डॉक्टर प्रमोद पाहवा
18 अगस्त 1934 को पाकिस्तान के पंजाब के झेलम जिले के कस्बा दीना में जन्मे सम्पूर्ण सिंह कालरा को दुनिया ‘गुलज़ार’ के नाम से जानती है। गुलज़ार भी अविभाजित भारत की महान हस्तियों में से एक हैं जिन्हों विस्थापन का दर्द झेला है। गुलज़ार जब पाकिस्तान से भारत आए तब उनकी उम्र आठ साल थी, इसके बाद वे 2015 में पाकिस्तान अपने गांव गए, अपने घर गए, गुलज़ार ने अपने ‘गांव’ को याद करते हुए मुंबई से प्रकाशित होने वाले एक अख़बार को इंटरव्यू में अपनी भावनाओं को बताया था। जिसे यहां प्रकाशित किया जा रहा है।
आठ बरस का था जब निकला था वहां से और 78 बरस का था जब गया वापस। 70 साल के बाद आप जब दोबारा उस जगह जाते हैं, वो घर वहां पाते हैं, वो गली वहां पाते हैं, वो स्कूल देखते हैं। बहुत ही भावनात्मक अनुभव होता है ये। उस समय में मेरा कुछ पल अकेले रहने का मन था। लेकिन जब लोग आपको जानते हों तो ये बाधा भी बन जाती है। इतनी बड़ी भीड़ वहां आपके साथ गली में खड़ी है अगर वो हटेगी तब तो गली देख पाएंगे पूरी।
वो छोटी सी एक गली है, दूर तक जाती है। कुछ दूर तक आगे गया भी उस गली में। पलहे वो गली जहां खुलती थी, उसके आगे खेत ही खेत थे। मेरे बचपन की ये तस्वीर है ज़हन में। अब वहां दीवार बना दी है। मेरी गली के आगे बिल्डिंगें बन गईं… मैंने कहा कि इसके पीछे तो खेत थे, तो बोला वो जी, अब वहां बिल्डिंगें बन गई हैं। वहां से पीछे मुड़ के गली पूरी देखने की कोशिश की पर फिर भीड़ की वजह से नहीं देख पाया। इसमें बंद सा होने लग गया मैं खुद में।
लोग लेकिन बहुत अच्छे थे। घर खोल के दिया उन्होंने, पर्दादार। औरतें पर्दे में चली गईं पर मुझे घर अंदर से देखने दिया। कुछ बुज़ुर्ग वहां मिले, बहुत बूढे़ थे। एक मेरे बड़े भाई को जानते थे, एक को बहन का नाम पता था और एक को मेरी मां का नाम भी याद था। एक बुज़ुर्ग तो मामा को भी जानते थे, पूछे कहां हैं मामा आज कल। उन लोगों से अपने रिश्तेदारों के बारे में सुना, जिनके बारे में हम भी अब नहीं जानते कि वहां (पाकिस्तान) से आने के बाद वो कहां जाकर बसे।
एक ने पंजाबी में हंसकर बोला, “तेरा बाप आता था तो किराए के पांच रुपए लेता था, अब मालिक मकान तू आया है तो पांच रुपए ले जा”। ये सब देख-सुनकर मैं बस अकेले बैठकर कहीं रोना चाहता था, पर लोगों की भीड़ ही भीड़। मैंने वो रेलवे स्टेशन भी देखा जहां मैं सुबह जाया करता था। तेरा बाप आता था तो किराए के पांच रुपए लेता था, अब मालिक मकान तू आया है तो पांच रुपए ले जा। गुलज़ार से एक बुज़ुर्ग ने कहा.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, और 2015 में गुलज़ार के साथ उनके गांव दीना गए थे।)