नई दिल्ली : भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) ने कहा है कि कृषि सुधार विधेयक 2020 के विरोध में  देशभर के किसान 25 सितम्बर को सभी जिला मुख्यालयों में धरना प्रदर्शन और चक्का जाम करेंगे। भाकियू राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने सोमवार को यहां कहा कि केन्द्र सरकार बहुमत के नशे में चूर है। देशभर के किसान 25 सितम्बर को कृषि सुधार विधेयक 2020 के विरोध में धरना प्रदर्शन और चक्का जाम करेंग, उन्होंने कहा कि भारतीय किसान यूनियन के आह्वान पर सोमवार को पूरे उत्तर प्रदेश में संसद में पारित किये गये तीन कृषि बिलों के विरोध में जिला मुख्यालयों पर धरना/प्रदर्शन का ज्ञापन दिया।

 चौधरी टिकैट ने मुजफ्फरनगर जिलाधिकारी कार्यालय पर धरने को सम्बोधित करते  कहा कि सरकार बहुमत के नशे में चूर है। देश की संसद के इतिहास में पहली दुर्भाग्यपूर्ण घटना है कि अन्नदाता से जुड़े तीन कृषि विधेयकों को पारित करते समय न तो कोई चर्चा की और न ही इस पर किसी सांसद को सवाल करने का सवाल करने का अधिकार दिया गया। यह भारत के लोकतन्त्र के अध्याय में काला दिन है।

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उन्हाेंने कहा कि देश के सांसदों को सवाल पूछने का अधिकार नहीं है तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र  मोदी देश के लिए महामारी के समय नई संसद बनाकर जनता की कमाई का 900 करोड रूपया क्यों बर्बाद कर रहे हैं। आज देश की सरकार पीछे के रास्ते से किसानों के समर्थन मूल्य का अधिकार छीनना चाहती है। जिससे देश का किसान बर्बाद हो जायेगा। मण्डी के बाहर खरीद पर कोई शुल्क न होने से देश की मण्डी व्यवस्था समाप्त हो जायेगी। सरकार धीरे-धीरे फसल खरीदी से हाथ खींच लेगी। किसान को बाजार के हवाले छोड़कर देश की खेती को मजबूत नहीं किया जा सकता। इसके परिणाम पूर्व में भी विश्व व्यापार संगठन के रूप में मिले हैं।

चौधरी टिकैत ने कहा कि भारतीय किसान यूनियन इस हक की लडाई को मजबूती के साथ लडेगी। सरकार यदि हठधर्मिता पर अड़िग है तो किसान भी पीछे हटने वाला नहीं है। 25 तारीख को पूरे देश का किसान इन बिलों के विरोध में सड़क पर उतरेगा। जब तक कोई समझौता नहीं होगा तब तक पूरे देश का किसान सड़कों पर रहेगा। इस सम्बन्ध में एक ज्ञापन जिलाधिकारी मुजफ्फरनगर को सौंपा गया। जिसमें हजारों किसान शामिल हुए।

उन्हाेंने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा लागू किये गये अध्यादेशों का देश के किसान विरोध कर रहे हैं। केन्द्र सरकार द्वारा इन अध्यादेशों को एक देश एक बाजार के रूप में कृषि सुधार की दशा में एक बड़ा कदम बता रही है। यह अध्यादेश अब कानून की शक्ल ले चुके हैं। वहीं भारतीय किसान यूनियन इन अध्यादेशों को कृषि क्षेत्र में कम्पनी राज के रूप में देख रही है। कुछ राज्य सरकारों द्वारा भी इसकों संघीय ढांचे का उल्लंघन मानते हुए इन्हें वापिस लिये जाने की मांग कर रही है। देश के अनेक हिस्सों में इसके विरोध में किसान आवाज उठा रहे हैं।

किसानों को इन कानून से कम्पनी की बन्धुआ बनाये जाने का खतरा सता रहा है। कृषि में कानून नियंत्रण मुक्त, विपणन, भंडारण, आयात-निर्यात, किसान हित में नहीं है। इसका खामियाजा देश के किसान विश्व व्यापार संगठन के रूप में भी भुगत रहे हैं। देश में 1943-44 में बंगाल के सूखे के समय ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अनाज भंडारण के कारण 40 लाख लोग भूख से मर गये थे। समर्थन मूल्य कानून बनाने जैसे कृषि सुधारों से किसान का बिचौलियों और कम्पनियों द्वारा किया जा रहा अति शोषण बन्द हो सकता है और इस कदम से किसानों के आय में वृद्धि होगी।

चौधरी टिकैत ने कहा कि भारतीय किसान यूनियन की मांग है कि कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन एवं कृषि सेवा पर करार अध्यादेश 2020,  कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अध्यादेश 2020, आवश्यक वस्तु अधिनियम संशोधन अध्यादेश 2020 कृषि और किसान विरोधी तीनों अध्यादेशों को तुरंत वापिस लिया जाये।

उन्होंने कहा कि भाकियू की मांग है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को सभी फसलों पर (फल और सब्जी) लागू करते हुए कानून बनाया जाये। समर्थन मूल्य से कम पर फसल खरीदी हो अपराध की श्रेणी में शामिल किया जाये। मण्डी के विकल्प को जिन्दा रखने के लिये आवश्यक कदम उठायें जाएं एवं फसल खरीद की गारंटी हेतु कानून बनाया जाए।      

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