बुलडोज़र न्याय न रोका गया तो देश निराज का शिकार हो जाएगा,सुप्रीम कोर्ट इस सम्बन्ध में सख्त दिशा निर्देश जारी करे
(उबैदउल्लाह नासिर)
विरोध लोकतंत्र की जीवनरेखा है। यदि विरोध न हो तो लोकतंत्र और राजतंत्र में कोई फर्क नहीं रह जाएगा। पुरानी कहावत है निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय। क्योंकि यह विरोधी और निंदक ही सही रास्ता दिखाने वाले होते हैं। भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में विरोध कोई नयी चीज़ नहीं है। एक से बढ़ कर एक विरोध हुए हैं। हिंसा, तोड़फोड़, आगज़नी, पथराव अदि सब हुआ है। लेकिन नहीं हुई थी तो विरोधी को दुश्मन समझने की आदत। न कभी विरोधी नेता को दुश्मन समझा गया, न उसकी हड्डी पसली तोड़ी गयी, न उसके घर पर बुलडोज़र चलाया गया, न उनसे कोई रिकवरी हुई, न उनके फोटो नाम और पते के साथ सार्वजनिक स्थलों पर लगाये गए, न विरोध प्रदर्शन कर रहे नवजवानों के भविष्य और कैरियर को बर्बाद किया गया। पढ़ा था कि लखनऊ यूनिवर्सिटी के क्षात्रों ने हंगामा किया, हिंसा, तोड़फोड़ की, बसों को आग भी लगायी। पुलिस मे रिपोर्ट हुई, वारंट जारी हुए। छात्र भागकर रफ़ी अहमद किदवई के सरकारी घर पर पहुंचे। रफ़ी साहब ने सब को वहीं रोक लिया। पुलिस कप्तान को बुला कर कहा कि तुम इन छात्रों को जेल भेजना चाहते हो, समझो यह जेल में हैं। जब तक तुम नहीं चाहोगे, इन्हें यहाँ से बाहर नहीं जाने दूंगा। मगर जेल भेजकर इनका करियर नहीं बर्बाद किया जा सकता, यह बच्चे ही देश का भविष्य हैं I साथी पंकज मिश्र ने अपनी फेस बुक पोस्ट में लिखा था कि गोरखपुर यूनिवर्सिटी के कुछ क्षत्रों ने अपने विरोध को धार देने के लिए प्रॉक्टर के घर पर देसी बम रख दिए। यह मामला तो बहुत संगीन था। पुलिस हरकत में आई। लड़कों की हवा खराब, भावना और जोश में भारी गलती कर बैठे। कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि प्रॉक्टर साहब से माफ़ी मांग ली जाए वरना मामला संगीन हो जायेगा। लड़के पहुंचे प्रॉक्टर साहब के घर। उन्होंने पूरी बात सुनी, फिर हँसकर कहने लगे, नेतागिरी तो ठीक है, लेकिन कुछ पढ़ा लिखा भी करो। यह कहकर हँसते हुए छात्रों को वापस भेज कर पुलिस में मामला समाप्त करा दिया। मैं खुद दो एक बार फंस चूका हूँ। दो चार हाथ भी खाए। डंडा इतनी जोर से उठाते कि लगता था, हड्डी टूट जायेगी, लेकिन पड़ता था बहुत हल्के से। फिर दुबारा करने पर पापा को बुला कर शिकायत करने की धमकी के साथ थाने से भगा दिए जाते थे। उस दिन सहारनपुर ठाणे की हवालात में बंद प्रदर्शनकारियों पर दो पुलिस वालों की अंधाधुंध लठबाज़ी देख कर कलेजा काँप गया। इस पर नहीं कि उन बंदियों पर क्या गुजरी होगी, क्योंकि उन पर जो गुज़र रहीं थी वह तो उनकी चीख पुकार से ज़ाहिर ही था। यह सोचकर कोई कैसे इतना निर्दयी हो सकता है कि इस तरह तो कोई जानवर को नहीं पीट सकता, जैसे यह दोनों उन मजबूर बंदियों को पीट रहे थे। लेकिन जब दिल में नफरत भरी हो, तब इंसान दरिंदा बन ही जाता है। उससे किसी इंसानियत, किसी रहमदिली की उम्मीद नहीं की जा सकती।
यह बुलडोज़र न्याय किसी भी सभ्य समाज, सभ्य देश, सभ्य शासन, सभ्य प्रशासन के मुंह पर तमांचा है दुनिया में इस्राइल के अलावा इसका प्रचलन भारत में बीजेपी शासित राज्यों के अतिरिक्त और कहीं नहीं हो रहा है। यह तभी से शरू हुआ है, जब से भारत सरकार ने देश की अंदरूनी सुरक्षा में इस्राइल से सलाह मशविरा करना शुरू किया है। आजादी से पहले ज़रूर जब राजा महाराजा ज़मींदार तालुकदार अपनी किसी रिआया से नाराज़ होते थे तो उसकी झोपड़ी फुंकवा देते थे (अधिकतर ऐसा भी होता था कि माफ़ी तलाफी के बाद उसकी दुबारा झोपड़ी बनवाने के लिए खुद ही लकड़ी बांस सरपत आदि देते भी थे) लेकिन एक लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में