प्रेम कुमार 

पीएम मोदी बोले पर, क्या वाकई बोले? नहीं, वो नहीं बोले, पर, क्या वाकई नहीं बोले? नहीं, नहीं, वो बोले तो, मगर, जो बोले उसके लिए ‘राष्ट्र के नाम संबोधन’! कृषि विभाग के मंत्री बोल सकते थे, गृहमंत्री बोल सकते थे, क्या बात कह दी! पहले कभी ऐसा हुआ है कि इस बार ऐसा हो जाता, चलिए बढ़ते हैं, पीएम जो बात बिल्कुल नहीं बोले, उसके लिए तो ‘राष्ट्र के नाम संबोधन’ ही जरूरी था अगर वो बोला जाता, आप कहेंगे हम बात इतनी घुमा-फिराकर क्यों कर कह रहे हैं, चलिए बात दो शब्दों में कह देते हैं ‘चना’ और ‘चायना’, 

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फर्क भी तो समझें ‘चना’ और ‘चायना’ में, दोनों में किसको जरूरी बताएं कहना मुश्किल है, ‘चना’ पर बोलना जरूरी था क्योंकि बिहार विधानसभा चुनाव में अर्चना जो करनी है, त्योहार के मौसम की भी पीएम को याद आ गयी, आगे सावन का सोमवार है, स्वतंत्रता दिवस, गणेश चतुर्थी से लेकर दिवाली और छठ तक है, है तो ईद भी, और गुरु गोविंद सिंह का शहीदी दिवस भी, मगर, इनका जिक्र उनके चुनावी एजेंडे के हिसाब से जरूरी नहीं था, छठ का जिक्र आया, जी हां, बिहार का वही त्योहार, जिसकी चुनाव में सबको आती है याद, दिल्ली हो या मुम्बई या फिर औरंगाबाद, 

मगर, चायना भी तो जरूरी था, चायना जो अपनी आक्रामकता से दिखा रहा है हमें आईना, चायना जो एलओसी में हमारी ओर घुस बैठा है, मगर, प्रधानमंत्री इधर-उधर की बात कर रहे हैं, राहुल गांधी बारम्बार याद दिला रहे हैं, राष्ट्र के नाम संबोधन से पहले भी, संबोधन के बाद भी, जवाब चायना को देना है मगर जवाब कांग्रेस और राहुल गांधी को दिलाने पर तुले हैं वे लोग, जो प्रधानमंत्री की चायना पर चुप्पी का कर रहे हैं बचाव, कायम है सीमा पर तनाव, लेकिन सत्ताधारी बीजेपी को नहीं आ रहा है ताव, शहीदों के बलिदान पर ऐसी चुप्पी! कहां कह रहे थे कि शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा, क्या वह 59 एप्स पर बैन में सिमट जाएगा?

लौटते हैं विषय पर, चना देश का पेट भरता है, चायना दूसरे देश का पेट खाली करता है, अपना भरता है, चना भारत के लिए कृषि है तो भारतवासियों के लिए भूख मिटाने का आधार, चायना भारत के लिए पड़ोसी है, तो भारत उसके लिए बाजार, चना है तो हर रोग को मना है, चना मतलब स्टेमिना है, चना है तो सतुआ है, सतुआ है तो लिट्टी है, लिट्टी-चोखा है, चना है तो बेसन है, बेसन है तो पकौड़े हैं, जलेबी हैं, लड्डू हैं, आप क्या समझ रहे हैं हम आप को क्या समझ रहे बुद्धू हैं? 

दर्शकों के मन का भाव देखिए, “सोचा था चायना पर बोलोगे, बोल रहे हो चना पर, हमसे ही पूछ रहे हैं बुद्धू हो? हम काहे को बुद्धू हैं, सोचो खुद के बारे में कि कितना बुद्धू हो,” पीएम बोले यह देश दो लोगों का कर्जदार है- एक है किसान, दूसरा टैक्सपेयर, 9 करोड़ किसानों के खाते में 18 हजार करोड़ की रकम जमा करायी, 20 करोड़ गरीब परिवार के जन धन खातों में 31 करोड़ रुपये डलवाए, अब प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना का विस्तार नवंबर तक हो चुका है, पिछले तीन महीनों को भी जोड़ लें तो इस पर खर्च होने वाली रकम हो गयी है डेढ़ लाख करोड़,  

किसान है तो देश का अभिमान है, खेती देश की बेटी है, बेटी घर चलाती है, खेती देश चलाती है, एग्रीकल्चर इस देश को सबसे ज्यादा रोजगार देता है, पेट भरता है, जीडीपी में भूमिका निभाता है, चायना क्या देता है-  ट्रेड डेफिसिट? यानी व्यापार घाटा? सीमा पर टेंशन देता है चायना, बताओ क्या गलत हुआ कि चना पर बोला, चायना पर नहीं बोला, पॉजिटिव बात बोलना जरूरी है कि निगेटिव? निगेटिव बात मत करो, ये लड़ने-लड़ाने की बात, जरूरी है चना, चायना नहीं,  चना की चिंता ना करें तो किसान आत्महत्या करने लगते हैं, लॉकडाउन टूटने लगता है, प्रवासी मजदूर घर लौटने लग जाते हैं, सड़क पर पैदल चलने लग जाते हैं, भूख से मरने लग जाते हैं, इसलिए चना की चिंता जरूरी है, 

तो क्या चायना की चिंता छोड़ देने से कुछ नहीं होता? हिन्दुस्तान की सीमा क्या सिकुड़ने नहीं लग जाती है? हिन्दुस्तान को चायना के चक्कर में क्षय रोग होने का खतरा पैदा नहीं हो जाता?चायना की चिंता छोड़ देते हैं हम, शहादत की चिंता तो करें, 20 जवानों की शहादत का बदला कौन लेगा? मोदी जी, आपने कहा था कि शहीदों का बलिदान व्यर्थ जाने नहीं दिया जाएगा, मगर, ऐसा कैसे होगा अगर चायना की चिंता ही छोड़ दें,

माना कि चना के बिना लॉकाडाउन नहीं कर सकते थे, अनलॉक भी चना के बिना मुमकिन नहीं है, मगर, चायना की चिंता के बिना तो सीमा ही छोटी होने लग गयी है, चना के लिए भी चायना पर बोलना जरूरी हो गया है मोदी जी, चना फांककर हम जी लेंगे, चना फांककर हम लड़ लेंगे, ये चने की ही ताकत है कि चायना को तमाचे जड़ देंगे, चना खाकर नाकों चने चबवा देने का हमारा इतिहास है, वो चाहे शिवाजी हों या फिर महाराणा प्रताप हों, चायना को छोड़कर चना की बात कर रहे हैं मोदीजी, भाई माजरा क्या है! चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से ली गयी शिक्षा की गुरुदक्षिणा है यह या कि कुछ और, कभी आत्मनिर्भरता, कभी चना, कभी चीनी एप्स पर बैन, क्या यही है शहादत का बदला? बोल दीजिए मोदी जी, मुख खोल दीजिए मोदी जी

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