कोरोना को आए पूरा एक साल हो चुका है, एक साल में दुनिया के अन्दर बहुत-से बदलाव आए हैं, इनमें पॉज़िटिव बदलाव भी हैं और नेगेटिव भी, अगर एक तरफ़ दुनिया में बेरोज़गारी में बढ़ोतरी हुई है, ग़रीबी ने और ज़्यादा पाँव पसारे हैं, बाज़ार बेरौनक़ हुए हैं तो दूसरी तरफ़ अम्बानी और अडानी की दौलत में बेहद बढ़ोतरी हुई है.
मेटेरियल रिसोर्सेज़ (भौतिक संसाधनों) का इस्तेमाल कम हुआ है तो नई टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल में बढ़ोतरी हुई है, अलबत्ता कुल मिलाकर यही कहा जाएगा कि तमाम इन्सान घाटे में हैं, अब एक साल बाद सूचनाएँ मिल रही हैं कि दुनिया में कोरोना का इलाज तो नहीं अलबत्ता कोरोना से बचाव का टीका यानी कोरोना वैक्सीन तशरीफ़ ले आई हैं.
हालाँकि बहुत देर कर दी मेहरबाँ आते-आते, इसके बावजूद हम सब वैक्सीन का स्वागत करते हैं,
सुना है कि वैक्सीन का आना किसी शहंशाह के आने से कम नहीं है, बड़ी तैयारियां करना होंगी, बड़े-बड़े रेफ़्रिजरेटर की ज़रूरत होगी ताकि वैक्सीन का मिज़ाज ठण्डा रहे, सर्द इलाक़ों में रखी जाएँगी.
वैक्सीन लगाने वाली टीम भी अलग होगी उनको इसकी ट्रेनिंग दी जाएगी, ख़ैर, हर सतह पर इसके स्वागत की तैयारियाँ शुरू हो चुकी हैं, हमारे देश की दवा बनाने वाली कम्पनियों ने भी वैक्सीन बनाने का काम किया है मगर अभी आख़िरी मरहले में है.
कोरोना वैक्सीन के आने से पहले ही बहुत-सी ग़लतफ़हमियाँ समाज में फैल रही हैं, कोई कह रहा है कि ये यहूदियों की वैक्सीन है जिससे इन्सान के अन्दर बच्चे पैदा करने की ताक़त ख़त्म हो जाएगी और इन्सानी नस्ल की पैदाइश का सिलसिला रुक जाएगा.
एक साहिब कह रहे थे कि इसको लगाने के बाद इन्सान माँ, बहन और बीवी में फ़र्क़ नहीं कर सकेगा और बेहयाई की इन्तिहा को पहुँच जाएगा, किसी बुद्धिमान का कहना है कि इस वैक्सीन के ज़रिए इन्सान के जिस्म में इस तरह के जीवाणु दाख़िल कर दिये जाएँगे जिसकी वजह से वो हर वक़्त सरकार की नज़र में रहेगा.
कुछ का कहना है कि सरकारें इसका इस्तेमाल लोगों की फ़िक्र और नज़रिये को बदलने और अपना हमनवा और हिमायती बनाने के लिये करेंगी, ग़रज़ जितने मुँह उतनी बातें, लेकिन इन ग़लतफ़हमियों का निगेटिव असर ये पड़ेगा कि लोग वैक्सीन नहीं लगवाएँगे.
जिस तरह कोरोना के टेस्ट से आम इन्सान की जान सूख जाती है और टेस्ट के नाम पर वो भागता है, मरीज़ के घरवाले भी घबरा जाते हैं इसी तरह अब वैक्सीन के नाम से लोग भागेंगे और वही मंज़र होगा जो कभी चेचक और पोलियो के टीके के मौक़े पर हुआ था.
वैक्सीन के बारे में ग़लतफ़हमियाँ पैदा होना नेचुरल बात है, क्योंकि ख़ुद कोरोना के बारे में भी अभी तक आम जनता ग़लतफ़हमी में जी रही है, जनता को ये समझ में नहीं आ रहा है कि कोरोना बाज़ारों और तिजारत की मण्डियों या शिक्षण संस्थाओं में ही क्यों है?
इलेक्शन की रैलियों और नेताओं की कॉन्फ़्रेंसों या सरकारी बसों और सरकारी ट्रांसपोर्ट सिस्टम में क्यों नहीं है, बिहार जैसे सुविधाओं से वंचित राज्य में पूरा चुनाव इस तरह हो गया जैसे कोरोना कभी आया ही न हो, बिहार की जीत पर हमारे प्रधानमन्त्री ने शानदार जश्न मनाया और कोरोना मुँह देखता रह गया.
चुनाव ख़त्म होते ही फिर कोरोना के केस बढ़ने लगे और दिल्ली सहित देश के अलग-अलग राज्यों में बाज़ार बन्द होने, शादी-ब्याह में लोगों के इकट्ठा होने पर पाबन्दी की ख़बरें आने लगीं.
