नई दिल्लीः उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगे के आरोपों में दस महीने से जेल में बंद लोगों की ज़मानत का सिलसिला जारी है। कल, मुस्तफाबाद के शाहरुख, मोहम्मद ताहिर को कड़कड़डूमा कोर्ट में जस्टिस विनोद यादव ने ज़मानत पर रिहा होने का आदेश दिया। न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इनके खिलाफ़ कहीं कोई भी सुबूत नहीं है और न ही यह किसी भी सीसीटीवी फुटेज में नज़र आ रहे हैं। स्पष्ट हो कि दिल्ली कोर्ट ने इसी सप्ताह बेकसूर लोगों को ज़मानत पर रिहा करने का आदेश दिया है, इनमें खालिद मुस्तफा, अशरफ अली, मोहम्मद सलमान सहित बड़ी संख्या में निर्दोष लोग हैं। ये सारे लोग जमीयत उलमा ए हिंद की कानूनी कोशिशों के कारण ज़मानत पर रिहा हुए हैं।
इसके अलावा जमीयत उलमा-ए-हिंद के वकीलों में एडवोकेट मोहम्मद नूरउल्लाह, एडवोकेट शमीम अख्तर और एडवोकेट सलीम मलिक की पैरवी से विभिन्न अदालतों से अभी तक 161 मुकदमों में ज़मानत मिली है। इनमें वह लोग शामिल हैं जिनके बारे में अदालतों ने साफ़ शब्दों में कहा है कि इनके ख़िलाफ़ पुलिस कोई भी ध्यान देने योग्य सबूत जमा करने में सफल नहीं रही है। इन लोगों को खानापूर्ति के लिए दंगे के दो महीने बाद उनके घरों से जबरन उठाया गया और जेलों में ठूंस दिया गया।
दिल्ली दंगे से संबंधित जमीयत उलमा ए हिंद के कानूनी मामलों के कर्ता-धर्ता एडवोकेट नियाज़ अहमद फारुकी ने बताया कि पिछले महीने कर्दमपुरी के रहने वाले 28 वर्षीय शाहरुख को ज़मानत मिली। वह रिक्शा चलाकर अपने घर का खर्च उठाता है। दिल्ली दंगे के बाद तीन अप्रैल को उसे कर्दमपुरी पुलिया से पुलिस ने उठा लिया था। और उस पर कत्ल सहित विभिन्न मुकदमें लगा दिए गए थे। वह 10 महीने तक बंद रहा। इसके परिवार वाले जमीयत उलमा के दफ्तर आते थे उनके पास यहां आने तक का किराया नहीं होता था। शाहरुख को 31 दिसंबर 2020 को दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस सुरेश कीट ने अपने फैसले में ज़मानत देते हुए कहा कि वह न तो सीसीटीवी फुटेज में नजर आ रहा है और न ही उसकी कॉल डिटेल रिकॉर्ड घटना में शामिल होने को बतला रहा है। उसे सिर्फ एक व्यक्ति की गवाही पर पकड़ लिया गया।
एडवोकेट नियाज़ फारूकी ने बताया कि हमारे पास जितने भी मुकदमे हैं उनमें अधिकतर लोग न सिर्फ निर्दोष हैं बल्कि अत्याधिक गरीब और हालात के मारे हुए हैं। आज उनके घरों में चिराग जलाने जैसे हालात नहीं है। उनके घर का अकेला कमाने वाला दिल्ली पुलिस की गलत सोच के आधार पर महीनों से बंद है। जिसने और अधिक हालात को बदतर बना दिया है। जमीयत उलमा ए हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी का यह प्रण है कि जमानत स्थाई मंजिल नहीं है बल्कि उनको मुकदमों के चंगुल से आज़ाद कराने तक संघर्ष जारी रहेगा।