सुरैय्या का गाया हुआ मिर्ज़ा ग़ालिब 1954 में यह खूबसूरत नग़मा और सैकड़ो ऐसे संगीत जो आपकी आत्मा में सराएत कर जाएंगे।पुरानी पीढ़ी को आज भी कुछ नग़मे अपनी लज़्ज़त अपनी हस्सासियत की डोर से बांध लेते हैं ,उनमें से अक्सर को आज की पीढ़ी भी उसी ज़ौक़ ओ शौक़ से सुनती है। इसी सिलसिले की एक कड़ी तलत महमूद साहब की मख़मली आवाज़ में 1954 में आई देवानंद की फ़िल्म “टैक्सी ड्राइवर” का नग़मा” ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो” या “मिरी याद में तुम न आंसू बहाना न जी को जलाना हमे भूल जाना”।इस बेहद पुरसोज़ नग़मे को हम सब ने ज़रूर सुना होगा।आज बात करेंगे इस नग़मे का जौनपुर से रिश्ता क्या है।?
फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने अपने छोटे भाई जौना ख़ान के नाम पर उत्तर भारत मे एक शहर बसाया ,जिसे जौनपुर के नाम से शोहरत हासिल हुई ।बाद में अलग अलग समय काल के खंड में ये सल्तनत विस्तार लेते हुए नेपाल , भूटान बिहार आदि तक इब्राहिम शाह शरकी(मलिक सुल्तान सरवर, जो कि नसीरुद्दीन मुहम्मद शाह के वज़ीर थे) के नाम से फैल गया और इसे शरकी वंश के राज्य और शासन में शहर ए इल्म, शहर शीराज़ ए हिन्द का लक़ब मिला।इब्राहिम शाह ने अपनी वज़ारत के दौर में इस सल्तनत का विस्तार पूर्व तक फैला दिया था जिसकी वजह से उसे सुल्तान उस शरक़(रूलर ऑफ ईस्ट) की उपाधि दी गई। ज़फर ख़ान का 85 वर्ष पूर्व बसाया गया नगर ज़फ़राबाद(विद्याभूमि) अब नए शहर, जौनपुर के कारण उपेक्षित होता गया।14 से 15 वी सदी के मध्य तक यह शरकी सल्तनत अपनी साहित्यिक, कला, संगीत, धार्मिक अध्यन और सांस्कृतिक पहचान लिए हुए इतना विख्यात था कि शेर शाह सूरी ने यहां से धार्मिक अध्यन,दर्शन शास्त्र का अध्ययन किया और सब जानते हैं शेर शाह सुरी के निर्माण कार्य आज भी 500 साल से बाद भी सजीव हैं!
उसी क्रम में हुसैन शाह शरकी सल्तनत जौनपुर का आख़िरी शासक वो बेहद निपुड संगीतज्ञ था जिसे गंधर्व के नाम से भी ख्याति मिली हुई थी उसे साहित्य, कला आदि से बेहद लगाव था। अपनी संगीत की समझ और विद्वता के कारण आज भी संगीत की दुनिया मे किसी ज़िले के नाम पर दिया गया “राग जौनपुरी” जिसे भोर में गाया जाता है।संगीत के विद्वानों का बेहद पसंदीदा राग है और विशिष्ट है।
“असावरी गंधर्व राग “का कहते हैं ,परिष्कृत रूप है कुछ इतिहासकारों का मत है कि यह गुजरात स्थित जवनपुर नाम के स्थान से सम्बद्ध होने के कारण राग जौनपुरी कहा जाता है लेकिन संगीत के जानने वाले और अधिकांश इतिहास वेत्ताओं का विश्वास है कि यह राग हुसैन शाह शरकी का शुद्ध रूप से अविष्कृत राग है जो 14 वी और 15 वी सदी में उत्तर भारत के शरकी साम्राज्य का ,कला साहित्य प्रेमी शासक था। लोधियों के विध्वंस का गवाह जौनपुर बाद में मुग़लो के अधीन हुआ जिसकी निशानियां आज शहर के इधर उधर दयनीय हालत में देखी जा सकती हैं।
राग आधारित लेखकों और इतिहास कारो का मनना है कि अकबर के नवरत्न तानसेन ने भी इस राग में संशोधन करते हुए इसे दरबार ए आलिया ,अकबर के दरबार मे गाते थे। विश्व पटल पर भारतीय शास्त्रीय संगीत के दिग्गज बड़े गुलाम अली साहब, जयपुर घराना के विख्यात पंडित जसराज जी ,किशोरी अमोनकर जी, उस्ताद अली अकबर ख़ान जी आदि , सभी ने जौनपुरी राग पर आधारित अमर रचनाएं अपने विशष्ट शैली में गायी हैं।हेमंत कुमार, मन्नाडे, मुहम्मद रफ़ी, तलत महमूद, सुरैय्या , लता मंगेशकर आदि सभी गायक और गायिकाओं ने राग जौनपुरी से संगीत की दुनिया मे अलख ज़रूर जगाया है। यूँ नही है कि इस राग का प्रचलन आधुनिक फ़िल्म संगीत में क्षीण हुआ हो बल्कि राग जौनपुरी आज भी उसी गौरव के साथ संगीत की दुनिया का अमरत्व दाता है।महान संगीतकार ए आर रहमान द्वारा संगीतबद्ध “रामलीला” फ़िल्म का एक नग़मा भी राग जौनपुरी पर आधारित है। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की यह अद्वितीय और अनमोल धरोहर रहती दुनिया तक दरिया ए गोमती की लहरों की तरह स्वर लहरी बनकर जौनपुर -शिराज़ ए हिन्द की रगों में बहती रहेगी।
(संगीत की विद्या में मैं महामूर्ख हूँ, मेरे लेख का आधार कुछ शोध पत्रों, लेखों और विकिपीडिया पर उपलब्ध सूचनाओं पर आधारित है, साभार)
लेखक- डॉ ख़ुर्शीद अहमद अंसारी, एसोसिएट प्रोफ़ेसर, कल्चरल व साहित्यिक संयोजक, जामिया हमदर्द, नई दिल्ली।
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