जहां आईपीसी और सीआरपीसी हो, जहाँ हर जुर्म की सज़ा मुक़र्रर कर दी गयी हो और इन में कहीं भी किसी भी जुर्म यहाँ तक की हत्या के जुर्म की सज़ा भी घर पर बुलडोज़र चलाना नहीं है। लेकिन उतर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ ने न केवल इसका उपयोग किया बल्कि चुनाव में इसका ऐसा प्रचार किया कि दोबारा सत्ता हासिल कर ली। उनकी देखा देखी मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्र ने खरगोन में राम नवमी के जुलूस पर पथराव के बाद यह खुद ही निश्चत करके कि पथराव मुसलमानों ने किया है, एलान कर दिया कि जिन्होंने पथराव किया है, उनके घरों को पत्थर में बदल दिया जायगा। उनके घरों दुकानो आदि पर बुलडोज़र चलवा दिया। देहली में सरकार तो आम आदमी पार्टी की है लेकिन देहली पुलिस केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है और देहली मुनिसिप्ल कारपोरेशन पर बीजेपी का क़ब्जा है। इसलिए देहली के गोविन्दपुरी इलाके में राम नवमी के जूलूस पर पथराव के बाद देहली बीजेपी के अध्यक्ष के पत्र पर तुरंत कार्यवाही करते हुए बुलडोज़र ने दर्जनों मकान और दुकाने मलबे में बदल दीं।यहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट के स्टे ऑर्डर की भी अवहेलना करके काम करते रहे। जिसको रुकवाने के लिए कम्युनिस्ट नेता वृंदा करात को बुलडोज़र के सामने खड़ा होना पड़ा था।
हज़रत मोहम्मद (स) पर बीजेपी की राष्ट्रिय प्रवक्ता नूपुर शर्मा की बेहूदा टिप्पणी पर भारतीय मुसलमानों को ही नहीं, पूरी दुनिया के मुसलमानों को गुस्सा आया। कई मुस्लिम देशों ने भारतीय राजदूतों को बुला कर अपनी नराजगी ज़ाहिर की। भारत में विगत जुमे को नमाज़ के बाद बिना किसी अपील और आह्वान के देशभर में प्रोटेस्ट हुए। कानपुर और प्रयागराज में पथराव हुआ और पथराव होते ही जैसे योगी सरकार को इसी मौके का इंतज़ार था, कुछ लोगों को चिह्नित करके उनके घरों पर बुलडोज़र चलाने का एलान कर दिया गया। कानपुर में शहर काजी के इस एलान के बाद कि अगर गैर कानूनी तौर से बुल्डोज़र चले तो हम सर से कफ़न बाँध कर निकलेंगे। मकानों को चिह्नित तो कर लिया गया, लेकिन उन पर अभी तक बुलडोज़र नहीं चला। प्रयागराज में कुछ ज्यादा ही जोश दिखाया गया और शहर के एक सम्मानित कारोबारी सोशल एक्टिविस्ट वेलफेयर पार्टी ऑफ़ इंडिया के नेता मोहम्मद जावेद उर्फ़ जावेद पम्प के दो मंजिला मकान को केवल 12 घंटे का नोटिस देकर बुलडोज़र से ध्वस्त कर दिया गया। जावेद के मकान को इस लिए भी निशाना बनाया गया, क्योंकि उनकी बेटी आफरीन एक तेज़ तर्रार सोशल एक्टिविस्ट और छात्र नेता है। जो हर समाजी मुद्दे पर खुल के सरकार के अत्याचार के विरोध में खड़ी होती रही है। ऐसी बेटी जिस पर कोई भी पिता नाज़ कर सकता है। यह नोटिस भी मोहम्मद जावेद के नाम जारी कर के उसे उनके गेट पर चस्पा कर दिया गया था। जबकि यह मकान उनकी पत्नी के नाम है। जिसकी ज़मीन उनके पिता और जावेद के ससुर ने अपनी बेटी को गिफ्ट की थी। ज़ाहिर है कि जब मकान पत्नी के नाम है तो पति को दिए गए नोटिस की कोई कानूनी हैसियत नहीं होती, लेकिन सत्ता का अहंकार और मुसलमानों के प्रति दिलों में भरी नफरत के चलते न कानून की चिंता, न सुप्रीम कोर्ट का डर और न ही कोई लोक लाज, लोक लाज तो शायद इस कारण नहीं है कि मुसलमानों पर होने वाले हर अत्याचार पर समाज का एक कुंठित और हीन भावना का शिकार वर्ग खुश होता है। फेसबुक पर एक महिला ने अपनी एक सहेली के पति की सोच को दर्शाते हुए लिखा कि उसके बेटे ने जब टीवी पर जावेद का मकान गिराते हुए देखा तो परेशान हो कर अपने पिता को फोन किया कि जावेद अंकल के मकान पर बुलडोज़र चल रहा है तो उन साहब ने कहा कि मैं जल्दी जल्दी कोल्ड ड्रिंक की बोतल और चिप्स के पैकेट लेकर घर पहुंचा ताकि इत्मीनान से चिप्स खाते हुए कोल्ड ड्रिंक पीते हुए यह मंज़र देख सकूँ। यह व्यक्ति जावेद का दोस्त नहीं तो परिचित ज़रूर रहा होगा, तभी तो उनके लड़के ने जावेद अंकल कहा था। सोचिये कि जिस समाज की यह सोच बन गयी हो और जो अपने बच्चों को इस घृणा और हिंसा की ट्रेनिग दे रहा है वह समाज कैसा देश बनायेगा।
