कृष्णकांत

क्या पक्का घर गिराकर झोपड़ी बनाने को विकास कहते हैं? क्या करोड़ों लोगों का रोजगार छीन लेने को विकास कहते हैं? प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि कृषि क्षेत्र में सुधार से स्टार्टअप के लिए राहें खुल रही हैं। कहने को तो उन्होंने ये भी कहा था कि नोटबंदी का दूरगामी असर होगा। कालाधन, नक्सलवाद और आतंकवाद खत्म होगा। अर्थव्यवस्था बूस्ट करेगी। दूरगामी असर ये हुआ कि आज जीडीपी ग्रोथ -25 का रिकॉर्ड बना चुकी है।

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थोड़ा स्टार्टअप इंडिया की झलकी देखिए। स्टार्टअप इंडिया नाम की योजना जनवरी 2016 में लांच हुई थी। DPIIT (Department for Promotion of Industry and Internal Trade) के हवाले से फाइनेंशियल एक्सप्रेस ने लिखा है कि अब तक 40,000 स्टार्टअप की पहचान की गई है। इसके तहत  2017 में 49,648, 2018 में 95,338 और 2019 में 1,54,558 नौकरियां पैदा हुईं। 2019 में इसमें 63 फीसदी का उछाल है। 2020 के लिए आप यही ग्रोथ मान लें तो भी बमुश्किल 3 लाख लोगों को काम मिला होगा।

मोटा अनुमान ये है कि 2016 से लेकर अब तक स्टार्टअप  इंडिया के तहत ज़्यादा से ज़्यादा 5-6 लाख नौकरी मिली होगी। क्या आपको याद है कि लॉकडाउन के दौरान कितनी नौकरियां छूटी थीं? सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इकोनॉमी (सीएमआइई) का पहला ही आंकड़ा आया था कि लॉकडाउन के पहले हफ्ते में तकरीबन 12 करोड़ लोगों ने  रोजगार गवां दिया था। ये सिलसिला अगले महीनों में भी कमोबेश जारी रहा।

क्या आपको महामारी के पहले बेरोजगारी और नौकरियां छिनने का आंकड़ा याद है? लोकसभा चुनाव के बाद आंकड़ा लीक हुआ तो पता चला कि बेरोजगारी 45 साल का इतिहास रच चुकी है। भास्कर ने एक सर्वे का आंकड़ा प्रकाशित किया था कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में करीब पौने चार करोड़ लोगों की नौकरियां चली गईं। कुछ एक लाख को नौकरी मिले और करोड़ो लोगों की नौकरी छिन जाए, ये कौन सा विकास है?  पक्का घर गिराकर झोपड़ी कौन बनाता है? क्या हमारी सरकार कृषि क्षेत्र में भी यही तबाही-नुमा विकास लागू करना चाहती है? ध्यान रहे कि इस वक़्त अकेला कृषि सेक्टर है जो फायदे में है और मोदी की जिद है कि उसमें भी विकास कर ही डालेंगे। शुक्र मनाइए कि कृषि ऐसे विकास से बची रहे जिसपर आज भी देश की बहुसंख्या की रोजी-रोटी टिकी है।

(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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