“अगर तुमने अपनी माँ का दूध पिया है तो … ” अक्सर पुरानी फिल्मों में यह संवाद मिल जाया करता था जिसका अभिप्राय यह होता था कि यदि तुम में जोश , हिम्मत और साहस हो तो मुक़ाबले के लिए आओ। भारतीय परम्पराओं में एक बहुत प्रचलित संसाधन था ग़रीबों का कि माँ अपनी पूरी ममता दूध की शक्ल में हमारी धमनिओं में उतार देती थी , हालाँकि ग़ुरबत और मुफलिसी की वजह से कई बार वो बच्चो को पूर्णतया संतुष्ट नहीं कर पाती क्यूंकि सब कुछ अभावग्रस्त था और परंपरा यह भी कि पुरुष सदस्य जब पूरा खाना ठूंस लेंगे उसके बाद ही उसका नंबर खाने का आता , सो जो बच जाए वो खा लिया, नहीं बचा तो भूख को ही अपना भाग्य मान के सो रहती। क्यूंकि अगली सुबह फिर मजूरी ही करना था। विकास की बयार और आर्थिक स्थिति बदलने के साथ ही वैश्वीकरण ने कई पश्चिमी मान्यताओं को जैसे जैसे ग्रहण करना आरम्भ किया वैसे वैसे मिथकों और सुंदरता को ग्रहण न लग जाए तो माओं ने अपने लाडलों ,लाड़लियों को स्तनपान करना तज दिया और बाज़ारी दूध जिसका अता – पता न था ,न शुद्धता का और न ही उसके घटकों का वही पिलाना आरम्भ करते ही ममता की घनी छांव भी थोड़ा घटती गयी। हालाँकि उन डब्बों पर तब भी लिखा हुआ था “ब्रेस्ट मिल्क इज़ बेस्ट मिल्क “लेकिन सुनता कौन। हम सब बाज़ार होते गए , जैसे आज हमारे बच्चों को इज़्ज़ा ,पिज़्ज़ा , अगर बर्गर , ओमो मोमो पसंद हैं वो बहुत सारे भारतीय स्वादों से न केवल वंचित हैं शायद नाम भी नहीं जानते। इसका भी फायदा बाजार ने उठाया कि आज बाटी चोखा जो आम जन का खाना था अब इतना महंगा बिकता है कि उसे खाने वाले आम लोग नहीं रहे बल्कि स्टेटस अपडेट करने वाला युवा समाज है।
बहरहाल १९९२ में विश्व स्वास्थ्य संगठन , यूनिसेफ , और WABA (World Alliance breastfeeding action ) के सहयोग और सौजन्य से विश्व में विश्व स्तनपान सप्ताह १ से ७ अगस्त तक मनाया जाता है २०१० तक आते आते वर्तमान तक इसको मानाने वाले राष्ट्रों की संख्या १२० है। जिसमे माँ को और गर्भधारण की हुयी महिलाओं को इस छूट रही परम्परा के प्रति जागरूक करने के अलावा प्रोत्साहित किया जाता है। क्यूंकि वैज्ञानिक शोध और चिकत्सा विज्ञान के अनुसार नवजात शिशु को जब पहला दूध पिलाया जाए तो माँ के दूध के साथ कोलोस्ट्रम निकलता है जिसे विज्ञान “प्रथम वैक्सीन’ कहता है ,जो शिशु को न केवल बहुत ही महत्वपूर्ण न्यूट्रिशन देता है बल्कि उसमे बहुत सी घातक रोगो के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करता है और कई रोगो से बचाता है। विकसित देशो में स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए पूरे सप्ताह कई संगठन , सरकार , संस्थान भी WHO और unicef की इस पहल में भागीदारी करते हैं और माँ को और महिलाओं को पहले ६ महीनो तक मात्र माँ का दूध ही सेवन कराने की प्रेरणा देते हैं। विश्व स्तनपान दिवस की शुभकामना के साथ आशा है कि आने वाले वर्षो में फिर से कोई ऐसी फिल्म देखने को मिले जिसमे नायक या खलनायक कहता हुआ सुनाई दे कि “अगर तुमने अपनी माँ का दूध पिया है तो … “
डॉ खुर्शीद अहमद अंसारी, जामिया हमदर्द, नई दिल्ली
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