नई दिल्ली। देश को विश्व कप का ख़िताब देने वाले पूर्व क्रिकेट कप्तान कपिल देव देश में किसी भी तरह के साम्प्रदायिक तनाव से इंकार करते हैं। उनका कहना है कि कुछ चुनिंदा लोगों की सोच व मानसिकता पूरे समाज की मानसिकता नहीं मानी जा सकती। उन्होंने कहा कि आज इस विषय पर जो लोग भी बोल रहे हैं, वह उनकी निजी राय हो सकती है, पूरे समाज से उनका कोई संबध नहीं है।
पूर्व क्रिकेटर कप्तान कपिल देव दिल्ली के इंडिया इस्लामिक सेंटर में स्पोर्टस एसोसिएशन द्वारा आयोजित सम्मान समारोह को संबोधित कर रहे थे। समारोह में एसोसिएशन अध्यक्ष जावेद साबरी सहित अनेक गणमान्य लोगों ने उनका स्वागत एवं सम्मान किया। कपिल देव ने इस दौरान मौजूद लोगों से दिल खोलकर बातचीत की और सभी के सवालों का जवाब देते हुए, उन्हें जीवन में अपनी विचारधारा को बड़ा कर आगे बढऩे का संदेश भी दिया। देश में मंदिर मस्जिद को लेकर बन रहे वातावरण पर एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इस तरह की बातें पहले भी होती रही हैं, 3 वर्ष या 4 पहले भी कुछ लोग ऐसे बातें किया करते थे, उन्होंने कहा कि समाज में किसी एक व्यक्ति की सोच या विचारधारा को समूचे समाज की विचारधारा नहीं समझना चाहिये। उन्होंने कहा कि किसी को भी छोटी सोच नहीं रखनी चाहिए, सोच को हमेशा बड़ा रख कर आगे बढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि सभी को शिक्षा हासिल करनी चाहिए, लोग शिक्षित होंगे तो कोई भी उन्हें गुमराह नहीं कर सकेगा लेकिन अशिक्षित व्यक्ति को कोई भी आसानी से गुमराह कर सकता है।
जीवन के यादगार पलों के बारे में पूछे जाने पर कपिल देव ने कहा कि भारत के लिये खेलना ही उनके लिये यादगार है और जीवन का सबसे बड़ा आनंद भी वही है। जीवन में संघर्ष के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यदि भारत के लिए ना खेल पाता तो यह जीवन संघर्ष लगता, लेकिन भारत के लिए खेलने के बाद जीवन संघर्ष नहीं बल्कि कामयाब और असान लगता है। उन्होंने कहा कि क्रिकेट मेरे लिये संघर्ष नहीं बल्कि एक ख़ूबसूरत यात्रा थी। कपिल देव ने कहा कि यह जीवन संघर्ष तो वास्तव में उन लोगों के लिये है, जो पटरी पर सामान लगा कर बेच रहे हैं और उन्हें यह चिंता है कि घर में आज खाना बन पायेगा या नहीं। क्रिकेट में आने से संबधित सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि बचपन में पढ़ाई में मन नहीं लगता था और स्कूल से क्रिकेट खेलने के लिये पढ़ाई से हर हफ़्ते 3 दिन की छुट्टी मिलती थी, इसलिये क्रिकेट खेलना शुरु कर दिया। सफ़लता का राज़ पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि जीवन में किसी की भी सफ़लता का राज़ काम के प्रति समर्पण, उत्साह व जोश होता है और सभी को अपने जीवन में अपने काम के प्रति समर्पण व उत्साह को बनाये रखना चाहिए, तभी सफलता के मुकाम पर पहुंचा जा सकता है। वर्ष 1983 में जिम्बाबवे के साथ हुए विश्व कप के मैच की वीडियो रिकार्डिंग ना होने का अफ़सोस तो नहीं, इस सवाल पर उन्होंने कहा कि अफ़सोस नहीं बल्कि ख़ुशी है, क्योंकि बिना रिकॉर्डिंग के आज भी उस मैच के बारे में बात हो रही है।
राजनीति में जाने से संबधित एक सवाल पर उन्होंने राजनीति में जाने से इन्कार किया। उन्होंने मदर टेैरेसा का उदाहरण देते हुए कहा कि राजनीति में जाये बिना भी अच्छे काम व समाज की सेवा की जा सकती है। कपिल देव से जब जीवन में उनके हीरो या आदर्श के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि समय के साथ साथ हीरो बदलते रहे हैं। बचपन में कक्षा का मॉनीटर हीरो होता था, उसके बाद जीवन में जैसे जैसे नये नये लोग मिलते गये हीरो भी नये नये बनते गये। उन्होंने कहा कि जो केवल किसी एक को ही अपना हीरो मानकर रूक जाता है, उसकी सफ़लता भी वहीं रूक जाती है।
क्रिकेट खेलने को लेकर माता पिता से प्रोत्साहन मिलने के सवाल पर उन्होंने स्पष्ट कहा कि माता पिता से उन्हें कोई प्रोत्साहन नहीं मिला, लेकिन इसमें माता पिता की ग़लती नहीं, क्योंकि उस समय खेल या संगीत आदि अन्य गतिविधियों से जीवन नहीं बनता था और सभी माता पिता अपने बच्चों को खिलाड़ी बनाने के बजाय पढ़ा लिखाकर पैरों पर खड़ा करना चाहते थे। उन्होंने कहा कि आज स्थितियां बदल गई हैं। आज इन खेलों के प्रति आकर्षण व पैसा बढ़ा है, जिससे माता पिता भी अपने बच्चों को खिलाड़ी बनाने के लिये प्रोत्साहित कर रहे हैं।
कार्यक्रम में राष्ट्रीय सहारा उर्दू के समूह संपादक अब्दुल माजिद निज़ामी, इंडिया मोस्ट वोंटेड के प्रोडयूसर सुहेब इलियासी, पूर्व जिला जज कमल शर्मा, परमिंदर सिंह, मुजीब मलिक, मरगूब साबरी, इशान साबरी, आशीत कुणाल, ख़ुर्शीद रब्बानी, जैकब, मुस्तक़ीम ख़ान, डा. पीडी गर्ग, इकराम अहमद, राशिद त्यागी, अजहर जावेद, सुहेब आज़मी, शाबाज़ फ़रीदी व प्रवेश गर्ग ने कपिल देव का स्वागत किया।
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