मोदी सरकार द्वारा लॉकडाउन घोषित करने के कुछ दिनों में ही लाखों श्रमिक दिल्ली से अपने घरों की ओर पैदल ही निकल पड़े क्योंकि उन्हें पता था कि उनकी मामूली जमा-पूँजी से 15 दिन भी टिकना मुमकिन नहीं था.
मोदी सरकार ने न तो श्रमिकों के लिए राशन का इंतज़ाम किया और न ही उनकी घर वापसी के लिए यातायात की कोई व्यवस्था की, कई मज़दूर परिवारों ने इस दौर में अपने सदस्य गंवाए हैं, जहाँ यह सब कोरोना के खिलाफ़ जंग में मज़दूरों के लिए उपहार की पहली किश्त थी.
वहीं दूसरी किश्त में बड़े पैमाने पर छँटनी का सामना करना पड़ा, जिसे मोदी सरकार आंख पर पट्टी बांधे देखती रही, लॉक डाउन के वक्त के वेतन अदायगी संबंधी गृह मंत्रालय के निर्देश को लागू करने में सरकार पूरी तरह से विफल रही है, कई लोगों को दिल्ली इसलिए छोड़ना पड़ा क्योंकि उनके पास खाने-पीने, मकान किराए, बच्चों की फीस के लिए पैसे तक नहीं बचे थे.
जहाँ केंद्रीय ट्रैड यूनियनें व वामपंथी दल गुज़ारा भत्ता, 6 महीने तक मुफ़्त राशन व रोज़गार गारण्टी की माँग कर रही थीं, वहीं मोदी सरकार ने ठीक इसके उलट काम किया.
जहाँ देश का मज़दूर वर्ग सबसे मुश्किल वक़्त से गुजर रहा था वहीं सरकार इस मौके का इस्तेमाल उनके न्यूनतम अधिकारों और सामाजिक सुरक्षा को समाप्त करने के लिए करना चाह रही थी.
संसद के मानसून सत्र में मोदी सरकार पहले के 29 श्रम कानूनों के बदले 4 लेबर कोड ( जिनमें से 1 पहले लही कानून बन चुका था) और 3 कृषि बिलों को आक्रामक तरीके से लेकर आई.
सरल शब्दों तो में नए कानूनों में कार्यक्षेत्र की सुरक्षा की जाँच के दायरे के लिए कर्मचारियों की संख्या की सीमा को 100 से 300 करने और ठेकेदारों के लिए लाइसेंस की सीमा को 20 से बढ़ाकर 50 करने से 90 फीसदी से अधिक औद्योगिक श्रमिक कानून के दायरे से ही बाहर हो जायेंगे.
दिल्ली में जहाँ बहुतायत छोटी और मझौली फैक्ट्रियां हैं और लगातार दुर्घटनाओं में मज़दूरों की जानें जाती रही हैं, वहाँ नए कानून में बिजली के साथ चलने वाली फैक्ट्रियों के लिए सीमा को 40 करने से अधिकांश फैक्ट्रियां कानून से ही बाहर हो जाएंगी, इस तरह दिल्ली के 50 लाख से अधिक मज़दूरों की जान और सुरक्षा के लिए अब कानून में कोई जगह नहीं होगी.
पीएफ और ईएसआई जो मज़दूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा के सबसे बड़े सहारे हैं उन्हें कमजोर करते हुए वेतन में उनके अंशदान को कम किया गया है और साथ ही इसे संस्थानों के लिए बाध्यकारी नहीं रखा गया है, स्थाई स्वरूप के काम भी अब फिक्स्ड टर्म के होंगे और मालिकों को कभी भी छँटनी करने की आज़ादी होगी, सभी श्रम कानून मज़दूरों के लंबे संघर्ष और बलिदानों से हासिल हुए थे.
मोदी सरकार ‘व्यापार को आसान बनाने’ के नाम पर मालिकों को अपार मुनाफ़ा कमाने के मौके देने और मज़दूरों को ग़ुलामी की तरफ धकेलने के लिए नए कानून लेकर आई है.
दिल्ली सरकार ने भी पिछली 2 छमाही में महँगाई भत्ते की घोषणा नहीं की है, जबकि आज महँगाई ने मेहनतकश जनता के लिए जी पाना दूभर कर दिया है.
