तीरथ सिंह रावत जी,

मुख्यमंत्री, उत्तराखंड

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अमरीका ने दो सौ साल तक भारत को ग़ुलाम बनाए रखा। क्या आपने ऐसा कहा है? ट्विटर पर लोग आपके बयान के वीडियो को ट्वीट कर हंस रहे हैं। मैं खुलेआम कहता हूँ कि आपने सही कहा है। मैं आपके साथ हूं। हंसने वाले हंसते रहें, लेकिन मैं आपके साथ हूं।

जब प्रधानमंत्री मोदी तक्षशिला को बिहार में बता सकते हैं तो आपने ग़ुलामी के लिए ब्रिटेन की जगह अमरीका बोल कर कोई ग़लती नहीं की है।  इतिहास को लेकर जो मन में आए बोलिए। जब व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी की पाठशाला में नेहरू को मुसलमान बताया जा सकता है और लोग यकीन कर सकते हैं तो फिर लोगों को इस पर भी यकीन करना ही होगा कि अमरीका ने भारत को ग़ुलाम बनाया था और ब्रिटेन के लोग यहाँ मूँगफली खाने आते थे।

प्रधानमंत्री मोदी कर्नाटक के बीदर में रैली कर रहे थे। अपने भाषण में कह दिया कि जब भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त, सावरकर जेल में थे तो कांग्रेस का कोई नेता नहीं मिलने गया। तुरंत लोग बताने लगे कि नेहरू ने जेल में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त से मुलाकात की थी।

मैं जानता हूँ कि ग़लत इतिहास बोलने वाले प्रधानमंत्री भी आपका साथ नहीं देंगे लेकिन मैं आपके साथ हूँ।

मैं आपके इस बयान से काफी ख़ुश हूं। एक उम्मीद जगी है। पिछले हफ्ते जब अशोका यूनिवर्सिटी से कथित रूप से प्लॉट के चक्कर में प्रोफेसर प्रताप भानु मेहता को इस्तीफ़ा देना पड़ा और उनके समर्थन में प्रोफेसर अरविंद सुब्रमण्यिन को इस्तीफ़ा देना पड़ा तो मैं अपनी ख़ुशी व्यक्त नहीं कर सका। इसलिए दुख व्यक्त करना पड़ा।

भारत में जब मुफ़्त की व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी घर-घर में चल रही है तो लाखों की फीस देकर वास्तविक यूनिवर्सिटी की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं तो मानता हूं कि यूनिवर्सिटी में किसी प्रोफेसर को नहीं रखा जाना चाहिए, उनकी जगह प्रोपर्टी डीलर रखे जाएं ताकि प्लॉट की समस्या आते ही वे बेहतर तरीके से हैंडल कर सकें। यूनिवर्सिटी के काम आ सकें।

प्रोफ़ेसर प्रताप भानु मेहता के इस्तीफे से प्रोफेसरों की अयोग्यता उजागर हो गई कि वे यूनिवर्सिटी को संकट से नहीं बचा सकते हैं।प्लॉट तक नहीं दिला सकते हैं अगर उनकी अशोका यूनिवर्सिटी में प्रोपर्टी डीलर प्रोफ़ेसर बनाए गए होते तो पड़ोस की सरकारी यूनिवर्सिटी की ज़मीन भी अशोका यूनिवर्सिटी का पार्ट हो गई होती। किसी को पता भी नहीं चलता।

मैं मानता हूं कि दिल्ली और आस-पास के इलाके के विकास में प्रोपर्टी डीलरों का योगदान रहा है। तेज़ धूप में धूल खाते हुए खुली और ख़ाली ज़मीन पर खड़े हो कर उन लोगों ने मेहनत की है। प्रोपर्टी डीलर के कारण ही शहर का कोई कोना ख़ाली नहीं है।

शहर के भीतर मकानों का कोई कोना ख़ाली नहीं है। न्यूनतम जगह का अधिकतम इस्तमाल करने की अर्थशास्त्रीय समझ केवल प्रोपर्टी डीलर के पास हो सकती है न कि अर्थशास्त्री अरविंद सुब्रमण्यिन के पास होगी। मैं तो चाहता हूं कि अगर प्रोपर्टी डीलरों को यूनिवर्सिटी खोलने की इजाज़त दी गई होती तो अशोका की जगह खोसला का घोंसला यूनिवर्सिटी की परचम लहरा रहा होता। लेकिन इस देश में मेरी सुनता कौन है।

अब देखिए AICTE ने इंजीनियर बनने के लिए गणित और भौतिकी की पात्रता समाप्त कर दी है। इतनी मेहनत की ज़रूरत ही नहीं थी। एक देश एक नियम की तर्ज पर एक नियम बना दिया जाता। आप कोई भी विषय पढ़ें, डिग्री मिलेगी केवल साइंस की।

