रवीश कुमार

हिन्दी पत्रकारिता से भारत का एक नुकसान होता है। जाने-अनजाने में। आम तौर पर हिन्दी पत्रकारिता की दुनिया तीन-चार विषयों और क्षेतों तक सीमित रह जाती है। लेकिन भाषा की ताकत के कारण इसका चरित्र और प्रभाव राष्ट्रीय माना जाने लगता है। इसलिए इसकी दुनिया से बाहर रह जाने वाली समस्याओं और ख़बरों से समाज और देश को काफी नुकसान हो जाता है। आज एक मैसेज आया। लगा कि लिखने वाले को भाषा की समस्या है। मैंने बात की। एक पाव अंग्रेज़ी उधर से आई तो एक छंटाक अंग्रेज़ी इधर से गई। हम दोनों ने बातें की और कुछ समझा। 

देश दुनिया की अहम खबरें अब सीधे आप के स्मार्टफोन पर TheHindNews Android App

पता चला कि फोन करने वाले किसान का नाम वामन रेड्डी हैं। तेलंगाना के निज़ामाबाद संसदीय क्षेत्र के किसान हैं। जग्तियाल ज़िले के हैं। उन्होंने तस्वीरें भेजी जिससे पता चलता है कि सड़क पर मक्का रखा हुआ है। पूछने पर बताया कि सरकार ने मक्के के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य 1850 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। तेलंगाना में मंडी सिस्टम नहीं है। वहां खुला बाज़ार है। इसके बाद भी मक्के का भाव 1000-1100 प्रति क्विंटल से अधिक नहीं मिल रहा है। मक्का किसानों को घाटा हो रहा है।  

यही नहीं उन्होंने हल्दी के दाम के बारे में कुछ कहा। पूरी बात समझ नहीं आई तो इंटरनेट पर सर्च किया। पता चला कि हल्दी के किसानों के लिए दाम कितना बड़ा मुद्दा है। केंद्र सरकार हल्दी के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय नहीं करती है। किसानों की मांग को देखते हुए एक टास्क फोर्स बनाया गया था। इसके बारे में फरवरी 2020 की टाइम्स आफ इंडिया की ख़बर है कि टास्क फोर्स के सामने कई राज्यों ने अलग-अलग रेट तय करने का प्रस्ताव रखा है। तमिलनाडु ने कहा है कि 12,500 रुपये प्रति क्विंटल का भाव हो तो तेलंगाना चाहता है कि 9000 रुपये प्रति क्विंटल हो। 

निज़ामाबाद में चुनावी मुद्दा था कि यहां हल्दी बोर्ड बने और बोर्ड हल्की की ख़रीद करे ताकि किसानों को नुकसान न हो। वामन रेड्डी जी ने कहा कि खुले बाज़ार में कभी भी 6000 प्रति क्विंटल का रेट नहीं मिलता। किसानों को घाटा होता है। हमने और सर्च किया। 5 अक्तूबर की हिन्दू बिज़नेस लाइन की ख़बर मिली। हल्दी किसानों के नेता अन्वेष रेड्डी का बयान छपा है कि एक एकड़ हल्की की खेती का लागत डेढ़ लाख रुपये है। एक एकड़ में 22-24 क्विंटल हल्दी होती है। किसानों को सिर्फ लागत मिल जाए इसके लिए 7000 रुपये प्रति क्विंटल का भाव होना चाहिए लेकिन यह रेट कभी नहीं मिलता। किसानों से सस्ता ख़रीद लिया जाता है लेकिन मार्केट में हल्दी कितनी महंगी बिकती है। उससे हमारा दिल टूटता है। तेलंगाना के किसान चाहते हैं कि 15000 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिले। 

सोचिए इतना बड़ा देश है। अगर चैनलों के पास संसाधन हो, नियत हो और सभी समस्याओं पर नज़र दौड़ाई जाए तो कितने कम समय में समाधान होगा और समाज का भला होगा। शायद इसी वजह से हर छोटे बड़े मामले में लोग मुझे लिख देते हैं कि आपसे ही उम्मीद हैं। मैं क्या ही कर सकता हूं। न तो सभी समस्याओं पर लिख सकता हूं और न चैनल में दिखा सकता हूं। यह बात संसाधन और नेटवर्क की है जो नहीं है। सोचिए आप मीडिया से कितना कम जानते हैं। भारत के बारे में कितना कम पता चलता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here