10 केंद्रीय ट्रैड युनियनों द्वारा आम हड़ताल की घोषणा के बाद सांगठनिक बैठकों में ज़िला व यूनियनों के स्तर पर ठोस कार्यक्रम की योजना बनाई गई, मुख्य ज़ोर अधिकतम युनियनों व उनके जरिए आम मज़दूरों तक पहुंचने पर दिया गया, सीआईटीयू के स्वतंत्र व संयुक्त प्रचार अभियान की रूपरेखा बनाई गई.
अक्टूबर महीने में ज़िलों व युनियनों की बैठक हुई, जिसके बाद मज़दूरों की जनरल बॉडी की बैठकें भी हुई, इसके जरिए हम 46 यूनियनों व उनके जरिए उनकी 24000 सदस्यता तक पहुंच सके, इसके बाद 27 अक्टूबर से औद्योगिक इलाकों व उसके ईर्द गिर्द मौजूद बस्तियों में मज़दूरों के बीच व्यापक स्तर पर पर्चा वितरण के जरिए अभियान तेज़ किया गया.
पहले चरण में श्रम कानूनों में किए गए बदलावों व उनके मज़दूरों पर पड़ने वाले असर को समझाते हुए दिल्ली, ग़ाज़ियाबाद व गौतमबुद्ध नगर के मज़दूरों के बीच 1.15 लाख पर्चे बाँटे गए, यह कुल 31 औद्योगिक इलाकों में हुआ- दिल्ली के 15, ग़ाज़ियाबाद के 8 और नोएडा के 8, पर्चा वितरण व नुक्कड़ मीटिंगों के जरिए दिवाली से पहले हम 4 लाख मज़दूरों तक पहुंच सके.
हड़ताल के प्रचार की धार को तेज करने के लिए कामरेड तपन सेन द्वारा लेबर कोड कानूनों पर लिखी गई किताब की 300 प्रतियाँ नेतृत्वकारी साथियों के बीच बाँटी गई, रेहड़ी-पटरी, निर्माण श्रमिकों, एयरपोर्ट कार्गो इत्यादि के लिए अलग सेक्टरल पर्चे छापे गए, कुल मिलाकर सीआईटीयू व इसकी सम्बद्ध यूनियनों ने कुल 2.45 लाख पर्चे बाँटे व 4000 पोस्टर चिपकाए.
दिवाली के बाद दूसरे चरण के प्रचार में ज़िला व स्थानीय स्तर के नेताओं द्वारा ई रिक्शा व ऑटो के माध्यम से नुक्कड़ मीटिंगें व अन्य छोटी मीटिंगें की जा रही हैं, प्रचार के अंतिम चरण के जरिए हम दिल्ली, ग़ाज़ियाबाद व नोएडा के 10 लाख मज़दूरों तक पहुंच हैं.
एटक भवन, नई दिल्ली में 21 अक्टूबर 2020 को राज्य स्तरीय संयुक्त कन्वेंशन आयोजित हुआ, INTUC, AITUC, HMS, CITU, AIUTUC, UTUC, LPF, SEWA, AICCTU, MEC व ICTU की मौजूदगी वाले इस कन्वेंशन ने अधिक से अधिक मज़दूर परिवारों तक हड़ताल का संदेश लेकर जाने का फैसला किया.
विभिन्न ट्रैड युनियनों को जिम्मेदारियां देते हुए ज़िला-वार योजना बनाई गई, तथा इसके बाद से दिल्ली में संयुक्त प्रचार अभियान जारी है, दक्षिणी, पूर्वी व पश्चिमी दिल्ली में विभिन्न उद्योगों-सेक्टरों की मौजूदगी के साथ संयुक्त कन्वेंशन आयोजित किए गए.
हड़ताल के समर्थन में पूर्वी दिल्ली में कार्यकर्ताओं द्वारा साईकल-बाइक रैली भी निकाली गई, 75,000 संयुक्त पर्चे व 4000 पोस्टरों के माध्यम दिल्ली, ग़ाज़ियाबाद व नोएडा के व्यापक मज़दूर वर्ग आबादी तक हड़ताल का संदेश पहुंचाया गया, इसके बाद नुक्कड़ मीटिंग व माइक प्रचार की भी योजना लागू की.
छात्रों, युवाओं, शिक्षकों, कलाकारों आदि के 14 जनसंगठन सोशल मीडिया प्रचार व हड़ताल के लिए फण्ड जुटाने के अलावा 19 से 25 नवंबर के बीच मज़दूर व मध्यम वर्गीय इलाकों में 7 दिनों का 20,000 पर्चा वितरण कर अभियान चलाया गयाय.