वो तो शुक्र है कि बंगाल का चुनाव सर पर है इसलिये शायद सरकार ने कोरोना के पाँव खींच लिये वरना कोरोना की दूसरी लहर के आने ने मज़दूर और ग़रीब इन्सान की साँसें रोक दी थीं और कोरोना की दहशत एक बार फिर दिल-दिमाग़ पर छाने लगी थी.
कोरोना हो या कोरोना की वैक्सीन इनके बारे में ग़लतफ़हमियों को दूर होना चाहिये, हमें ये तस्लीम करना चाहिये कि कोरोना एक बीमारी है, छूत की बीमारी है.
इससे प्रभावित होकर दुनिया भर में 16 लाख से ज़्यादा लोग जान से हाथ धो बैठे हैं, अपने देश में ही एक लाख चवालीस हज़ार लोग मर चुके हैं, हालाँकि इन आँकड़ों में घोटाले की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन कोरोना के वुजूद के इनकार की गुंजाइश नहीं है.
अब कोरोना को तस्लीम कर लेने के बाद ये भी तस्लीम करना चाहिये कि इसकी वैक्सीन भी है जो इस बीमारी से लड़ने के लिये हमारे शरीर के डिफ़ेंसिव सिस्टम को मज़बूत करेगी, ख़ाह-म-ख़ाह की ग़लतफ़हमियों को पालने और फैलाने के बड़े नुक़सानदेह प्रभाव पड़ते हैं.
हमें याद है कि पोलियो की दवा पिलाने के वक़्त में भी बहुत सी ग़लतफहियाँ पाई गई थीं, ख़ास तौर से मुसलमानों में ये ग़लतफ़हमियाँ ज़्यादा फैल जाती हैं और इनकी तरफ़ से सरकारी अमले की मुख़ालिफ़त भी ज़्यादा होती है.
पोलियो के बारे में भी आलिमों और मदरसों को इसके जायज़ होने के फ़तवे जारी करने पड़े थे, इस मुख़ालिफ़त की वजह से पूरी मुस्लिम उम्मत निशाने पर आ जाती है और जाहिल के नाम से पुकारी जाती है, हालाँकि देश की प्राचीन सभ्यता पर गर्व करने वालों ने दिये जलाकर, थाली बजाकर, ‘गो कोरोना, गो’ के नारे लगाए थे.
गोबर शरीर पर मलकर और गाय का पेशाब पीकर अपनी समझ के अनुसार कोरोना का इलाज किया था, ज़ाहिर है ये दोनों ही अमल जाहिलियत की दुनिया में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने के लिये काफ़ी हैं,
इसलिये कोरोना वैक्सीन के मौक़े पर हमें किसी भी तरह की ग़लतफ़हमी न ख़ुद पैदा करना है, न फैलाना है, न किसी ग़लतफ़हमी का शिकार होना है, बल्कि वैक्सीन ख़ुद लगवाना है, दूसरों को लगवाने पर आमादा करना है, सरकार और सरकारी अमले का तआवुन और सहयोग करना है.
इसके लिये अभी से ज़ेहन बनाने का काम करना है, अगर ऐसा नहीं किया गया तो मुस्लिम उम्मत हमेशा की तरह पीछे रह जाएगी, मीडिया इसे तरह-तरह के नामों से पुकारेगी और बदनाम करेगी, आलिम अभी से मस्जिदों के मेंबर से इस बारे में लोगों का ज़ेहन साफ़ करें, वैक्सीन एक दवा और इलाज है.
दुनिया में लाखों बीमारियाँ हैं जिस तरह उनकी दवाएँ हैं उसी तरह इस नई बीमारी की ये नई वैक्सीन है, होना तो ये चाहिये था कि मुस्लिम दुनिया इसका इलाज तलाश करती मगर वह तो हाथ पर हाथ धरे ग़ैरों की तरफ़ देख रही है, हमें उन डॉक्टर्स का शुक्र अदा करना चाहिये, जिन्होंने कोरोना की वैक्सीन तैयार की, क्योंकि इस वक़्त ये इन्सानियत की बड़ी ख़िदमत है.
हमारा ईमान है कि इन्सान को अल्लाह ने ख़ैर व शर की तमीज़ देकर भेजा है उससे ये तमीज़ कोई दवा या वैक्सीन नहीं छीन सकती, न इन्सान के विचारों और नज़रियों को बदलने वाली कोई दवा आ सकती है.
हमारा यह भी ईमान है कि अल्लाह के मंसूबे के मुताबिक़ तमाम रूहें दुनिया में ज़रूर आएँगी, इन्सान अल्लाह का पैदा किया हुआ है, इसके हार्डवेयर में भले ही कोई बदलाव किया जा सकता हो लेकिन इसके सॉफ़्टवेयर में बदलाव नामुमकिन है.
अल्लाह ने ख़ैर और शर के रास्ते सुझा दिये हैं अब इन्सान की मर्ज़ी है जो रास्ता चाहे इख़्तियार करे.
कलीमुल हफ़ीज़, नई दिल्ली