कभी दलदली जमीन को सूखी धारा में बदलने के लिए अंग्रेजों के जमाने में भारत लाया गया यूकेलिप्टस का पेड़ आज पर्यावरण के लिए मुसीबतों का सबब बनता जा रहा है। सहसवान तहसील क्षेत्र में साल दर साल यूकेलिप्टस का रकबा बढ़ रहा है। पेड़ो की बढ़ती संख्या से भूगर्भ के गिरते जलस्तर को थामने की कोशिशों पर भी खतरा मंडराने लगा है। किसान अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर मे अपने खेतों में यूकेलिप्टस लगा रहे है
यूकेलिप्टस पाँच से छ: में तैयार हो जाता है किसानों द्वारा फिर कटान कराकर बेच देते है लेकिन आर्थिक रूप से काफी उपयोगी होने के कारण किसान अब आम, अमरूद, जामुन, शीशम के बजाय यूकेलिप्टस की बागवानी को अपना रहे हैं। हर प्रकार के मौसम में बढ़वार की क्षमता, सूखे की दशाओं को झेल लेने की शक्ति, कम लागत व आसानी से उपलब्ध हो जाने के कारण किसान तेजी से यूकेलिटस की बागवानी को अपनाते जा रहे हैं। निर्माण कार्यों की इमारती लकड़ी के अलावा फर्नीचर, प्लाईवुड, कागज, औषिधि तेल, ईंधन के रूप में यूकेलिप्टस की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है। बाजार में अच्छी मांग होने के कारण लोग दूसरे फलदार पेंड के बागों के बजाय यूकेलिप्टस की खेती को तवज्जो दे रहे हैं।
नगर व देहात क्षेत्र में यूकेलिप्टस की खरीददारी करने के लिए सैकड़ो फड़ भी संचालित है
तहसील क्षेत्र मे लगभग एक दशक से सैकड़ों हेक्टेयर खेतों में यूकेलिप्टस के बाग लगाए जा चुके हैं। पेंड़ सीधा ऊपर जाने से लोग खेतों की मेड़ों घरों के बगीचों आदि में इसे लगा देते हैं बता दे कभी कभी किसानों में लड़ाई की स्तिथि भी पैदा हो जाती है कारण अगर किसी किसान के अपने खेत की मेड पर यूकेलिप्टस बृक्ष लगे होने के कारण बराबर में मेड मिलान किसान के खेत में फसल होने पर यूकेलिप्टस के छाव से फसल को नुकसान होता है जिससे फसल की बढ़वार नही हो पाती है लगभग एक दशक से यूकेलिप्टस के पेड़ों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है इसके चलते किसान को चंद पैसों का मुनाफा तो जरूर हो रहा है लेकिन पर्यावरण को होने वाली भारी नुकसान की अनदेखी की जा रही है।
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