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एनसीआर में पराली जलाने पर नजर रखने के लिए कमेटी बनाने पर सुप्रीम कोर्ट का स्वागत : सौरभ भारद्वाज

नई दिल्ली : आम आदमी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता और विधायक सौरभ भारद्वाज ने दिल्ली के आसपास के क्षेत्र में बढ़ते प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने पर नजर रखने के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता में कमेटी बनाने के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का आम आदमी पार्टी स्वागत करती है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने साबित किया कि सर्दियों में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण पराली है और केंद्र सरकार, हरियाणा, यूपी और पंजाब की सरकारें पराली जलाने से रोकने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के वकील ने कमेटी का विरोध किया। इससे यह साफ है कि केंद्र सरकार पराली का धुंआ ऐसे ही रहने देना चाहती है और सारा दोष दिल्ली सरकार पर मढ़ना चाहती है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गठित ईपीसीए भी पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने से रोकने में असफल रहा है। हरियाणा और यूपी में धड़ल्ले से जनरेटर चल रहे हैं, लेकिन ईपीसीए दोनों राज्यों पर कार्रवाई नहीं कर रहा है।

आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और विधायक सौरभ भारद्वाज ने दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को लेकर पार्टी मुख्यालय में प्रेस कांफ्रेंस की। सौरभ भारद्वाज ने शुक्रवार को कहा कि आज पूरे उत्तर भारत के लिए प्रदूषण सबसे गंभीर मुद्दा है। लोग आज हवा के अंदर धुआं महसूस कर सकते हैं। अब पराली का धुआं पंजाब, हरियाणा और यूपी से हवाओं के साथ दिल्ली में आना शूरू हो गया है। इस धुएं की चादर अब दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद और साहिबाबाद के ऊपर बननी शुरू हो गई है। आज सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताते हुए कहा कि पराली का धुआं अब दिल्ली-एनसीआर पर छाने वाला है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पराली का धुआं धीरे-धीरे एक प्रतिशत से बढ़कर 40 फीसदी तक बढ़ता रहा है।

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा, पंजाब और यूपी में पराली जलाने को लेकर उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मदन लोकुर की अध्यक्षता में एक टीम का गठन किया है। यह टीम पता लगाएगी कि क्या हरियाणा, पंजाब और यूपी में पराली जलाई जा रही है, और अगर जलाई जा रही है तो इसपर क्या कार्रवाई की जा सकती है? चिंता की बात यह है कि केंद्र सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से इस कमेटी को न बनाने की अपील की है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि आप प्रदूषण को लेकर ऑर्डर पास न करें, हम इस मामले को देख रहे हैं। यह बहुत अजीब बात है कि पिछले 6 साल से केंद्र सरकार कह रही है कि हम मामले को देख रहे हैं लेकिन अभी तक पराली पर कोई असर नहीं पड़ा है।

सौरभ भारद्वाज ने हरियाणा और यूपी में भाजपा की सरकार है, तो पंजाब में कांग्रेस अपनी सरकार चला रही है। इन दोनों पार्टियों की मिलीभगत के चलते पराली पर रोक नहीं लग रही है। पराली जलाने वाले किसानों को कोई मदद नहीं दी जा रही है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा रिटायर जज की अध्यक्षता में कमेटी बनाने की हम तारीफ करते हैं। हम दिल्लीवासियों को बधाई देते हैं और सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद अदा करते हैं। कल देश के पर्यावरण मंत्री ने गलत बयान देते हुए कहा था कि सिर्फ चार फीसदी प्रदूषण ही पराली जलाने से होता है। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि वो इस तरह के बयान क्यों दे रहे हैं।

आप नेता ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से चार बातें स्थापित होती हैं। उत्तर भारत में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण पराली जलाना है और सुप्रीम कोर्ट ने यह बात सत्यापित कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने देश के पर्यावरण मंत्री के बयान को खारिज कर दिया है। दूसरी बात, देश की केंद्र सरकार और हरियाणा, पंजाब और यूपी की सरकारें पराली को कम करने में कोई दिलचस्पी नहीं ले रही हैं। यह बात सुप्रीम कोर्ट को भी समझ आ गई है। तीसरी बात, प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित ईपीसीए भी पिछले पांच सालों में पराली के धुएं को कम करने में असमर्थ साबित हुई है। आखिरी बात, केंद्र सरकार के सबसे बड़े वकील सुप्रीम कोर्ट से कहते हैं कि आप कमेटी का गठन मत कीजिए, इसका मतलत केंद्र भी चाहती थी कि पराली का धुआं कम न हो और हम दिल्ली सरकार पर इसका आरोप लगाते रहें। इन नेताओं के रिश्तेदार और परिजन भी दिल्ली-एनसीआर में रह रहे हैं लेकिन फिर भी यह लोग प्रदूषण पर राजनीति कर रहे हैं।

हरियाणा-यूपी में धड़ल्ले से चल रहे हैं जनरेटर, रोक लगाने में नाकाम साबित हुईं दोनों राज्यों की सरकारें- सौरभ भारद्वाज

सौरभ भारद्वाज ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की संस्था ईपीसीए का काम दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की स्थिति खराब होने पर ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) लागू करना है। जब प्रदूषण बढ़ता है तो वो इसको लेकर सख्ती दिखाते हुए कार्रवाई की जाती है। 15 अक्टूबर से सख्ती लागू की गई है कि अब दिल्ली-एनसीआर के अंदर डीजल के जनरेटर नहीं चलेंगे। हर साल नोएडा, फरीदाबाद, गुड़गांव में डीजल के जनरेटर चलाए जाते हैं और पूरी दिल्ली धुएं में डूब जाती है। केंद्र सरकार ने तीन साल पहले दावा किया था कि हमने घर-घर बिजली पहुंचा दी है। फरीदाबाद में कई इलाके ऐसे हैं, जहां आज भी पक्के बिजली के बिल नहीं हैं, वहां तक आज भी बिजली नहीं पहुंच पाई है।

उन्होंने कहा कि हरियाणा और यूपी की सरकारों ने ईपीसीए को लिखा है कि हमें अन्य सालों की तरह ही इस बार भी जनरेटरों को चलाने की अनुमति दी जाए। हम अभी भी हजारों इलाकों तक बिजली नहीं पहुंचा पाए हैं। हमारा सवाल ईपीसीए से है कि आपको जो डंडा सुप्रीम कोर्ट ने दिया है क्या वो बस दिल्ली सरकार को दिखाने के लिए है? क्या उनको हरियाणा और यूपी नजर नहीं आता? क्या ईपीसीए अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रही है? क्या ईपीसीए इन दोनों राज्यों को जनरेटर चलाने की अनुमित इसलिए देती है क्योंकि वहां पर भाजपा की सरकारें हैं। कुछ दिनों में देखने को मिलेगा कि ईपीसीए दिल्ली सरकार पर आरोप लगाने की कोशिश करेगी। हम जानना चाहते हैं इस बार भी क्यों हरियाणा और यूपी को डीजल के जनरेटर चलाने की अनुमति दी जा रही है? क्यों इन दोनों राज्यों पर कार्रवाई नहीं की जा रही है।

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