या बैंक या कोई और वित्तीय संस्थान यह सब जनता के पैसों के अमीन ( रक्षक ) होते हैं इन्हें यह अधिकार किसी ने नहीं दिया की वहब जनता के पैसों को अनाप शनाप तरीके से खर्च करें दुसरे जनता यह पैसा इन संस्थाओं को साकार पर विश्वास कर के देती है और विश्वास रखती है कि सरकार इन संस्थाओं पर कड़ी नज़र रखेगी ताकि उनके पैसा का दुरूपयोग न हो और न ही उहें लापरवाही के साथ इधर उधर खर्च कर दिया जाए या निवेश कर दिया जाए लेकिन जब सरकार ही जनता के पैसोन्न को बेदर्दी से खर्च कर रही हो गैर ज़िम्मेदाराना तरीकों से क़र्ज़ दिलवाए या निवेश करवाए तो तो अवाम मजबूर तमाशाई बने रहने के अलावा और क्या कर सकते हैं I अवाम के हाथों में सब से बड़ी ताक़त उनका वोट होता है मगर आज कल वोट कैसे दिया जाता और क्या क्या बाजीगरी से वोट लिए जाते हैं यह किसी से छुपा नहीं है जब कोरोना से लाखों लोगों की मौत,लाक डाउन से लाखों मजदूरों की दुर्दशा,नोट बंदी से कटोरा हाथ में आ जाने GST से छोटे कारोबार समाप्त हो जाने और ऐसी ही तमाम दुर्दशाओं के बाद भी मोदी जी चुनाव जीतते जा रहे हैं तो अडानी ग्रुप की महिमा से खरबों का नुकसान भी अवाम को सरकार से बद्दिल नहीं कर सकता, रह गया अदानी का नुकसान तो सरकार उसके लिए रास्ता निकाल लायी है Iअर्थात अडानी के FPO में पैसा लगा कर अम्बानी, मित्तल,जिंदल जैसे बड़े बड़े उद्योगपतियों ने संभाला दे दिया है यह एकम तरह से money पार्किंग का केस है अर्थात पैसा लगा कर शेयर किन गिरावट संभाल ली गयी फिर चुपके से पैसा वापस कर दिया गया यह सब किस के इशारे पर हुआ और क्यों सरकारी एजेंसियां ऐसी डील पर आँख मूंदे रखती है यह देश का बच्चा बच्चा जानता है I एडिनबर्ग ने जो खुलासे किये है यह खुलासे अगर किसी अन्य ग्रुप के बारे में होते तो अब तक ED इनकम टैक्स सी बी आई और न जाने कितनी अन्य एजेंसियों ने उक्त कम्पनी के मालिकों का बुरा हाल कर दिया होता और मीडिया चीख चीख कर उसे देश द्रोही साबित कर चुका होता लेकिन यहाँ तो सय्याँ भये कोतवाल तो डर काहे का वाला मामला है Iउलटे अडानी ग्रुप ने इन खुलासों को भारत पर हमाल बता दिया अब तक तो मोदी की आलोचना ही गुजरात की अस्मिता पर हमला और राष्ट्र विरोधी कृत्य कहा जाता था अब भ्रष्टाचार उजागर करना भी देश पर हमला हो गया एडिनबर्ग ने भी मुंह तोड़ जवाब देते हुए कहा है की भ्रष्टाचार को तिरंगे से ढकने की कोशिश सफल नहीं हों सकती I
स्टॉक मार्किट में इस खुलासे के बाद जो तबाही आई थी उस से अदानी की कम्पनी में लगाया गया जीवन बीमा निगम का 23 हज़ार करोड़ रुपया डूब गया ध्यान रहे कि 2020 तक अदानी की कंपनियों में इस संस्था का केवल सात हज़ार करोड़ रुपया लगा था लेकिन 2023 आते आते यह निवेश करीब दस गुना बढ़ गया और इसी साल जनवरी तक यह निवेश 81हज़ार करोड़ रुपया हो गया था, इतना बड़ा निवेश किस के इशारे पर हुआ था और जो पैसा डूबा है इसका ज़िम्मेदार कौन है यह सवाल कौन कहाँ और किस से पूछा जाए? संसद में इसका जवाब वित्त मंत्री को देना चाहिए लेकिन भारतीय संसद में अब जो हो रहा है वह किसी से छुपा तो है नहीं, वह दिन गए जब स्व. फ़िरोज़ गाँधी अपनी ही सरकार को वित्त मंत्री का इस्तीफ़ा लेने के लिए मजबूर कर देते थे या महाबीर त्यागी जैसे मंत्री प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु के जवाब से असंतुष्ट हो कर काबिना से इस्तीफ़ा दे देते थे I अडानी की पांच बड़ी कंपनियों पर करीब 20 खरब रूपये का क़र्ज़ है इसमें 40% क़र्ज़ सरकारी बैंकों से लिया गया है इन में सब से ऊपर भारतीय स्टेट बैंक है अब यह बैंक कह रहा है की वह भविष्य में सोच समझ कर क़र्ज़ देगा सवाल यह है की अब तक बिना सोचे समझे क्यों रेवड़ी बाँट दी थी और SEBI जैसी संस्था क्या कर रही थी ? क्या इन सब को “कोतवाल” का डर खाए जा रहा था ?
आप को याद होगा हर्षद मेहता ने भी ऐसा कोई खेल किया था कितने दिनों वह जेल में सड़ा था जबकि यहाँ अडानी से पूछताछ तक नहीं हुई उलटे उनको उभारने के लिए FPO का खेल किया गया जिसमें उन्हीं कॉर्पोरेट घरानों ने पैसा लगाया जो PM care फण्ड और इलेक्टोरल बांड्स में करोरों रुपया दे कर इनाम अरबों रुपया का फायदा उठा चुकी हैं आवारा पूँजी (Crony Capitalism) का यही गोरख धंधा होता है बस सत्ता की मेहरबानी साथ होना चाहिए I देश में जब बहुत हाय तोबा मची तो अदानी ने FPO का पैसा निवेशकों को वापस करने का एलान कर दिया I यहाँ एक बात और याद दिलाना ज़रूरी है की हर्षद मेहता के घपलों को एक भारतीय पत्रकार Ms सुचिता दलाल ने उजागर किया था यह तब की पत्रकारिता थी आज अडानी के जुर्मों पर पर्दा डालने के लिए भारतीय मीडिया जिसे अब गोदी मीडिया कहा जाने लगा है दिन रात एक किये हुए हैं एक से एक कथित एक्सपर्ट्स को बुला कर झूट फैला कर अवाम को वर्गालाया जा रहा है I विपक्ष सदन और सदन के बाहर हंगामा तो कर रहा है लेकिन राफेल,सहारा डायरी या पनामा लीक्स और अन्य घपलों की तरह सरकार क्या इस को भी कालीन के नीचे दबा देने में सफल होगी यह देखने की बात है I जहां तक जनता की बात है तो वह अमृत काल में मुग़ल गार्डन के अमृत उद्यान हो जाने और 5 किलो राशन में मस्त है जिनका पैसा डूबा है, शायद वह भी इस विधि का विधान समझ का भूल जाएं, क्योंकि अब वह अधिक धार्मिक हो चुके हैं I
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