नई दिल्ली: आगरा में कोरोना मरीज़ और अस्पताल के बाद अब सीएम, राज्य सरकार और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी के दामन से चिपकने लगा है, प्रियंका गाँधी ने एक ओर जहां इस मामले को मुद्दा बना लिया है, वहीं अब योगी सरकार के निर्देश पर जिलाधिकारी आगरा ने उन्हें उनके द्वारा किए गए ट्वीट का 24 घंटे में खंडन करने के लिए कहा है, आगरा में यूं तो यह रोग 3 मार्च से शुरू हुआ था लेकिन शुरू में इसकी रफ़्तार कम थी, मार्च के अंत में ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने आगरा में पूरे कंट्रोल का दावा करते हुए इसे सफलता का ‘आगरा मॉडल’ बता दिया था, लेकिन अप्रैल में 14 लोगों के दम तोड़ने की घटना के बाद इस ‘आगरा मॉडल’ की बड़ी भद्द पिटी, मई में जब यह आंकड़ा बढ़कर 28 पर पहुंचा तो जैसे कोहराम मच गया, जून में अभी सप्ताह भर बाकी है जबकि राज्य सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार मरने वालों की कुल तादाद 84 पर पहुँच गयी है, लेकिन हाल ही में 48 घंटे में 28 मरीजों की मौत की ख़बर को लेकर एक बड़ा विवाद शुरू हो गया है,
सीएम द्वारा नामित पैनल ने अपनी प्रारंभिक जांच के बाद स्वास्थ्य विभाग को आदेश दिया कि आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज में भर्ती होने के 48 घंटे के भीतर जिन 28 मरीज़ों ने दम तोड़ा, उनकी विस्तृत जांच की जाए, इस 2 सदस्यीय पैनल में प्रदेश के ऊर्जा सचिव एम. देवराज और किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी लखनऊ के प्रो. राहुल जनक सिन्हा थे, पैनल ने विस्तृत जांच में कोरोना के कारणों के अलावा मरीजों की प्रवेश तिथियों, स्वास्थ्यगत स्थितियों, उनको दी जाने वाली चिकित्सा तथा मृतकों के परिजनों से फीड बैक लेने का भी निर्देश दिया है, कांग्रेस महासचिव प्रियंका ने इस मुद्दे पर 22 जून को ट्वीट किया, “आगरा में कोरोना से मृत्यु दर डराने वाली है, यहां हर 15 में एक कोरोना पीड़ित की जान चली गई, यहां के 79 मरीजों में से 28 की मौत अस्पताल में भर्ती होने के 48 घंटे में होना बड़ी लापरवाही है, मुख्यमंत्री जी, कृपया 48 घंटे में जांच रिपोर्ट जनता के सामने रखें,”
प्रियंका के इस ट्वीट की प्रदेश में व्यापक प्रतिक्रिया हुई है, मुख्यमंत्री और राज्य सरकार ने प्रत्यक्ष रूप से तो कोई जवाब दिया नहीं, लेकिन ज़िलाधिकारी (आगरा) प्रभु एन. सिंह ने इस पर नोटिस जारी करके कांग्रेस महासचिव से 24 घंटे के भीतर इस ट्वीट का खंडन करने का आदेश दिया है, जिलाधिकारी ने लिखा है, “ट्विटर पर उपरोक्त पोस्ट को देखने पर प्रथम दृष्टयता भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई है जिससे जनमानस में यह सन्देश जाता है कि 48 घंटे में 28 कोरोना पॉज़िटिव मरीज़ों की मृत्यु हुई है, यह कोरोना वॉरियर्स/कोरोना फ़ाइटर्स एवं जनसामान्य पर प्रतिकूल प्रभाव एवं भय का वातावरण पैदा करता है,”
23 जून को प्रियंका ने फिर से इस मामले में ट्वीट कर कहा, “आगरा में कोरोना से मृत्यु दर दिल्ली व मुंबई से भी अधिक है, यहाँ कोरोना से मरीजों की मृत्यदर 6.8% है, यहाँ कोरोना से जान गंवाने वाले 79 मरीजों में से कुल 35% यानी 28 लोगों की मौत अस्पताल में भर्ती होने के 48 घंटे के अंदर हुई है,’ प्रियंका ने कहा है कि ‘आगरा मॉडल’ का झूठ फैलाकर इन विषम परिस्थितियों में धकेलने के जिम्मेदार कौन हैं? उन्होंने कहा है कि योगी 48 घंटे के भीतर जनता को इसका स्पष्टीकरण दें और कोरोना मरीजों की स्थिति और संख्या में की जा रही हेराफेरी पर जवाबदेही तय करें,
सोमवार 23 जून को ‘हिंदुस्तान’ ने एक रिपोर्ट छापी है, इसमें जिला प्रशासन के आंकड़ों को आधार मानकर ही बताया गया है कि आगरा में होने वाली कोविड मरीज़ों की मृत्यु दर का प्रतिशत 6.88 है, ‘हिंदुस्तान’ ने आगरा के आंकड़ों की दिल्ली-मुंबई के आंकड़ों के साथ विस्तार से तुलना करते हुए कहा है कि यह प्रतिशत राष्ट्रीय राजधानी और मुम्बई से भी ज़्यादा है, दिल्ली में मृत्यु दर का प्रतिशत फिलहाल 4.11 है और मुंबई में यह 4. 0% है, इस मामले में उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी कूद पड़े हैं, मौर्य ने ‘इंडिया टुडे’ के साथ बातचीत में कहा कि अगर प्रियंका आगरा के डीएम के नोटिस का जवाब नहीं देती हैं तो उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी, मौर्य ने कहा है कि प्रियंका ने कोरोना से होने वाली मौतों के झूठे आंकड़ों को ट्वीट किया है और वह ओछी राजनीति कर रही हैं,
पूरे प्रदेश में संख्या का अजीबो-ग़रीब गोरखधंधा चल रहा है और मज़ेदार बात यह है कि कोई एजेंसी जवाबदेही को तैयार नहीं है, यदि सिर्फ 23 जून का सन्दर्भ लें तो राज्य के स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी तालिका सूची में आगरा में कुल मृत्यु दर 84 अंकित है जबकि जिला प्रशासन के आंकड़ों में इसे 81 दर्शाया गया है, यही नहीं, पिछले दिनों तक प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग द्वारा संवाददाताओं को मेल या वॉट्सएप की जाने वाली विज्ञप्ति में बाक़ायदा यूपी सरकार का ‘लोगो’ छपा रहता था लेकिन अब वह सादे कागज़ का एक ऐसा बेपेंदा ‘इश्तेहार’ होता है जिसे सरकार का कोई भी प्रतिनिधि अपनी सुविधानुसार कभी भी ‘ओन या डिसओन’ (स्वीकार या अस्वीकार) कर सकता है! बहरहाल! देखना है कि विपक्ष और सत्ता के शीर्ष पर बैठे इन राजनेताओं का यह संघर्ष रोग और उससे जूझते लोगों को सुख-चैन दे पाता है अन्यथा वे यूं ही लाचार और बेदम पड़े रहेंगे
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