रवीश कुमार

सर,

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मैं बिहार के बक्सर का रहने वाला हूं। बक्सर में केंद्रीय विद्यालय के बारे में मैं आपसे कुछ बात करना चाहता हूं।

बक्सर में केंद्रीय विद्यालय खुले 17 साल हो गए लेकिन आज भी अपनी जमीन के लिए यह विद्यालय तरस रहा है और विगत 17 सालों से किराए के कमरों में यह विद्यालय चल रहा है। किराए के कमरों का कहने का तात्पर्य यह है कि बिहार सरकार का एक उच्च विद्यालय है, एमपी हाई स्कूल बक्सर, उसी के 8-10 कमरों में किराए में विगत 17 सालों से बक्सर का केंद्रीय विद्यालय चल रहा है। अब आप समझ सकते होंगे कि केंद्रीय विद्यालय में पढ़ना छात्रों के लिए एक सपना होता है और यहां केंद्रीय विद्यालय होते हुए भी नहीं होने के बराबर है। जो 8-10 कमरे हैं विद्यालय के वह भी जर्जर हालत में है और आए दिन छत गिरने जैसी दुर्घटनाएं भी हुई है। छोटे-छोटे कमरों में जरूरत से ज्यादा छात्रों को ठूंस ठूंस कर बैठाया जाता है। 1 बेंच पर तीन-तीन, चार-चार बच्चों को बैठाया जाता है। अपना खुद का खेल का मैदान भी नहीं है क्योंकि विद्यालय ही किराए पर चल रहा है।

कुल मिलाकर कहे सर तो यहां केंद्रीय विद्यालय नाम का केंद्रीय विद्यालय है उसके अलावा केंद्रीय विद्यालय कहने लायक कोई सुविधा नहीं है।

ऐसा नहीं है कि छात्रों, अभिभावकों, शिक्षकों, स्थानीय नेताओं, कथित छात्र नेताओं ने अपने तरफ से प्रयास नहीं किया की विद्यालय को अपना खुद का जमीन मिल जाए जिस पर भवन बनाकर विद्यालय सुचारू रूप से चलाया जा सके, पर जबकि बिहार में डबल इंजन की सरकार चल रही है यानी भाजपा और जदयू गठबंधन की सरकार चल रही है और केंद्र में भी दोनों का पार्टियों का गठबंधन ही है फिर भी स्थानीय सांसद, विधायक, हमारे मुख्यमंत्री के उदासीनता का दंश हमारे बक्सर के छोटे-छोटे बालक, उनके अभिभावक, और ऐसे लोग जो कि केंद्रीय विद्यालय में अपने बच्चों को पढ़ाने का सपना देखते हैं, झेल रहे हैं।

सर आपको इतना कुछ लिखने और बताने के पीछे मकसद यही है कि आप हमारी आवाज बने और इस विषय पर एक बड़े मंच से या यूं कहें तो राष्ट्र स्तर पर बात होनी चाहिए। क्या यह उचित समय नहीं है कि जहां हजारों एकड़ जमीन किसी की मूर्ति बनाने, किसी के नाम से पार्क बनाने, मंदिर बनाने वगैरह-वगैरह में सरकारों द्वारा दे दी जाती है तो एक विद्यालय बनाने के लिए जमीन नहीं मिल सकती है।

आपसे यही उम्मीद नहीं, पूर्ण विश्वास है, भरोसा है बक्सर के लोगों का कि आप इस मुद्दे को जरूर उठाएंगे और हमारे आवाज को बल प्रदान करेंगे।

धन्यवाद

पत्र भेजने वाले ने नाम नहीं दिया है। इसकी ज़रूरत नहीं है। अगर सांसद ही चाह लें तो यह काम हो सकता है। बक्सर का केंद्रीय विद्यालय भी अच्छा हो सकता है। चुनाव के दौरान न सही, उसके बाद ही ये काम हो जाए।

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