इस्लाम के पांच प्रमुख स्तम्भों में से एक है रोज़ा
(असलम आज़ाद)
रमज़ान का पवित्र महीना चल रहा है। इस्लामी मान्यता के अनुसार यह महीना इस्लाम धर्म के अनुयायियों के लिए अति महत्वपूर्ण है। हिजरी कैलेंडर के अनुसार रमज़ान साल का नौवां महीना है जो बड़ी फ़जी़लत वाला है। इस महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग अल्लाह की इबादत अर्थात पूजा वंदना करते हैं। तीस दिनों का रोज़ा रखते हैं। रोज़े के साथ साथ रात को बीस रकात की तरावीह, घरों और मस्जिदों में कुरान की तिलावत, सदक़ा, ज़कात, दुआ, नफिल नमाज़ की पाबंदी के अलावा सभी बड़े एवं छोटे गुनाहों और ग़लत कार्यों से खुद को दूर कर लेते हैं।
पैगंबर-ए-इस्लाम और आख़िरी नबी हजरत मुहम्मद ने रोजे़दार के हक़ में बशारत यानी खुशख़बरी सुनाते हुए फरमाया है कि रोज़ेदार के हिस्से में दो खुशियां हैं।
फरमाते हैं कि जो लोग रमज़ान के पवित्र महीने में पूरे ईमानदारी और खु़शुअ खु़ज़ुअ यानी विनम्रता और बताये गये तरीके के अनुसार रोज़े रखता है उन रोजे़दारों के लिए दो खुशियां हैं।
एक ख़ुशी रोजे़दार को उस समय मिलती है जब एक रोजे़दार दिन भर की भूक और प्यास को बर्दाश्त करने के बाद शाम को सूर्यास्त के समय के खाने यानी इफ्तार की लज्जत से आसूदह होता है।
इसी प्रकार दूसरी खुश़ी उस समय प्राप्त होती है, जब एक रोज़ेदार, एक ईमान वाला व्यक्ती जिसने रमजान के रोज़े केवल अपने खुदा की रजा़ के लिए रखा था तब उसे आख़िरत में अपने रब के दीदार के समय प्राप्त होगी।
इस्लामी महीनों में रमज़ान को सबसे अधिक महत्व वाला महीना माना गया है। इसी महीने में अल्लाह ने अपने बंदों से अनेक इनआमात, रहमत, बरकत और दौज़ख से निजात देने का वादा भी किया है,साथ ही इसी महीने में सभी प्रकार की नेकी अर्थात अच्छे कार्य और इबादत का अजर यानी बदल या फल भी बढ़ा देने का वादा किया है।
तीन अशरों में बंटा है रमजान
इस्लाम धर्म के मानने वालों के अनुसार पूरे रमज़ान को तीन भागों में बांटा गया है। हर भाग दस दिन का होता है और दस दिन के हिस्से को अथवा दस को अरबी में अश़रा कहते हैं। तीनों अश़रे का अलग-अलग महत्त्व है। प्रत्येक अशरा अलग-अलग कार्य तथा अजर से जुड़ा हुआ है। तीसरे अश़रे में लोग एअतकाफ के लिए मस्जिद में बैठते हैं और चांद दिखने पर बाहर आते हैं।
रोज़े की महत्त्व और इसकी फज़ीलत के कई कारण हैं। जैसे-
•रोज़े में रियाकारी का कोई दखल नहीं
•रोजा़ लोगों से छुपा होता है
•जन्नत का दरवाजा खुलना और दौज़ख का बंद होना
•नेकियों का भाव बढ़ जाना
•सरकश़- शैतान का कैद कर लिया जाना
•जन्नत का एक दरवाज़ा केवल रोजेदार के लिए मखसुस करना
•रमजान अल्लाह का महीना होना
इसके अलावा इस्लामी किताबों में रमज़ान मुबारक और इसकी फजीलत व अहमियत के संबंध में बहुत सारी बातें बताई गई हैं।
रमजान के इस पवित्र महीने में इसकी तमाम फजीलतों को देखते हुए मुसलमानों को इस महीने में इबादत का खा़स ख्याल रखना चाहिए और समय का एक पल भी बर्बाद करने से बचना चाहिए।
एक जगह हदीस में लिखा है कि
नबी हजरत मुहम्मद फरमाते हैं कि, जिसने रमजान में ईमान की हालत में सवाब की नीयत से क़याम किया तो उसके पिछले सारे गुनाह माफ़ कर दिए गए।
लेखक: उर्दु साहित्यकार एवं शिक्षक हैं।