शमशाद रज़ा अंसारी
कोरोना वायरस ने तीन महीने के भीतर लोगों की ज़िन्दगी में उथल पुथल मचा दी है। देश में पहले से ही बेरोज़गारी बड़ी समस्या बनी हुई थी। कोरोना वायरस से बचाव के लिए लगाये गये लॉक डाउन ने रोज़गार वालों का भी रोज़गार छीन लिया। लॉक डाउन के कारण देश में लाखों लोग बेरोजगार हो गए, कई मल्टीनेशनल कंपनियों ने लोगों को नौकरी से निकाल दिया तो कई ने कर्मचारियों का वेतन तक नहीं दिया है। स्थिति यह है कि उनके पास अपना पेट भरने तक के पैसे नहीं बचे। लोग अपनी आजीविका चलाने के लिए तमाम प्रयास कर रहे हैं।
कोई सब्जी बेचने पर मजबूर है तो कोई मजदूरी करने लगा। सर्वाधिक परेशानी उन लोगों के सामने है जो सूट बूट पहन कर नौकरी करते थे। ऐसे लोग शर्म के कारण हर तरह का काम नही कर पाते। लेकिन दिल्ली के ऐसे ही एक व्यक्ति की दर्द भरी कहानी सामने आई है जो लॉक डाउन से पहले सूट बूट पहनने वाला इंग्लिश टीचर था और अब ज़िंदा रहने के लिए गलियों में सब्ज़ी का ठेला लेकर घूम रहा है। हालात के मारे इस टीचर का नाम वजीर सिंह है। वह लॉक डाउन से पहले दिल्ली के सर्वोदय बाल विद्यालय में अंग्रेजी पढ़ाते थे। उन्हें पिछले तीन महीनों से सैलरी नहीं मिली है। उनके पास इतने भी पैसे नहीं बचे थे कि वह एक माह और घर बैठ कर खर्चा चला सकें। ऐसे में मजबूर होकर उनको सब्जी का ठेला लगाना पड़ा।
लॉक डाउन के तीन महीनों ने ऐसे हालात पैदा कर दिए कि शिक्षक को अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए गलियों में घूम-घूमकर सब्जी तक बेचना पड़ रहा है। इस बारे में अध्यापक वजीर सिंह का कहना है कि मैंने कभी जिंदगी में नहीं सोचा था कि ऐसी दिन भी आ जाएंगे कि मुझको अपने परिवार का पेट पालने के लिए ठेले पर सब्जी बेचकर परिवार का गुजारा करना पड़ेगा। लेकिन लॉक डाउन ने ऐसी हालत कर दी है कि मैं सब्ज़ी बेचने को विवश हूँ।
वजीर सिंह से ये पूछने पर कि वह सब्ज़ी का ठेला लेकर घूमने में कैसा महसूस करते हैं तो वह कहते हैं कि थोड़ा तो मुझको भी अजीब लगता है, लेकिन क्या करूं ज़िंदा रहना है तो सब करना पड़ेगा। वजीर सिंह जब सब्जी का ठेला लेकर गलियों में निकलते हैं तो उनके जानने वाले यह देख कर तड़प उठते हैं कि कैसे एक शिक्षक सब्जी बेचने के लिए मजबूर हो गया है।
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