Header advertisement

वह जो मस्जिद पर झंडे फहरा रहे हैं। वह जो हमें मारने काटने की ऊँची ऊँची आवाज़ें लगा रहे हैं

वह जो मस्जिद पर झंडे फहरा रहे हैं। वह जो हमें मारने काटने की ऊँची ऊँची आवाज़ें लगा रहे हैं

हफ़ीज़ किदवई
वह जो मस्जिद पर झंडे फहरा रहे हैं। वह जो हमें मारने काटने की ऊँची ऊँची आवाज़ें लगा रहे हैं। वह जो बुलडोज़र के नीचे देश के संविधान और कानून को एक साथ कुचल रहे हैं। इन सबको हम पहचानते हैं। यह सब हमारी जान पहचान के लोग हैं। इनमें से कोई अपरिचित नही है ।
यह वह लोग हैं, जिन्होंने हमारी दोस्तियों के बीच,हमारे साथ उठते बैठते,खाते-पीते, हँसते-बोलते,टहलते घूमते,उस दल को चुना है,जो हमें ठिकाने लगाने की घोषणाएं करता रहा। यह सब वही लोग हैं, जो चुपके से हमारी तबाही का बटन दबा आते हैं और खामोश होकर हमारे बग़ल में खड़े हो जाते हैं। यह वह लोग हैं, जो हमें दूसरे नेताओं के बोलने,चलने,खड़े होने और शब्दों की मर्यादा को लाँघने पर ज्ञान देंगे और खुद बुलडोज़र का ईंधन बनने में देर नही करेंगे।
मैं इनसे परिचित हूँ। इनसे मिलता हूँ। हँसते हुए मिलता हूँ कि जब मेरे टुकड़े हो रहे होंगे,तब यह चाय का कप लिए इतना तो कहेंगे ही कि उन्हें ऐसे नही काटना चाहिए था। भले आदमी थे,मारना था तो मार देते, मगर ऐसे जलाकर टुकड़े तो न करते। मैं अपने बीच खड़े,उन बटन दबाने वालों को खूब जानता हूँ और जानता हूँ कि सारे मंसूबे वह जानते थे,वह इतने अनजान तो नही थे कि उन्हें नही पता था कि वह आएँगे,तो क्या करेंगे।
हम भी देखते हैं कि मौत की इस आंधी, नफ़रत की इस सुनामी और अराजकता भरे इस हुड़दंग में कौन सुक़ून पाता है। मैं अपने बीच खड़े हर उनके समर्थकों से कहता हूँ कि किसी भी हुड़दंग को यह मत कहना कि तुम उसमें तुम नहीं शामिल हो,तुम हो उसमें और अगर नहीं हो,तो तुम्हारे मुँह से दो शब्द क्यों नही फूटते कि हाँ, हमसे गलती हुई, हमने गन्दे घिनौने लोग चुन लिए। हमें पता है, तुम नही कह पाओगे,कभी नही कह पाओगे ।
हम सब आज नही तो कल मरेंगे ही, मिट भी जाएँगे मगर एक आत्म संतोष रहेगा कि बुराई को न हमने चुना,न हम उसके साथ रहे,न उसे खाद पानी दिया और न ही अगर मगर लेकिन लगाकर उसका समर्थन किया। हम मर कट जाएँगे मगर अहिंसा, प्रेम और सहिष्णुता का साथ नही छोड़ेंगे ।

hashtag #हैशटैग

No Comments:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *