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विश्व एड्स दिवस : किसी महामारी से कम नहीं है एड्स , एक साल में 6 लाख से अधिक लोगों ने तोड़ा दम

नई दिल्ली : मौजूदा दौर में कोरोना वायरस ने भले ही हाहाकार मचा रखा हो, पूरी दुनिया इस महामारी से लड़ने के लिए जूझ रही हो,लेकिन एड्स बीमारी भी किसी महामारी से कम नहीं है.

एक आंकड़े के मुताबिक साल 2019 में 17 लाख लोग एचआईवी से संक्रमित हुए, वही 6.9 लाख लोग इसके चलते काल के गाल में समा गए.

दरअसल एड्स सोसाइटी ऑफ इंडिया की तरफ से ऑनलाइन प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया, जिसमें देश विदेश के कई विशेषज्ञों ने कोरोना महामारी के इस दौर में एचआईवी संक्रमण की दर कम करने को लेकर चर्चा की.

इस दौरान विशेषज्ञों ने यह बात मानी कि सरकार ने 2030 तक एड्स उन्मूलन की बात कही है, उस पर काम भी हो रहा है, लेकिन संक्रमण दर में अभी कार्य के अनुरूप गिरावट नहीं आई है.

एड्स सोसाइटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. ईश्वर गिलाडा के मुताबिक साल 2020 तक नए एचआईवी संक्रमण की दर को कम करने का जो लक्ष्य रखा गया था, उससे अभी हम काफी दूर है, इतना ही नहीं एड्स से होने वाले मृत्यु दर को 5 लाख से कम नहीं किया जा सका हैं.

उन्होंने बताया कि साल 2019 में दुनिया मे 17 लाख लोग एचआईवी संक्रमित हुए, जिसमें से 6.9 लाख लोग एड्स के चलते जान गवा बैठे.

दुनिया में इतने लोग संक्रमित

बताया जा रहा है कि पूरी दुनिया में एचआईवी से करीब 3.8 करोड़ लोग संक्रमित हैं, भारत में यह अनुमानित संख्या करीब 21.4 लाख है, इनमें से 13 लाख से अधिक लोगों को जीवन रक्षक एंटी रेट्रोवायरल दवा मिल रही है.

बात करें आंकड़ों की तो यहां 1 साल के भीतर 88 हजार नए लोग एचआईवी से संक्रमित हो गए हैं,जिसमे से 69 हजार लोगों की एड्स से जान चली गई है.

इस अवसर पर भारत सरकार के राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्था के सह निदेशक डॉ नरेश गोयल ने बताया है कि इस बीमारी के खात्मे के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी भी जरूरी है.

एड्स सोसाइटी ऑफ इंडिया के महासचिव डॉ इन कुमारसामी ने कहा है कि भारत सरकार की भारत सरकार की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 और संयुक्त राष्ट्र के एक कार्यक्रम के अनुसार 2020 तक 90% एचआईवी पॉजिटिव रोगियों को एंटीरेट्रोवायरल दवा मिलनी जरूरी है, साथ ही उनका वायरल लोड नगण्य होना चाहिए.

आज है विश्व एड्स दिवस

1 दिसंबर को पूरी दुनिया में विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है,इसकी शुरुआत साल 1988 के बाद हुई, इस दिवस को मनाने के पीछे का उद्देश्य एचआईवी संक्रमण की दर को कम करना तथा इसके प्रति लोगों में जागरूकता लाना है.

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