6 नवंबर को दिल्ली के ट्रैड युनियनों के संयुक्त मंच ने दिल्ली सरकार को हड़ताल नोटिस देने के लिए दिल्ली सचिवालय तक मार्च किया, दिल्ली सरकार को 27 सूत्रीय मांगपत्र भी दिया गया.
सीटू से सम्बद्ध राजधानी भवन निर्माण कामगार यूनियन ने 28 अक्टूबर को निर्माण क्षेत्र की युनियनों की संयुक्त बैठक बुलाई तथा हड़ताल की दिशा में निर्माण श्रमिकों-जो इस दौरान सबसे पीड़ित तबका है-के मुद्दे उठाने की योजना बनाई, रेहड़ी-पटरी खोमचा हॉकर्स यूनियन फिलहाल विभिन्न इलाकों में 4 दिनों का ऑटो प्रचार चलाया गया.
एयरपोर्ट एम्प्लाइज यूनियन, जो कि इस अवधि में गैरकानूनी छँटनी के खिलाफ लड़ाई में अगली कतार में रहा, उसने भी हड़ताल के दिन प्रदर्शन करने का फैसला लिया है, CEL, BEL, CONCOR, पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इडनिया, CWC, दिल्ली जल बोर्ड व एमसीडी में नेतृत्व स्तर की बैठकें हुई हैं, उन सभी ने हड़ताल की मांगों का समर्थन किया व अपने-अपने सेक्टरों में हड़ताल को लागू करने का फैसला किया.
सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, जहाँ के श्रमिकों के बहादुराना संघर्ष के बावजूद सरकार उसके विनिवेश की तरफ आगे बढ़ रही है, वहाँ की यूनियन के नए चुने गए नेतृत्व ने प्रबंधन को हड़ताल नोटिस दिया है, सेंट्रल वेयरहाउसिंग कॉर्पोरेशन में हड़ताल के समर्थन में गेट मीटिंग आयोजित की गई.
दिल्ली जल बोर्ड में सीआईटीयू, इंटक व एटक की युनियनों ने हड़ताल के दिन जल बोर्ड मुख्यालय पर विशाल प्रदर्शन करने का फैसला किया है, हर जगह हड़ताल की मांगों को सेक्टर स्तरीय श्रमिकों की मांगों के साथ जोड़ा गया.
ग़ाज़ियाबाद में ट्रैड यूनियनों और सम्बद्ध युनियनों के प्रतिनिधि डीएम से 31 अक्टूबर को मिले और उन्हें हड़ताल नोटिस थमाया, 8 नवंबर को ज़िले में संयुक्त कन्वेंशन हुई, 11 नवंबर 2020 को ग़ाज़ियाबाद में सीआईटीयू के सम्बद्ध युनियनों और मिल कमेटियों के पदाधिकारियों की बैठक हुई जिसमें सीआईटीयू महासचिव कामरेड तपन सेन ने बात रखी.
ज़िला स्तरीय हड़ताल कमेटी पर्चा वितरण, पोस्टर, गेट मीटिंग व प्रचार के अन्य पहलुओं को संभाल रही है, इंड्यूर प्राइवेट लिमिटेड, बिटीआर वादको ऑटोमोटिव आदि फैक्ट्रियों पर आयोजित गेट मीटिंगों में भारी संख्या में मज़दूरों ने हिस्सा लिया.
गौतम बुद्ध नगर में 1 नवंबर 2020 को संयुक्त कन्वेंशन आयोजित हुआ, जिसमें पूरे जिले में सम्पूर्ण ‘चक्का जाम’ करने का फैसला लिया गया है, 3 नवंबर 2020 को श्रमिकों के संयुक्त प्रदर्शन के माध्यम से उप श्रमायुक्त को हड़ताल का नोटिस दिया गया.
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली मोदी सरकार की मज़दूर विरोधी तथा शोषण बढ़ाने वाली कारपोरेट-परस्त नीतियों के खिलाफ़ मज़दूरों में रोष और गुस्सा साफ तौर पर देखा जा सकता है, इससे स्पष्ट है कि हड़ताल के दिन मज़दूरों का गुस्सा सड़कों पर भी उतरेगा क्योंकि आज मज़दूर वर्ग अपनी जीविका बचाने की लड़ाई लड़ रहा है.
(Sd- ANURAG SAXENA, Gen. Secretary, Citu Delhi State Committee)