मोदी सरकार झूठ बड़े आत्मविश्वास के साथ बोलती है: कुँवर दानिश अली
नई दिल्ली। लोकसभा में अमरोहा से बसपा सांसद कुँवर दानिश अली ने चार्टर्ड एकाउंटेट, लागत एवं संकर्म लेखापाल और कम्पनी सचिव संशोधन विधेयक, 2021 के विरोध में सरकार के झूठ को उजागर करते हुए कहा कि यह सरकार झूठ बड़े आत्मविश्वास के साथ बोलती है। मुझे इस बात का आश्चर्य है कि जो सरकारी कंपनियाँ थीं, जो PSUs थीं, यह सरकार उनका निजीकरण करने में लगी है और दूसरी तरफ, जितनी स्वायत संस्थाएं हैं, जितनी स्वायत्त निकाय हैं, जो पेशेवरों के स्वायत्त निकाय हैं, उनका सरकारीकरण करने में लगी है। इस सरकार का यह जो विरोधाभास है, यह इतना भयंकर है यह देश को कहाँ ले जाएगा?
वर्ष 1949 की यह संस्था है, जो चार्टेड एकाउन्टेन्ट्स की है, उसका सरकारीकरण करने में लगे हैं। हर चीज में आपको सरकारीकरण करना है। मुझे ताज्जुब होता है, प्रधानमंत्री ने यही कहा था कि इस देश में जो बाबू है, हमें लाल फीताशाही को खत्म करना है। सब कुछ बाबू तय करते हैं, लेकिन आप यहाँ क्या कर रहे हैं? जो स्वायत्त निकाय है, जो खुद की स्वायत्त निकाय है, वह इतनी अच्छी संगठन है, उसको खत्म करके आप वहाँ बाबुओं को बैठा रहे हैं। वह बात अलग है कि परसों इनका भी उतर प्रदेश में मंत्रिमंडल बना। वहाँ भी बाबुओं को बैठाया गया।
कुछ सांसदों के विरोध करने पर कुँवर दानिश अली ने कहा कि अभी वैसा वक्त भी आने वाला है कि आप राजनीतिक लोग भी मंत्री नहीं बनेंगे। बाबू ही आएंगे और बाबू ही मंत्री बनेंगे।
इस सरकार ने क्या किया? यह हर संगठन पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपना कब्जा करना चाहती है। इतनी अच्छी संस्था चल रही है, आज चार्टर्ड अकाउंटेंट्स को आप अपने अधीन कर रहे हैं, कल आप कहेंगे कि बार काउंसिल को भी अपने अधीन करना है, परसों किसी और को कहेंगे। बाकी तो कोई संगठन आपने छोड़ी नहीं है। जितनी स्वतंत्र निकाय थीं, सबको ध्वस्त करने का काम आपने कर दिया है। बड़ी मुश्किल से, बड़ी मेहनत से इन पेशेवरों ने, इस संस्था को खड़ा किया है, उसको आप नियंत्रण करने की कोशिश मत कीजिए।
सांसद ने कहा कि साढ़े तीन लाख चार्टर्ड अकाउंटेंट्स हैं। सरकार जो परीक्षा आयोजित कराती है, उसके कितने पेपर्स लीक होते हैं, लेकिन चार्टर्ड अकाउंटेंट्स के परीक्षा का आज तक का आप नहीं कह सकते कि कहीं कोई पेपर लीक हुआ हो या कहीं कोई कंप्रोमाइज हुआ हो। आप ऐसी स्वायत्त निकाय पर नियंत्रित करना चाहते हैं।
आगे उन्होंने कहा कि अभी सत्ता पक्ष के एक वरिष्ठ सांसद अनुराग बोल रहे थे कि आप खुद तय करेंगे, खुद ही खेलेंगे, खुद ही खिलाड़ी होंगे और खुद ही अंपायर होंगे। सरकार में क्या होता है? क्या सरकारी बाबू, अगर किसी के ख़िलाफ़ शिकायत आती है तो क्या सचिव अपने सह सचिव या निर्देशक के खिलाफ जाँच नहीं करता है, क्या वहां पर उसको सजा नहीं मिलती है? यह कहां का तर्क है कि वह स्वायत्त निकाय है तो वह अपनी अनुशासनात्मक समिति नहीं बना सकती है। सरकार के अंदर तो जो वरिष्ठ अधिकारी होता है, वही कनिष्ठ अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करता है। यह विरोधाभास है।
यह हितों के टकराव की बात करते हैं। क्या सरकार में यह हितों के टकराव नहीं है। चिकित्सा आयोग बना। जब उसका विधेयक आया था, तब हमने भी समर्थन किया था कि शायद कुछ अच्छा होगा। हम देख रहे हैं कि सब कुछ सरकार के नियंत्रण में आ गया है। मैं कहना चाहता हूं कि सरकार ऐसी स्वायत्त निकायों पर प्रहार न करे, उनकी स्वायत्ता के साथ समझौता न करे। जो स्वायत्त निकाय है, उनकी स्वायत्ता होनी चाहिए। मैं इन्हीं शब्दों के साथ इस विधेयक का विरोध करता हूँ।