नई दिल्ली: जामिया मिल्लिया इस्लामिया, आईआईटी इंदौर और गौर बांगा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की एक संयुक्त टीम ने ‘एनालाइज़िंग ट्रेन्ड एंड फोरकास्टिंग ऑफ रेनफाल चेजेंस इन इंडिया यूज़िंग नॉन-पैरामीट्रिक और मशीन लर्निंग अप्रोचेज़‘ पर एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया है। नेचर ग्रुप की प्रतिष्ठित पत्रिका, साइंटिफिक रिपोट्र्स में इस शोध पत्र को ऑनलाइन जारी किया गया है।
इस अध्ययन में 115 साल के डेटा (1901 से 2015) का उपयोग करके पूरे देश में वर्षा में दीर्घकालिक-अस्थायी परिवर्तन का विश्लेषण और पूर्वानुमान पेश किया गया है। इसमें वर्ष 2035 तक वर्षा के स्वरूप में संभावित बदलाव की भविष्यवाणी करने के साथ ही, पूरे भारत में वर्षा पैटर्न में परिवर्तनों कारणों का गहराई से अध्ययन किया गया है।
टीम ने देश के चैंतीस मौसम संबंधी सब-डिविजनों में मौसमी वर्षा (सर्दी, गर्मी, मानसून और पोस्ट मानसून) की प्रवृत्ति की गणना के लिए सेन की नवीन पद्धति का उपयोग किया है। भारत भर में वर्षा के पैटर्न की भविष्वाणी के लिए द आर्टिफिश्ल न्यूरल नेटवर्क-मल्टीलेअर परस्पट्रान (एनन-एमएलपी) का इस्तेमाल किया गया है।
रिसर्च पेपर के सह लेखक, जामिया के भूगोल विभाग के प्रो अतीकुर्रहमान ने बताया कि वर्तमान अध्ययन में 1901-1950 के दौरान रही वर्षा की प्रवृत्ति में वृद्धि देखी गई, लेकिन 1951 के बाद वर्षा में काफी गिरावट आई। मानसून के मौसम के दौरान भारत के अधिकांश मौसम खंडों में वर्षा में काफी गिरावट हुई। पश्चिमी भारत सब-डिविजनों में वर्षा के समग्र वार्षिक और मौसमी बदलाव सबसे ज्यादा थे, जबकि सबसे कम परिवर्तनशीलता पूर्वी और उत्तर भारत में पाई गई थी।
लगभग सभी सब-डिविजनों में 1970 के बाद वर्षा पैटर्न में नकारात्मकता का बड़ा बदलाव आया है। उत्तर-पूर्व, दक्षिण और पूर्वी भारत के सब-डिविजनों में समग्र वार्षिक और मौसमी वर्षा में बड़ी नकारात्मक प्रवृत्ति देखने को मिली है, जबकि सब-हिमालयी बंगाल, गंगीय बंगाल, जम्मू और कश्मीर, कोंकण और गोवा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और मराठवाड़ा ने सकारात्मक रुझान दर्ज किया है। इसके अलावा, 2030 के लिए बारिश की भविष्यवाणी में भारत की समग्र वर्षा में लगभग 15 प्रतिशत की गिरावट की आशंका है।
जलवायु परिवर्तन के वर्तमान युग में यह अध्ययन काफी महत्वपूर्ण है, जहां भारत सहित पूरी दुनिया के वर्षा पैटर्न में बदलाव आ रहा है। भारत की अर्थव्यवस्था पर काफी हद तक कृषि पर निर्भर है, और हमारी कृषि, वर्षा पर निर्भर करती है। इसलिए, पानी की कम होती जा रही उपलब्धता और भविष्य की पानी की मांग में वृद्धि को देखते हुए यह अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण है।
इस पूरे अध्ययन पेपर को http://www.nature.com/articles/s41598-020-67228-7 पर डाउनलोड किया जा सकता है।
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