नई दिल्ली। केरल हाईकोर्ट के जज जस्टिस वी. चिताम्बरेश ने विवादित बयान दिया है। उन्होंने ब्राह्मणों की तारीफ़ करते हुए कहा कि ब्राह्मण दो बार जन्म लेता है, ब्राह्मण को हमेशा शीर्ष पर होना चाहिए यानी चीजें उसके नियंत्रण में होनी चाहिए। इतना ही नहीं उन्होंने जाति आधारित आरक्षण के ख़िलाफ़ आंदोलन करने की सलाह भी दे दी। हालाँकि इस दौरान जस्टिस वी. चिताम्बरेश कहते रहे कि वह संवैधानिक पद पर हैं इसलिए ऐसी राय नहीं रख सकते हैं और वह ब्राह्मणों की राय रख रहे हैं।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस चिताम्बरेश ने कहा कि ‘बेशक, आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 10% आरक्षण है। ब्राह्मण रसोइया का एक बेटा, भले ही वह नॉन-क्रीमीलेयर में आता हो, उसे कोई आरक्षण नहीं मिलेगा। जबकि, अन्य पिछड़े समुदाय से संबंध रखने वाले लकड़ी के व्यापारी के बेटे को नॉन-क्रीमीलेयर में रहने पर आरक्षण मिलेगा। उन्होंने कहा कि मैं बिल्कुल भी कोई राय व्यक्त नहीं कर रहा हूँ, यह आपको समझाने के लिए और आपकी राय को सामने रखने के लिए है।
सोशल मीडिया पर फूटा लोगों का गुस्सा
केरल हाईकोर्ट के जज के इस विवादित बयान पर सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है। सोशल मीडिया पर कुछ लोग उनका मज़ाक उड़ा रहे हैं तो कुछ लोगों ने उनके बयान की निंदा की है। वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष ने जस्टिस वी. चिताम्बरेश के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए सवाल किया है कि क्या जज को ऐसी बात कहनी चाहिये? दलित/पिछड़े तबक़ा कैसे केरल हाई कोर्ट के इन जज से इंसाफ़ की उम्मीद करेगा?
राजस्थान हाईकोर्ट के मेरिटधारी जज का मानना था कि – 'मोर के आंसू से मोरनी को बच्चा पैदा होता है!'
— Sanjay Yadav (@sanjuydv) July 24, 2019
जज भी एक सामाजिक प्राणी है। उसकी भी जाति है और शायद उसकी भी जातीय मान्यताएँ होंगीं। प्रश्न है अगर ऐसे जज के पास आरक्षण या स्वजातीय व्यक्ति का केस जाएगा तो क्या वह मेरिट पर बहस करेगा? https://t.co/b5LgD7TMgq
वहीं समाजवादी विचार संजय यादव ने टिप्पणी करते हुए कहा कि राजस्थान हाईकोर्ट के मेरिटधारी जज का मानना था कि – ‘मोर के आंसू से मोरनी को बच्चा पैदा होता है!’ जज भी एक सामाजिक प्राणी है। उसकी भी जाति है और शायद उसकी भी जातीय मान्यताएँ होंगीं। प्रश्न है अगर ऐसे जज के पास आरक्षण या स्वजातीय व्यक्ति का केस जाएगा तो क्या वह मेरिट पर बहस करेगा?