लेकिन घटाटोप अँधेरे में उम्मीद की किरण बाक़ी है। सुप्रीम कोर्ट के कुछ रिटायर्ड जजों और देश के जाने माने कानूनविदों ने सुप्रीम कोर्ट में इस बुलडोज़र न्याय के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। उधर कुछ लोगों द्वारा इस एलान के बाद कि जावेद का मकान दोबारा बनवाने में जनता आगे बढ़ कर सहयोग करे तो मिनटों में सैकड़ों हिन्दु-मुसलमानों ने उनका अकाउंट नम्बर माँगना शुरू कर दिया, ताकि उसमे रकम भेज सकें। विदेश से एक साहब ने लिखा कि जावेद का मकान जब तक नहीं बन जाता, तब तक वह शहर के किसी भी फाइव स्टार होटल में शिफ्ट हो जाएँ, उसका पूरा बिल मैं अदा करूँगा। उधर जावेद के वकील ने दावा किया है कि वह न केवल इन अधिकारियों को सज़ा दिलवाएंगे, बल्कि सरकार से उनका वैसा ही मकान बनवा कर ही दम लेंगे।
दूसरी ओर जमीअतुल उलेमा हिंद, जो पहले भी यह मुक़दमा लड़ रही थी, प्रयागराज और कानपुर के प्रकरण को लेकर फिर सुप्रीम कोर्ट गयी। जहां से उतर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करके तीन दिन में जवाब माँगा गया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने फिर आदेश दिया है कि कोई भी निर्माण गिराने से पहले नोटिस जारी करने समेत सभी कानूनी प्रक्रियाएं पूरी करके ही निर्माण को ध्वस्त किया जाये। जब यूपी सरकार की तरफ दे कहा गया कि जावेद का मकान ध्वस्त करने से पहले सभी कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर ली गयी थी, तो सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से हलफनामा दाखिल करने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोज़र चलाने पर मुकम्मल पाबन्दी लागने से तो ज़रूर इनकार कर दिया है, लेकिन कानूनी प्रक्रिया का पूरी तरह पालन करने का आदेश दिया है। अर्थात मनमानी ढंग से किसी के मकान दुकान को ध्वस्त नहीं किया जा सकता। लेकिन आवश्यकता है कि सुप्रीम कोर्ट सरकारों की नियत और मंशा को समझते हुए एक बार फिर क्लियर कट गाइड लाइन जारी कर दे और उन पर अमल की जिम्मदारी जिले के डीएम से लेकर बुलडोज़र ऑपरेटर तक पर डाले कि बिना सम्पूर्ण कानूनी प्रक्रिया के यदि किसी का मकान या दूकान ध्वस्त किया गया तो ऊपर से लेकर नीचे तक सब सरकारी अमला इसका ज़िम्मेदार होगा और सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का दोषी समझा जायेगा। जब तक सुप्रीम कोर्ट सख्त नहीं होगा और सरकारी अमले की नकेल नहीं कसेगा, तब तक यह लोग सत्ता को खुश करने के साथ ही साथ अपने दिल में भरे साम्प्रदायिकता और नफरत के ज़हर को उडेलते रहेंगे। हमारे इस निजाम में एक कमजोरी यह भी है कि राजनीतिक सत्ता अफसरों से मनमानी काम तो करवा लेती है, लेकिन जब यह अफसर कानूनी झमेले में फंसते है तो यह राजनीतिक सत्ताधारी साफ़ बच निकलते हैं और झेलते हैं अफसरान। इस कमजोरी, इस खामी को दूर किया जाना चाहिए और इन फैसलों और कार्यवाही के से मुख्यमंत्री और सम्बंधित मंत्री को भी मुख्य दोषी मान कर उन को भी सज़ा दी जानी चाहिए। क्योंकि अपने वोटों के लिए वही ऐसे गैर कानूनी काम अफसरों से करवाते हैं।
इस तरह मनमाने ढंग से बुलडोज़र किसी के मकान और दुकान पर ही नहीं चलता, यह दरअसल चलता है लोकतन्त्र, संविधान और हमारी पूरी न्याय व्यवस्था पर। इसे न रोका गया तो यह लोकतंत्र संवैधानिक और न्याय व्यवस्था को निगल जाएगा और बचेगा केवल निराज और जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला निजाम।