इस तरह से भारत दुनिया का पहला देश बन जाता जहां हर किसी के पास साइंस की डिग्री होती और हर नागरिक वैज्ञानिक हो जाता। जब तक हम ज्ञान को डिग्री प्राप्ति की अनिवार्यता से मुक्त नहीं करेंगे भारत के लोग ज्ञान का रस नहीं ले सकेंगे। हमें पूरब की तरफ़ मुड़ना ही होगा।

यह बात इंडियन मेडिकल एसोसिशन के डॉक्टर नहीं समझ सकेंगे जो आर्युवेद के वैध को सर्जरी की इजाज़त दिए जाने के फैसले का विरोध कर रहे हैं। जिस देश में झोला छाप डाक्टर पूरा का पूरा अस्पताल चला रहे हैं उस देश में कोई ज़रूरी नहीं कि शल्य चिकित्सा वही करे जो MBBS की डिग्री के चक्कर पांच साल तक एक ही कालेज में दिन रात गुज़ारता हो।

इतना टाइम क्यों बर्बाद करना है। इन संदर्भों में आपका बयान साहिसक है। आपने उस सत्य को कहा है जिसकी आज ज़रूरत है। वो सत्य यही है कि हमें इतिहास के सत्य की ज़रूरत ही नहीं है। वर्ना फिर कालेज बनाओ. प्रोफ़ेसर को सैलरी दो। देश का टाइम बर्बाद करो।

आप समाजशास्त्र में परास्नातक हैं। इसलिए आपने फटी जीन्स का समाजशास्त्रीय विश्लेषण प्रस्तुत किया है। कम से कम पता तो चला कि समाजशास्त्र की पढ़ाई के नाम पर इस देश में क्यों फालतू के सैंकड़ों विभाग खुले हुए हैं।

इन ख़र्चों को बचा कर सबको व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी में खपाने की ज़रूरत है। एक बार आप व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी को आधार नंबर से लिंक कर दीजिए, लोग टूट पड़ेंगे। आज कल जहां भी आधार से लिंक करने की योजना आती है, लोगों का विश्वास उस योजना पर बढ़ जाता है। भारत के लोगों को प्रक्रिया और पहचान की आदत है। तथ्य और अनुसंधान की नहीं।

रामदेव ने जब जीन्स लांच की तो उनसे पूछा गया कि आपकी दुकान की जीन्स भी फटी हुई है। तो उन्होंने कहा कि हां फटी हुई है लेकिन हमने इसके फटे होने के पीछे भारतीयता का ध्यान रखा है। वामपंथी इतिहासकारों ने यह बात हमसे छिपाई थी।

हम नहीं जानते थे कि जीन्स कितनी फटी होगी, इसकी कल्पना भी भारतीय संस्कृति में मौजूद है। पता होता तो कम से उनती फटी हुई जीन्स ज़रूर पहनता। अब चूक गया।

मैं चाहता हूं कि आप इतिहास पर लगातार बोलें। ताकि लोगों को पता चलें कि पढ़ाई लिखाई को खत्म करने का प्रोजेक्ट कितना पूरा हुआ है। व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी के दौर में ऐसे ही बयानों से पता चलता है कि हम कहां तक आ चुके हैं और कहां तक जाना बाक़ी है।

इसलिए मैं आपके साथ हूं। ट्विटर पर हंसने वालों को पता नहीं कि आपके इस बयान पर युवा पीढ़ी झूम जाएगी।आप पत्रकारिता में डिप्लोमा हैं। आप ज़रूरत है कि आप पत्रकारिता पर भी बोलें ताकि पता चले कि कितना सत्यानाश हो चुका है और कितना करना बाकी है।

ज़रूरी है कि लोग आपका साथ दें। कोई न दे तो मुझे याद कर लीजिएगा। हंसने वालों को जेल भेजने का भी एक विकल्प है। इतिहास वही नहीं होता जो तथ्यों में होता है। इतिहास ग़लत भी होता है। यह हम पर निर्भर है कि सही इतिहास को ग़लत कर दें और ग़लत इतिहास को सही कर दें।

ऐसा करना भी इतिहास बनाना होता है।इतिहास हवा में भी होता है। कपोल-कल्पनाओं में भी होता है। आख़िर हम कब तक हज़ार साल पुराने मिथकों के जाल में फंसें रहेंगे, आज ज़रूरी है कि हम नए नए मिथक का निर्माण करें ताकि अगले हज़ार साल तक लोग उसमें फंसे रहें।

आपका साथ देने वाला एकमात्र नागरिक

रवीश कुमार

दुनिया का पहला ज़ीरो टीआरपी एंकर

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