रवीश कुमार

टाइम्स ऑफ इंडिया की ख़बर है। महानगर की चार लाख दुकानों में से पचास हज़ार स्थायी रूप से बंद हो चुकी हैं। दुकानों पर To-Let के साइन बोर्ड लटकते दिख रहे हैं।बहुत से दुकानदार किराया देने की स्थिति में नहीं हैं। दुकानें खुली हैं मगर बिज़नेस नहीं है। ज़ाहिर है इन दुकानों में काम करने वालों का रोज़गार भी चला गया होगा।

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क्या यूपी बिहार और दिल्ली में भी ऐसा हुआ होगा? यहाँ के व्यापारिक संगठनों ने तो ऐसा कुछ बताया नहीं है। मुमकिन है इन दो राज्यों में ऐसा न हुआ हो। जिस तरह से यहाँ अच्छे अस्पताल बने हैं, टॉप क्लास कालेज खुले हैं, परीक्षाएँ समय पर होती हैं, नौकरियाँ मिल रही हैं मुझे नहीं लगता कि यूपी बिहार में बंगलुरू जैसी स्थिति होगी। यही कारण है कि यहाँ का नौजवान अलग मुद्दों पर हो रही बहस में उलझा है। जो कि सही भी है। जब वास्तविक समस्याएँ समाप्त हो जाएँगी तो कोई क्या करे। उत्तर भारत के राष्ट्रीय चैनलों पर होने वाली काल्पनिक बहसों को देखना ही चाहिए। समय व्यतीत करने का अच्छा मौक़ा मिलता है। इसीलिए यूपी बिहार का नौजवान अपनी धार्मिक और जातीय पहचान में मग्न है। खुश है।

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